मुसाफिर हूं यारो : कोरोना भी करने लगा है दो आंख Gorakhpur News
गोरखपुर के साप्ताहिक कालम में इस बार रेल कर्मचारियों और अधिकारियों के कार्य व्यवहार और दिनचर्या पर आधारित रिपोर्ट काफी दिलचस्प तरीके से लिखी गई है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से प्रेम नारायण द्विवेदी का साप्ताहिक कालम मुसाफिर हूं यारो-----
गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना वायरस भी अब दो आंख करने लगा है। कहीं अभी भी डरा रहा, तो कहीं वाकओवर दे दिया है। अब रोडवेज डिपो परिसर को ही देख लीजिए। यहां बसों में चढ़ने के लिए धक्कामुक्की हो रही है, वहीं रेलवे स्टेशन परिसर में वाहनों के प्रवेश पर भी रोक लगी हुई है। पैसेंजर ट्रेनें यार्डो में दूरी बनाए खड़ी हैं। भीड़ के चलते इंटरसिटी को हरी झंडी नहीं मिल रही। एक कर्मचारी संगठन के दफ्तर में बातचीत के दौरान पदाधिकारियों की टीस उभरी। पदाधिकारी बोले, लग रहा है कोरोना ने भी कबूतरों, छुट्टा जानवरों व असामान्य लोगों की तरह रेलवे स्टेशनों को अपना नया ठौर बना लिया है। कंपनियां खुल गईं, बाजार गुलजार हो गए, खटारा बसें भी फर्राटा भरने लगीं, लेकिन इंटरसिटी और पैसेंजर ट्रेनों के लिए अभी भी लाकडाउन है। रेलवे भी जनरल टिकट से दूरी बनाए हुए है, वहीं रोडवेज सामान्य टिकट बेचकर करोड़ों कमा रहा है।
अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे
जबसे रेलवे के बड़े साहब आए हैं, मातहतों की नींद उड़ गई है। दिन का चैन भी छिन गया है। काम इतना कि शाम की काफी और बैठकी भी भूल गई है। पूरा दिन रिपोर्ट बनाने में ही बीत रहा है। अब तो साइड वाला काम भी प्रभावित हो रहा। प्रबंधन के एक अधिकारी पर साहब की भृकुटी क्या तनी, समीक्षा बैठक के नाम पर ठंड में भी अधिकारियों का पसीना छूट जा रहा। दरअसल, काम की आदत छूट गई थी। एक तो साहब की कुर्सी खाली और ऊपर से कोरोना महामारी। दफ्तर में लाल बत्ती जलाकर बंगले पर आराम फरमाने वाले अफसर भी साइट पर जाने लगे हैं। चेंबर में बाबुओं पर गुस्सा उतार रहे एक अफसर की पीड़ा बातचीत में सामने आ ही गई। आज तक इतनी फाइलें नहीं देखी थी। बगल में खड़े कर्मचारी से नहीं रहा गया। धीरे से बोला, अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे।
चुनाव की आस में फिर बाक्स में रख दिए कुर्ता-पायजामा
कर्मचारी संगठन ही नहीं कुछ ठलुए कर्मचारी भी रेलवे में चुनाव का इंतजार करते रहते हैं। कर्मचारी संगठन तो सिर पर मान्यता का सेहरा बांधने के लिए चुनाव चाहते हैं, लेकिन कर्मचारी जिंदाबाद-मुर्दाबाद बोलने के लिए परेशान ही रहते हैं। तेज आवाज में हाथ उठाएंगे तो संगठनों में पूछ बढ़ेगी और दफ्तर में कालर भी टाइट रहेगा। अक्टूबर में कर्मचारी संगठन की मान्यता के लिए चुनाव में शामिल होने वाले मतदाता सूची तैयार करने की घोषणा हुई तो संगठनों के साथ पहले से तैयार कर्मचारियों की भी बांछें खिल गईं थीं। अचानक से आंदोलनों की बाढ़ सी आ गई। इसके बाद माहौल धीरे-धीरे उत्सवी होने लगा। जगह-जगह होìडग और बैनर लगने लगे, लेकिन दिसंबर में ही बोर्ड ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अभी तक चुनाव की घोषणा नहीं हुई है, न होगी। चुनाव की आस में तथाकथित कर्मचारी नेताओं ने फिर से बक्से में कुर्ता-पायजामा रख दिए हैं।
तू डाल-डाल हम पात-पात, घर बैठे कट रहा चालान
कोहरे में भी परिवहन विभाग के अधिकारियों और यातायात पुलिस का टारगेट पूरा हो जा रहा है। पर्सनल टारगेट ओवरलोड और डग्गामार वाहन तो विभाग का टारगेट विभाग का आनलाइन सिस्टम ही पूरा कर दे रहा। ठंड का अहसास भी नहीं हो रहा। जनपद में संबंधित अधिकारी और कर्मचारी फिटनेस जांच की तरह वाहनों का बिना देखे ही चालान कर दे रहे हैं। दरवाजे पर खड़े वाहनों का तेज रफ्तार में चालान हो जा रहा तो कार का चालान बिना हेलमेट में कर दे रहे हैं। कागजों में उनका लक्ष्य तो पूरा हो जा रहा, लेकिन वाहन मालिकों को सांसत ङोलनी पड़ रही है। मोबाइल पर चालान का मैसेज आते ही लोगों के माथे पर बल पड़ रहा है। बातचीत में एक की पीड़ा सामने आ ही गई। सरकार बदल गई, लेकिन सिस्टम नहीं बदला। यहां भी तू डाल-डाल, हम पात-पात वाली कहानी चरितार्थ हो रही। मार्ग दुर्घटनाएं जारी हैं।