Hardoi Lok Sabha Election 2024: वोट बैंक के भरोसे भाजपा तो दलीय और मुस्लिम वोटों के भरोसा सपा और बसपा,
भाजपा प्रत्याशी जय प्रकाश रावत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और मजबूत संगठन की बदौलत पांचवीं बार सांसद बनने के लिए मैदान में हैं। तो गठबंधन से सपा प्रत्याशी ऊषा वर्मा जातीय वोट और पीडीए की दम पर जीत के प्रति आशान्वित हैं। बसपा ने यहां से एमएलसी भीमराव अंबेडकर को बड़ी उम्मीद के साथ प्रत्याशी बनाया है। सभी प्रत्याशी जोरशोर से चुनाव प्रचार में जुटे हैं।
पंकज मिश्र, हरदोई। सुरक्षित संसदीय क्षेत्र हरदोई में नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद प्रत्याशी सामने आ गए हैं। वैसे तो यहां पर 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा से सपा और बसपा का है।
भाजपा प्रत्याशी जय प्रकाश रावत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और मजबूत संगठन की बदौलत पांचवीं बार सांसद बनने के लिए मैदान में हैं। तो गठबंधन से सपा प्रत्याशी ऊषा वर्मा जातीय वोट और पीडीए की दम पर जीत के प्रति आशान्वित हैं। बसपा ने यहां से एमएलसी भीमराव अंबेडकर को बड़ी उम्मीद के साथ प्रत्याशी बनाया है। सभी प्रत्याशी जोरशोर से चुनाव प्रचार में जुटे हैं।
वर्ष 2019 के चुनावी समीकरणों को देखें तो हाथी को साथ लेकर तेजी से दौड़ी साइकिल ने 41.18 प्रतिशत मत हासिल किए थे, तो भाजपा ने अपने बल पर 53.71 प्रतिशत वोट पाए। जबकि 2014 के चुनाव में दूसरी स्थिति थी और सपा-बसपा ने अलग अलग चुनाव लड़कर 16 प्रतिशत के आसपास वोट पाए थे, जबकि उसमें भी भाजपा ने 21 प्रतिशत मत हासिल कर जीत दर्ज कराई थी। फिलहाल, इस चुनाव में भाजपा को सवर्ण के साथ पिछड़े और अनुसूचित जाति में फैले वोट बैंक पर भरोसा है, तो सपा और बसपा अपनी पार्टी को मिलने वाले वोट के साथ ही मुस्लिमों के भरोसे है। अब जनता किसे मौका देती है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा, फिलहाल सभी दल चुनाव प्रचार में जुटे हैं।
हरदोई सुरक्षित सीट पर हमेशा सवर्ण मतदाता निर्णायक की भूमिका में रहे। 2009 के चुनाव में सपा को सभी का साथ मिला और 20.75 प्रतिशत मत हासिल कर ऊषा वर्मा सांसद बनीं थीं। इस चुनाव में बसपा का भी सवर्ण समेत अन्य जातियों ने साथ निभाया और बसपा प्रत्याशी रामकुमार कुरील ने 14.19 प्रतिशत वोट पाए थे। जबकि भाजपा की पूर्णिमा वर्मा को मात्र 3.82 प्रतिशत वोट मिले थे।
धीरे-धीरे समय बदला और सवर्ण ने भाजपा की तरफ रुख किया और वर्ष 2014 में अंशुल वर्मा 21.03 प्रतिशत मत हासिल कर सांसद बने थे। हालांकि इस चुनाव में सपा का वोट कम होकर 16.13 पर पहुंच गया, जबकि बसपा का दो प्रतिशत बढ़कर 16.28 प्रतिशत पर पहुंच गया था।
2019 के चुनाव में विपक्षी दलों को लगा कि अगर सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़े तो भाजपा को मिले मत से अधिक पहुंचकर कुर्सी पर कब्जा किया जा सकता है। इस चुनाव में बसपा और सपा एक साथ लड़ी तो सपा की ऊषा वर्मा को 41.18 प्रतिशत मत जरूर मिले, लेकिन भाजपा के जय प्रकाश रावत ने लंबी छलांग लगाकर 53.71 प्रतिशत पर पहुंच गए।
वर्ष 2019 के चुनाव के बाद 2022 में हुए विधान सभा चुनाव में बेसहारा जानवर बड़े मुद्दे के रूप में सामने आए, लेकिन जनता ने सुशासन और राशन पर भरोसा कर आठों की आठ सीट भाजपा की झोली में डाल दीं। अब 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा अपनी योजनाओं के साथ सुशासन पर वोट मांग रही है तो एक साथ लड़ चुकी सपा और बसपा इस बार अलग अलग राह पर चलकर भाजपा को घेरने में जुटी हैं। दोनों दलों की अपने अपने वोट के साथ मुस्लिमों पर निगाहे हैं तो भाजपा योजनाओं के सहारे सभी में घुसने का प्रयास कर रही है।