World Telecommunication Day 2022: गोरखपुर में कभी थे केवल पांच फोन नंबर, 1927 में बजी थी यहां फोन की पहली घंटी
World Telecommunication Day 2022 गोरखपुर में पहली बार टेलीफोन की घंटी 21 दिसंबर 1927 को कलेक्ट्रेट में बजी थी। इसे बिट्रिश हुकूमत ने अपनी प्रशासनिक सुविधा के लिए शुरू कराया था। उस समय पूरे जिले में केवल पांच टेलीफोन नंबर थे।
By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Tue, 17 May 2022 01:35 PM (IST)
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। आज भले ही हर हाथ में मोबाइल है और पूरी दुनिया एक छोटे से इलेक्ट्रानिक यंत्र के जरिये मुट्ठी में है। पर कभी मोबाइल तो दूर लैंड लाइन फोन भी स्टेटस सिंबल हुआ करता था। संचार क्रांति ने अब उसे इतिहास का हिस्सा बना दिया है। विश्व दूरसंचार दिवस वह अवसर है जब हम संचार की दुनिया में हुए क्रांतिकारी बदलाव को याद करें। उस इतिहास को भी याद करें, जहां से हम इसे लेकर आगे बढ़े हैं।
कलेक्ट्रेट, कलेक्टर आवास, रेलवे दफ्तर, म्यूनिसपल बोर्ड व इलाहाबाद बैंक को जारी हुए थे नंबरगोरखपुर की बात करें तो यह विश्वास नहीं होगा कि कभी पूरे जिले में केवल पांच टेलीफोन नंबर थे। पहली बार टेलीफोन नंबर 003 की घंटी 21 दिसंबर 1927 को कलेक्ट्रेट में बजी थी। इसे बिट्रिश हुकूमत ने अपनी प्रशासनिक सुविधा के लिए शुरू कराया था। शास्त्री चौक पर मैग्नेटो टेलीफोन एक्सचेंज लगा और उसके बाद चार और नंबर 003, 007, 009 व 015 जारी हुए थे। ये नंबर कलेक्टर आवास, रेलवे सीएमई दफ्तर, म्यूनिसपल बोर्ड तथा इलाहाबाद बैंक के थे।
ऐसे होती थी फोन पर बातउस समय का टेलीफोन सेट भी अद्भुत था। बात करने के लिए बाकायदा हैंडल घुमाना पड़ता था, जिसके बाद मैग्नेट बोर्ड पर आपरेटर को सिग्नल मिलता था। तब आपरेटर उपभोक्ता से बात करके उनके बताएं नंबर पर काल लगाता था। धीरे-धीरे तकनीक में बदलाव आया और सेटलाइट बैट्री नान मल्टीपुल एक्सचेंज स्थापित हुआ। जब फोन को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी तो मांग भी बढ़ गई। लैंडलाइन फोन के लिए लोग बुकिंग कराते थे। नंबर आने में सालों लग जाते थे। जिसके घर फोन लग गया मानो वह वीआइपी हो गया। यह सिलसिला अस्सी के दशक संचार क्रांति के साथ थमा।
90 का दशक था स्वर्णिम कालपहले घर-घर लैंडलाइन फोन लगे पर जैसे ही मोबाइल फोन का प्रचलन बढ़ा, संचार क्रांति का सपना सच होता गया। आज शायद ही कोई होगा, जिसके हाथ में मोबाइल फोन न हो। 1990 से 2000 के बीच था स्वर्णिम काल 1990 से 2000 के बीच का समय बीएसएनएल के लिए स्वर्णिमकाल था। आज जिस तरह से विदेशी ब्रांड के फोन की लांचिंग के समय बुक करने के लिए रातों रात लाइन लगती है, उसी तरह उस समय बीएसएनएल की स्थिति थी।
मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि संचार क्रांति के जरिये मुझे दूर संचार सेवा के बदलाव को बेहद नजदीक से देखने व महसूस करने का मौका मिला है। आने वाले समय में इस क्षेत्र में अभी कई और प्रगतिवादी बदलाव देखने को मिलेंगे। ऐसा मेरा विश्वास है। - विद्यानंद, महाप्रबंधक, बीएसएनएल।
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