अब केला खाकर मरेंगी मक्खियां, फलों-सब्जियों की खेती को मिलेगा बढ़ावा, किसान होंगे मालामाल
अब फलों-सब्जियों को खराब करने वाली मक्खी पर काबू पाया जा सकेगा। इससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी। वर्तमान में फल मक्खी की वजह से किसानों को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान झेलना पड़ता है। फल मक्खी को आकर्षित करने वाली दवा केले में मिलाकर पेड़ों और खेतों में रखी जाएगी। फलों-सब्जियों में अंडे देकर उनको खराब करने वाली मक्खियों से छुटकारा पाया जा सकेगा।
ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। फलों-सब्जियों को खराब करके फसलों को बर्बाद करने वाली मक्खी पर अब नियंत्रण आसान हो जाएगा। इससे बागवानों को होने वाले लाखों रुपये के नुकसान से राहत मिल सकेगी। फल मक्खी को आकर्षित करने वाले (फेरोमेन) रसायन मिथाइल यूजेनाल के साथ कीटनाशक को केले में मिलाकर पेड़ों-खेतों में रखा जाएगा। ऐसे में मक्खी केले की ओर आकर्षित होगी और उसमें मिले कीटनाशक को खाएगी।
अंडे देने से पहले ही मर जाएंगी मख्खियां
फलों-सब्जियों में अंडे देने से पहले ही मक्खी मर जाएगी। फल मक्खी के कारण किसानों-बागवानों को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। एक बार अंडे दे-देने के बाद उसपर नियंत्रण संभव नहीं हो पाता है। पांच साल के प्रयोगशाला परीक्षण के बाद अब विशेषज्ञ मक्खियों को आकर्षित करने वाले कीटनाशक को बाजार में उपलब्ध कराने के लिए तैयार हो गए हैं।
लाइलाज है फल-मक्खी
फल-मक्खी पर नियंत्रण आसान नहीं है। यह फलों-सब्जियों को खाने के लिए बागों-खेतों में आती है। वहां पर खाने के बाद वह दर्जनों फलों-सब्जियों के अंदर अपना अंग प्रविष्ट कराकर अंडे देती है। एक बार फलों-सब्जियों में अंडे देने के बाद उन पर कोई कीटनाशक कारगर नहीं होता है। वहीं मक्खी एक दिन में ही सैकड़ों फलों-सब्जियों को अपना निशाना बनाती है।
इन फलों को होता है ज्यादा नुकसान
फल मक्खी का सबसे ज्यादा नुकसान आम, अमरूद, पपीता, चीकू, अनार, सेब, अंगूर, केला, लौकी, तोरई, ककड़ी और खीरा आदि में होता है। इसके कारण ही फल-सब्जी खराब हो जाते हैं। फलों के अंदर कीड़े दरअसल फल मक्खी के लार्वा ही होते हैं। इसके कारण फल काने, दागदार, धब्बेदार और मुड़े हुए होते हैं। जिनका बाजार मूल्य अच्छा नहीं मिलता है। इनके कारण हर साल करोड़ों रुपयों का नुकसान होता है।
उपलब्ध नहीं है कीटनाशक
फल-मक्खी सामान्य रसायनों से नियंत्रित नहीं होती है। वह फलों-सब्जियों में अंडे देकर उड़ जाती है। उसके बाद फलों और सब्जियों के अंदर कोई कीटनाशक इनको नियंत्रित नहीं कर पाता है। फलों को खाने और अंडे देने के बाद यह मक्खी खेतों-बागों से दूर निकल जाती है। वह किसी छायादार पेड़ को अपना आशियाना बनाती है। वहां पर कीटनाशक का छिड़काव संभव नहीं होता है।
वहीं फल-मक्खी बड़ी संवेदनशील होती है। वह कीटनाशक की गंध महसूस होते ही स्थान बदल देती है। यही कारण है कि मक्खी पर नियंत्रण कठिन है। कीटनाशकों का ज्यादा छिड़काव करने से पैदावार विषाक्त होने लगती है। इससे कैंसर होने की आशंका रहती है।
अब केले में किया जाएगा प्रयोग
कृषि विज्ञान केंद्रों में फल मक्खी को सस्ते में व सौ प्रतिशत नियंत्रित करने के लिए प्रयोग पांच साल से शोध चल रहा है। अब इसको व्यवहारिक रूप देने की पूरी तैयार हो गई है। विशेषज्ञों के अनुसार चाय वाले कुल्हड़ या कप में केले का 10 ग्राम गूदा रखते हैं। उसपर मिथाइल यूजेनाल की दो बूंद और कीटनाशक डालकर पेड़ों और खेतों में जगह-जगह लगा देते हैं।
इसको जहरीला चारा (प्वाइजन वेट) बोलते हैं। मक्खी को केले की सुगंध और फेरोमेन रसायन अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इससे मक्खी फलों-सब्जियों की बजाय विषाक्त चारा खाने लगती है। इस तीव्र रसायन के प्रयोग से वह अंडा देने से पहले ही मर जाती हैं। इस विधि के लिए जनवरी से बेहद सस्ता विषाक्त चारा बाजार में उपलब्ध कराने की तैयारी है।
फल मक्खी बागवानों-किसानों के लिए बड़ी क्षति का कारण बनती है। अभी तक इसके लिए कोई प्रभावी रसायन प्रचलन में नहीं है। ऑनलाइन मिलने वाले विषाक्त चारे प्रभावी नहीं हैं और काफी महंगे हैं। अब मिथाइल यूजीनाल से सस्ते विषाक्त चारे पर किया जा रहा प्रयोगशाला प्रयोग सफल है। इसको जनवरी से बाजार में उपलब्ध कराने की तैयारी है। इससे फल-सब्जी के क्षेत्र में बड़े नुकसान से बचा जा सकेगा। - डॉ. अरविंद कुमार यादव, प्रधान वैज्ञानिक व प्रधानाचार्य-कृषि विज्ञान केंद्र