UP Lok Sabha Election 2024: पूर्वांचल में BJP को शिखर पर कायम रहने की चुनौती, 2019 में सपा-बसपा मिलकर लड़ी तब भी नहीं खुला खाता
पूर्वांचल में जातिगत समीकरण में कांग्रेस के मुकाबले बसपा ज्यादा मजबूत है। सपा जब बसपा संग मिलकर भाजपा का विजय रथ नहीं रोक सकी तो इस समीकरण में अपेक्षाकृत कमजोर कांग्रेस के साथ से उसे कितना लाभ होगा यह देखने वाली बात होगी। यही वजह है कि सपा और कांग्रेस अभी तक अपने प्रत्याशी नहीं तय कर पाई हैं। इससे असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र में जिस सर्वोच्च शिखर पर भाजपा है, वहां खुद को स्थापित रखना चुनौतीपूर्ण है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, विपक्ष अकेले, अलग-अलग और मिलकर भी भाजपा के मत प्रतिशत तक नहीं पहुंच पाया है। अब विपक्ष का लक्ष्य भाजपा के वोटों में सेंधमारी है। हालांकि, धरातल पर कोई रणनीति नजर नहीं आ रही। भाजपा के आठ प्रत्याशी पूर्वांचल मथने में जुटे हैं तो विपक्ष सात सीटों पर चेहरा ही घोषित नहीं कर सका है। यहां के राजनीतिक परिदृश्य पर गोरखपुर से रजनीश त्रिपाठी की रिपोर्ट...
आंकड़ों की गुणा-गणित बैठाकर चुनावी भविष्यवाणी करने वाले रणनीतिकार 2024 में भाजपा की लड़ाई भाजपा से बता रहे हैं। जनता के मिजाज और वोटों के बढ़ते ग्राफ को वह इसकी वजह मानते हैं। भाजपा की लड़ाई भाजपा से कैसे? इसे समझाने के लिए राजनीतिक विश्लेषक डा. महेन्द्र सिंह लोकसभा के बीते तीन चुनावों के आंकड़े दिखाते हैं।कहते हैं कि 2014 में जब वादों पर यकीन करने की कोई ठोस वजह नहीं थी, तब भी 2009 के मुकाबले गोरखपुर-बस्ती मंडल में भाजपा को डेढ़ गुणा अधिक वोट मिले। 2019 में एम्स, खाद कारखाना, बाटलिंग प्लांट जैसे तमाम वादे हकीकत बनकर नजर आने लगे तो वोटों का यह अनुपात तीन गुणा हो गया। उस चुनाव में मतों का ध्रुवीकरण ऐसा था कि सपा-बसपा मिलकर लड़ी तब भी नौ में से एक भी सीट उन्हें नहीं मिली।
इसे भी पढ़ें- गोरखपुर में राप्ती नदी पर बनेगा एक और पुल, पहली किस्त जारीसात सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को 50 प्रतिशत या उससे अधिक वोट मिले। गठबंधन से अलग कांग्रेस इस चुनाव में चौथे पायदान पर थी। अगर गठबंधन के साथ कांग्रेस भी होती तब भी बस्ती, संतकबीरनगर को छोड़कर सात सीटों पर भाजपा ही चुनाव जीतती।
विपक्ष में प्रत्याशियों के नाम पर असमंजस की वजह वह पूर्वांचल में जातिगत वोटों का समीकरण बताते हैं। उनका मानना है कि जातिगत समीकरण में कांग्रेस के मुकाबले बसपा ज्यादा मजबूत है। सपा जब बसपा संग मिलकर भाजपा का विजय रथ नहीं रोक सकी तो इस समीकरण में अपेक्षाकृत कमजोर कांग्रेस के साथ से उसे कितना लाभ होगा, यह देखने वाली बात होगी। यही वजह है कि सपा और कांग्रेस अभी तक अपने प्रत्याशी नहीं तय कर पाईं।
इसे भी पढ़ें-काशी से पटना होते हावड़ा तक हाई स्पीड रेल का सर्वे पूरा, इन गांवों की जमीन हुई चिह्नितगठबंधन के सारे समीकरण फेल पूर्वांचल में गठबंधन के सारे फार्मूले फेल साबित हुए हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब सभी पार्टियां अपने बूते मैदान में उतरीं तो भी भाजपा सभी सीटों पर विजयी रही। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया, लेकिन विपक्ष की सारी गणित भाजपा लहर में छिन्न-भिन्न हो गई।
पूर्वांचल की 41 में 34 सीटों पर भाजपा विजयी रही। सहयोगी दलों के साथ भाजपा को 37 सीटें मिलीं। दो साल बाद हुए लोकसभा के चुनाव में सपा ने बसपा का साथ पकड़ लिया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। गठबंधन का फार्मूला कामयाब नहीं हुआ तो 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रमुख चारों दल अलग हो गए। भाजपा ने 2017 का इतिहास दोहराते हुए इस बार भी 31 सीटों पर विजय पताका लहराई।
2019 में भाजपा बनाम विपक्षी दल
(नोट : आंकड़े मत प्रतिशत में)
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बस्ती | 44.65 | 50.01 |
डुमरियागंज | 49.96 | 45.22 |
संतकबीरनगर | 43.95 | 52.67 |
महराजगंज | 59.19 | 37.36 |
गोरखपुर | 60.52 | 37.00 |
कुशीनगर | 56.68 | 38.51 |
देवरिया | 57.17 | 37.59 |
बांसगांव | 56.37 | 40.55 |
सलेमपुर | 50.64 | 41.41 |