Vinod Upadhyay: एक थप्पड़ के बदले के लिए भून डाला था नेपाली डॉन; जिससे सीखा दांवपेंच, रुपये के लिए बना उसी का दुश्मन
Vinod Upadhyay श्रीप्रकाश शुक्ला के खूनी खेल को देख विनोद उपाध्याय को हाथों में बंदूक थामने की ललक पैदा हुई और वह गिरोह के सदस्यों के संपर्क में आ गया। इसके बाद विनोद के विरुद्ध गोरखपुर के थानों में मुकदमे दर्ज होने लगे। गोरखनाथ थाने में पहला मुकदमा वर्ष 1999 में एक दलित के साथ मारपीट का दर्ज हुआ था।
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। जेल में जड़े एक थप्पड़ का बदला लेने की जिद में माफिया विनोद उपाध्याय ने जमानत पर छूटने के बाद नेपाल के डान को गोलियों से भून डाला था। इस घटना के बाद जरायम की दुनिया में उसका दबदबा कायम हो गया। एफसीआइ के ठीके को लेकर हिंदू संगठन के नेता से विवाद होने पर विनोद दिनदहाड़े उसे एक किलोमीटर तक सार्वजनिक रूप से पीटते हुए विजय चौक से उठा ले गया था।
1997 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही को लखनऊ में गोलियों से भून डाला, तब विनोद उपाध्याय का कहीं नाम भी नहीं था। श्रीप्रकाश शुक्ला के उस खूनी खेल को देख विनोद उपाध्याय को हाथों में बंदूक थामने की ललक पैदा हुई और वह गिरोह के सदस्यों के संपर्क में आ गया। इस घटना के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला को यूपी एसटीएफ ने गाजियाबाद जिले के इंदिरापुरम इलाके में हुई मुठभेड़ में मार गिराया।
तब विनोद, श्रीप्रकाश के करीबी रहे बदमाश के खेमे में जा घुसा। इसके बाद विनोद के विरुद्ध गोरखपुर के थानों में मुकदमे दर्ज होने लगे। गोरखनाथ थाने में पहला मुकदमा वर्ष 1999 में एक दलित के साथ मारपीट का दर्ज हुआ था। उसके बाद विनोद जरायम के दलदल में धंसता चला गया। कुछ दिन बाद श्रीप्रकाश के जिस साथी ने उसे जरायम की दुनिया का दांवपेंच सिखाया, लेन-देन को लेकर उसी से विवाद हो गया।
दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गए। वर्ष 2004 में विनोद गोरखपुर जिला कारागार में बंद हुआ तो दबदबे को लेकर यहां पहले से निरुद्ध नेपाल के माफिया डान भैरहवा के जीत नारायण मिश्र से कहासुनी हो गई। माफिया ने विनोद को अपमानित करने के साथ ही थप्पड़ जड़ दिया। इसके बाद जीत नारायण को बस्ती जेल भेज दिया गया।
कुछ दिन बाद विनोद जमानत पर जेल से बाहर आया और जीत नारायण से बदला लेने की जुगत में जुट गया। सात अगस्त, 2005 को उसे पता चला कि जेल से छूटने के बाद जीत नारायण बहनोई गोरेलाल के साथ नेपाल जा रहा है। संतकबीर नगर जिले के बखिरा क्षेत्र में विनोद ने साथियों के साथ जीत नारायण व गोरेलाल को घेरकर गोलियों से भून डाला। इस घटना के बाद उसने गैंग खड़ाकर रेलवे, लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग और एफसीआइ के ठीकों पर कब्जा शुरू कर दिया।
साथी को छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जिता जमाई धाक
शूटर से गैंगस्टर बने विनोद उपाध्याय का नाम पुलिस की हिट लिस्ट में पिछले 17 वर्ष से था। जरायम की दुनिया में कदम रखने के बाद विनोद ने छात्रनेता बनने का प्रयास किया, लेकिन मंशा पूरी नहीं हुई। उसने गैंग से जुड़े छात्रों को गोरखपुर विश्वविद्यालय में नेता बनवाने की राह पकड़ ली। वर्ष 2003 के चुनाव में उसने साथी को छात्रसंघ का चुनाव जिता लिया, जिसके बाद उसके रसूख की चर्चा राजनीतिक गलियारों में शुरू हो गई।
ठीके के विवाद में मारे गए थे दो साथी
वर्ष 2007 में सिविल लाइंस इलाके में लोक निर्माण विभाग का ठीका हथियाने को लेकर विनोद उपाध्याय और साथियों का लाल बहादुर गैंग से विवाद हो गया। मामला बढ़ने पर लाल बहादुर के साथियों ने घेर लिया। दोनों तरफ से कई राउंड ताबड़तोड़ गोलियां चलीं। गोलीकांड में विनोद उपाध्याय गैंग के रिपुंजय राय और देवरिया के सत्येंद्र की मृत्यु हो गई। जिलाधिकारी आवास के पास दिनदहाड़े हुई इस घटना के बाद पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी।
अपने प्रत्याशी को बनवाया था चेयरमैन
बसपा की सरकार में विनोद उपाध्याय ने जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन पद पर अपने प्रत्याशी को चुनाव लड़ाया। पूर्व विधायक ने अपने प्रत्याशी को मैदान में उतारा, जिसे हरवाकर विनोद ने अपने प्रत्याशी को चेयरमैन बनवाया था।
छात्रसंघ के शपथ ग्रहण में बना था अतिथि
नेपाल के डान की हत्या और छात्रसंघ के चुनाव में प्रत्याशी को जिताने के बाद विनोद उपाध्याय युवाओं की पसंद बन गया था। वर्ष 2006 के एमजीपीजी छात्रसंघ चुनाव के बाद नई कार्यकारिणी के शपथ ग्रहण समारोह में अतिथि बनकर पहुंचा था। उसने ही पदाधिकारियों को शपथ दिलाई थी।
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