पहले चरित्र निर्माण का चले अभियान : वसीम बरेलवी
गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट में हिस्सा लेने आए वसीम बरेलवी ने कहा कि चरित्र के हनन की वजह आदर्श महापुरुषों के महत्व का खंडित हो जाना है।
By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 08 Oct 2018 11:34 AM (IST)
गोरखपुर, (जेएनएन)। मशहूर शायर प्रो. वसीम बरेलवी समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार से काफी आहत हैं। उनका कहना है कि देश की तरक्की और खुशहाली के नाम पर बहुत सारी योजनाएं और अभियान चलाए जा रहे हैं लेकिन धरातल पर उनका प्रभाव नहीं दिख रहा। इसकी एकमात्र वजह आधुनिकता की दौड़ में चरित्र का हनन हो जाना है। ऐसे में किसी भी अभियान के चलाए जाने से पहले चरित्र निर्माण के अभियान को चलाए जाने की जरूरत है।
गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट के कवि सम्मेलन व मुशायरे में हिस्सा लेने आए वसीम बरेलवी ने कहा कि चरित्र के हनन की वजह आदर्श महापुरुषों के महत्व का खंडित हो जाना है। आदर्श पुरुषों के महत्व के खंडित होने से नई पीढ़ी उनके आदर्श को आत्मसात नहीं कर रही। ऐसे में चरित्र निर्माण का आदर्श भी जाता रहा, जिसका सीधा प्रभाव समाज पर पड़ रहा है। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान की परंपरा करुणा, उदारता और सहनशीलता पर टिकी है, जो आज के परिदृश्य में खोती दिख रहा है। इसका सीधा प्रभाव हिंदुस्तानियत यानी इंसानियत पर पड़ रहा है।
देश को संभालना है तो घर को संभालना होगा। क्योंकि इंसानियत को बचाए रखने की शुरुआत घर से होती है। उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी युवा पीढ़ी बखूबी निभा सकती है और उसे इसके लिए आगे आना चाहिए। चरित्र निर्माण में महात्मा गांधी की भूमिका की चर्चा करते हुए बरेलवी ने कहा कि उनके विचार आज की तिथि में सहूलियत नहीं बल्कि जरूरत बन गए हैं। क्योंकि उनके विचार इंसानियत के प्रतीक हैं, जिसका तेजी क्षरण हो रहा है।
बदलाव की खूबियों से प्रासंगिक है गजल
शायर प्रो. वसीम बरेलवी ने कहा कि गजल को शायरी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसकी वजह है कि उसमें बदलाव को सहन करने की क्षमता है और वह अपनी विरासत को संभाले हुए है। गजल की तुलना नारी शक्ति से करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह से नारी बेटी, पत्नी और मां तीनों ही किरदारों में खरी उतरती है, उसी तरह गजल ने भी समय के अनुरूप खुद को मौजू बनाए रखा है।
साहित्य मेंं राजनीति का कोई स्थान नहीं
राजनीति और साहित्य के संबंध के सवाल पर प्रो. बरेलवी ने साफ कहा कि साहित्य कभी राजनीति से प्रभावित नहीं होता। साहित्य राजनीति को संभालने का कार्य जरूर करता है। अगर साहित्य राजनीति से प्रभावित दिखता है तो वह साहित्य नहीं। साहित्य चिंतन मेंं बदलाव लाता है, साथ ही समाज को दिशा देने का कार्य करता है। साहित्य इंसान की बेहतरी का ख्वाब देखता है। सोशल मीडिया से साहित्य को होने वाले नुकसान की चर्चा करते हुए प्रो. बरेलवी ने कहा कि सोशल मीडिया से साहित्यकार बनने की जल्दी साहित्य का मयार गिरा रही है। नवांकुरों को इससे बचना होगा। यह समझना होगा कि साहित्य साधना है। इसमें साधने में वक्त लगता है।
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