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विश्व धरोहर दिवस: रेल म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा 150 साल पुराना इंजन 'लार्ड लारेंस', उत्‍तर बिहार में अकाल के दौरान 46000 टन लेकर चला था खाद्यान्न

World Heritage Day लार्ड लारेंस इंजन को लंदन से समुद्र मार्ग से कोलकाता लाया गया था। लार्ड लारेंस इंजन को देश की पहली ट्रेन (16 अप्रैल 1853 को मुंबई के बोरीबंदर से थाणे के बीच चली) के इंजन लार्ड फाकलैंड का छोटा भाई कहा जाता है। भाप ही नहीं अब तो डीजल इंजन भी धरोहर बनने की तरफ अग्रसर हैं।

By Prem Naranyan Dwivedi Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 18 Apr 2024 10:02 AM (IST)
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उत्तर बिहार में अकाल के दौरान खाद्यान्न व चारा लेकर दरभंगा से दलसिंगसराय तक 61 किमी चला था इंजन
प्रेम नारायण द्विवेदी, जागरण संवाददाता, गोरखपुर। World Heritage Day वर्ष 1874 में इंग्लैंड में बना लार्ड लारेंस भाप इंजन आज भी गोरखपुर स्थित रेल म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा है। पूर्वोत्तर रेलवे का यह पहला इंजन उत्तर बिहार में अकाल के दौरान 01 नवंबर 1875 को 46 हजार टन खाद्यान्न व पशुओं का चारा लेकर दरभंगा से दलसिंगसराय तक 61 किमी चला था।

रेलवे स्टेशन परिसर में स्थापित इंजन वाईएल 5001 और महाप्रबंधक कार्यालय परिसर में रखा नैरोगेज वाष्प इंजन टीबी-6 भी पूर्वोत्तर रेलवे की धरोहर में शामिल हैं, जो लोगों को आकर्षित करने के साथ यह बता रहे हैं कि रेलवे यूं ही नहीं विकास के पथ पर सरपट दौड़ रहा है।

लार्ड लारेंस इंजन को लंदन से समुद्र मार्ग से कोलकाता लाया गया था। लार्ड लारेंस इंजन को देश की पहली ट्रेन (16 अप्रैल 1853 को मुंबई के बोरीबंदर से थाणे के बीच चली) के इंजन लार्ड फाकलैंड का छोटा भाई कहा जाता है। भाप ही नहीं अब तो डीजल इंजन भी धरोहर बनने की तरफ अग्रसर हैं।

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पूर्वोत्तर रेलवे की ट्रेनें इलेक्ट्रिक इंजनों से चलने लगी हैं। रेलवे के इंजन ही नहीं लाइनें, कोच, उपकरण और सिस्टम भी धरोहर ही हैं। पूर्वोत्तर रेलवे इन ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है।

म्यूजियम के अलावा स्टेशनों और महाप्रबंधक कार्यालय परिसर के धरोहर कक्ष में रेलवे के धराेहर संरक्षित किए गए हैं। म्यूजियम में सहेजे गए आजादी के पहले ट्रेनों को संचालित करने वाली कंपनियों के लोगो, उपकरण और ईंट आकर्षण का केंद्र बने हैं। गोरखपुर जंक्शन भी अपने आप में धरोहर ही है, जो 15 जनवरी, 1885 को सोनपुर से मनकापुर तक छोटी रेल लाइन बिछने के साथ अस्तित्व में आया था।

पूर्वोत्तर रेलवे के पुल भी महत्वपूर्ण धरोहर की श्रेणी में आते हैं। चौका घाट से घाघरा घाट के बीच 17 खंभों वाला एल्गिन ब्रिज 3404 फिट लंबा है। इसका नामकरण भारत के 9वें वायसराय लार्ड एल्गिन के नाम पर पड़ा है। इसका शुभारंभ 25 जनवरी 1899 को हुआ।

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पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह की लिखित काफी टेबल बुक 'छोटी लाइन: ए जर्नी आफ ट्रांसफार्मेशन' में पूर्वोत्तर रेलवे के 150 साल का गौरवशाली इतिहास समाया हुआ है, जो रेलवे के 1875 से 2024 तक के विकास यात्रा की कहानी कह रही है।

तब टोकन बाल से ट्रेनों को मिलता था सिग्नल

तब ट्रेनें टोकन बाल सिस्टम से चलती थीं। ब्रिटिश काल में नील नाम के इंजीनियर ने ट्रेनों का सुरक्षित एवं संरक्षित संचालन के लिए इस सिस्टम को बनाया था। सिंगल लाइन पर लाइन क्लियर मिलने के बाद लोको पायलट को टोकन बाल दिया जाता था। इसके बाद ही ट्रेन ब्लाक सेक्शन में प्रवेश करती थी।

स्टेशन मास्टर टोकन नंबर को टेलीफोन के माध्यम से अगले स्टेशन को बता देता था। टोकन बाल प्राप्त करने के बाद ही ट्रेन को लाइन क्ललीयर दी जाती थी। रेलवे के विकास के साथ सेमाफोर सिग्नल सिस्टम आया, जिसमें लैंप (केरोसिन) द्वारा प्रकाशित विभिन्न रंगों के चलायमान शीशे द्वारा उत्पन्न अलग-अलग रंगों के माध्यम से सिग्नल प्रदान किया जाता था।

अब तो ट्रेनों को अधिकतम 130 से 160 किमी प्रति घंटे की गति से चलाने के लिए पूर्वोत्तर रेलवे में आटोमेटिक ब्लाक सिग्नल सिस्टम और पैनल की जगह कंप्यूटराइज्ड पैनल सिस्टम लगने लगे हैं।

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