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सुंदर स्वाद... हैजा-पेचिस को भगाने वाली, भारतीयों को लुभाने के लिए अंग्रेज अपनाते थे ये तरीके; UP में चाय का इतिहास

यूपी के हापुड़ से प्रदेश में चाय पीने की शुरुआत हुई थी। यहां पर 1924 में चाय की पहली कैंटीन खोली गई थी। इसके एक साल बाद 1925 में दूसरी कैंटीन अमरोहा में खोली गई। यहां पर दो प्रकार की चाय एक और दो आने में पिलाई जाती थी। चाय को एनर्जी टॉनिक के रूप में पेश किया जाता था। सुबह के समय चाय फ्री में पिलाई जाती थी।

By Sonu Suman Edited By: Sonu Suman Updated: Wed, 13 Mar 2024 08:15 PM (IST)
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यूपी के हापुड़ से प्रदेश में चाय पीने की शुरुआत हुई थी। (फाइल फोटो)
ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। प्रदेश में चाय पीने का आरंभ हापुड़ से किया गया था। यहां पर 1924 में चाय की पहली कैंटीन खोली गई थी। इसके एक साल बाद 1925 में दूसरी कैंटीन अमरोहा में खोली गई। उस समय लोग चाय को पीना पसंद नहीं करते थे। उसके चलते अंग्रेजों ने लोगों को चाय के लाभ बताने वाले शिलापट भी लगवाए थे।

यहां पर दो प्रकार की चाय एक और दो आने में पिलाई जाती थी। चाय को एनर्जी टॉनिक के रूप में पेश किया था। सुबह के समय चाय फ्री में पिलाई जाती थी। अब रेलवे के पुरातत्व विभाग ने चाय के शिलापट को अपने संरक्षण में लेने की पहल आरंभ की है।

कहा जाता है कि आर्याव्रत में दूध-धी की नदियां बहती थीं, यानि देश में इनकी प्रचूरता था। दूध और घी के भोजन का आधार था। अब दूध और घी का प्रयोग सीमित होता जा रहा है। ज्यादातर लोग चाय का प्रयोग करते हैं।चाय अंग्रेजों की देन है। आरंभ में लोग चाय का प्रयोग नहीं करते थे। इसको सेहत के लिए नुकसानदेह माना जाता था।

वहीं अंग्रेज कारोबारी इसको बड़े बिजनेस के रूप में स्थापित कर रहे थे। ऐसे में चाय को एक लाभकारी और स्वास्थ्यवर्धक पेय के रूप में प्रस्तुत किया गया। चाय के फायदे बताने वाले बोर्ड लगाए गए। लोगों को चाय का बनाना भी सिंखाया गया।

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हापुड़ से हुआ था आरंभ

रेलवे स्टेशन पर भूरेलाल एंड संस के नाम से चाय की कैंटीन है। यहां पर 1924 में ब्रिटिश शासन ने चाय बिक्री का लाइसेंस दिया था। इनको ही अमरोहा रेलवे स्टेशन पर 1925 में दूसरा लाइसेंस दिया गया। इन कैंटीन से चाय को आमजन में प्रस्तुत किया गया। इससे पहले चाय का प्रयोग अंग्रेज और भारतीय अधिकारी ही करते थे। कैंटीन से उत्तर प्रदेश के आमजन के लिए चाय का आरंभ किया गया।भूरेलाल कक्कड़ के 62 वर्षीय पौत्र नन्हें सिंह कक्कड़ ने बताया उनके परिवार की दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी मिलकर आज भी कैंटीन का कारोबार संभाल रहे हैं।

एक आने में मिलती थी चाय

कैंटीन संचालक पुनीत कक्कड़ व नन्हें सिंह कक्कड़ ने बताया कि पहले भारतीय चाय नहीं पीते थे। ऐसे में सुबह के समय स्टेशन पर चाय फ्री में पिलाई जाती थी, जिससे लोगों को इसका स्वाद भाने लगे। उसके बाद एक आने की एक चाय दी जाती थी। दो आने में दूध की चाय में मलाई डालकर दी जाती थी। कैंटीन पर चाय पीने के लाभ, चाय की कीमत और चाय बनाने की विधि वाले शिलापट लगे हुए हैं।

संग्रहालय में रखवाने की पहल

रेलवे के पुरातत्व विभाग ने अब चाय के इन शिलापट को कब्जे में लेने की तैयारी की है। उन्होंने कैंटर संचालक परिवार से संपर्क करके इन शिलापट को देने का आग्रह किया है। जिससे शिलापट को रेलवे संग्रालय का हिस्सा बनाया जा सके।

नन्हें सिंह कक्कड़ ने बताया कि यह शिलापट हमारी कैंटीन को ब्रिटिश काल में दिए गए थे। हमने इनको संभाल कर लगाया हुआ है। रेलवे को संग्रालय में हमारे कैंटीन के नाम को भी शामिल करना होगा। उसका लिखित अनुबंध होने पर ही शिलापट सौंपा जाएगा।

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