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Ganga Mandir: एक ऐसा मंदिर..जिसकी सीढ़ियों से आती हैं पानी की आवाज

मंदिर की सीढ़ियों में एक विशेष प्रकार का पत्थर लगा हुआ हैं। जिससे इन सीढि़यों पर ऊपर से पत्थर मारे जाने पर इसके अंदर जल में पत्थर मारने जैसी आवाज सुनाई पड़ती है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2020 05:25 PM (IST)Updated: Wed, 09 Sep 2020 05:25 PM (IST)
Ganga Mandir: एक ऐसा मंदिर..जिसकी सीढ़ियों से आती हैं पानी की आवाज

गढ़मुक्तेश्वर (हापुड़) [प्रिंस शर्मा]। गढ़मुक्तेश्वर स्थित प्राचीन गंगा मंदिर दर्शन करने के लिए भीड़ उमड़ती हैं। यह मंदिर 80 फिट ऊंचे टीले पर स्थित है। मान्यता है कि यहां मांगी गई मन्नतें पूरी होती है और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु चढ़ावा चढ़ाते हैं। मंदिर की एक विशेषता है कि मंदिर की सीढ़ी पर पत्थर मारने पर पानी में पत्थर मारने जैसी आवाज आती है। ऐसा लगता है कि मंदिर की सीढ़ी से छू कर मां गंगा बहती हो।

गढ़ गंगा नगरी में प्राचीन एवं ऐतिहासिक गंगा मंदिर शहरी की आबादी के एक छोर पर लगभग 80 फीट ऊंचे टीले पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिये कभी एक सौ एक सीढ़ी हुआ करती थी, किंतु अनेक बार सड़क ऊंची होने के कारण अब 84 सीढ़ी ही शेष बची हैं। मंदिर में मां गंगा की एक आदमकद प्रतिमा एवं चार मुख की दूध के समान सफेद बह्मा जी की मूर्ति एवं शिवलिंग है।

मंदिर की सीढ़ियों में लगा है विशेष प्रकार का पत्थर 

मंदिर की सीढ़ियों में एक विशेष प्रकार का पत्थर लगा हुआ हैं। जिससे इन सीढि़यों पर ऊपर से पत्थर मारे जाने पर इसके अंदर जल में पत्थर मारने जैसी आवाज सुनाई पड़ती है। इस मंदिर के शिवलिंग पर प्रतिवर्ष स्वत: ही एक शिव आकृति अंकुरित होती है। मंदिर की व्यवस्था देख रहे तीर्थ पुरोहित संतोष कौशिक बताते हैं कि इस शिवलिंग में प्रतिवर्ष एक अंकुर उभरता है, जिसके फूटने पर देवी-देवताओं व शिव आकृति अलग-अलग रूप में निकलती हैं।

बड़े-बड़े वैज्ञानिक आज तक इसका खुलासा नहीं कर पाए कि आखिर ऐसा क्यों होता है। उन्होंने बताया कि इस मंदिर में ब्रह्मा जी के चार मुख की सफेद प्रतिमा है। चार मुख ईश्वर की देन है, क्योंकि इस मंदिर की स्थापना कब और किसने की इसका उनको भी संज्ञान नहीं है। उनका कहना है कि इस मंदिर की देखरेख बुजुर्गों के समय से उन्हीं का परिवार करता चला आ रहा है।

प्रशासन की मदद से 101 सीढ़ियों का कराया गया था निर्माण

पूर्वजों का कहना था कि मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। इस मंदिर तक पहुंचे के लिये पहले सीढियां नहीं थी तथा इसकी चारदीवारी भी बहुत बाद में हुई। गंगा जी इस मंदिर से होकर गुजरती थी। अब गंगा ने अपना स्थान यहां से त्याग कर पांच किलोमीटर दूर अमरोहा जिले की सीमा में बना लिया हैं। पूर्व में मंदिरों की देखभाल की जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने संभाल रखी थी। गंगा स्नान मेले से प्राप्त आय का आठवां हिस्सा मंदिरों के रखरखाव में खर्च किया जाता था। प्रशासन के सहयोग से वर्ष 1885 से 1890 के बीच इस मंदिर तक पहुंचने के लिये 101 सीढ़ियों का निर्माण कराया गया।

सीढ़ियों के पास एक-एक पत्थर लगा हुआ है। जिस पर उस समय जिलाधिकारी मेरठ एस.एम. राहट बहादुर व तहसीलदार हापुड़ जोजफ हैनरी का नाम खुदा हुआ है। वर्ष 1960 में जिला परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष विष्णु शरण दबलिश ने मेले से प्राप्त आय में से मंदिर के नाम आर्थिक सहायता न देने का नोटिस जारी कर दिया। जिससे इस मंदिर के रखरखाव का कार्य ठप हो गया।


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