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Hathras Stampede: सिपाही से 'परमात्मा' बने भोले बाबा का कई राज्यों में साम्राज्य, हर सभा में उमड़ती लाखों की भीड़, लेकिन...

Hathras Satsang Stemped सत्संग में जुटने वाली भीड़ की सुरक्षा के लिए बाबा पुलिस प्रशासन पर भरोसा नहीं करते। ट्रैफिक से लेकर सुरक्षा की जिम्मेदारी बाबा के गुलाबी रंग की वर्दी वाले सेवादार निभाते हैं। सेवादार बनने के लिए भक्त आवेदन करते हैं। इन सेवादारों की आयोजन से पहले ड्यूटी लगाई जाती है। समिति के प्रमुख इनकी ड्यूटी लगाते हैं।

By Jagran News Edited By: Vinay Saxena Updated: Wed, 03 Jul 2024 09:55 AM (IST)
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सूट-बूट में 'भोले बाबा' और बगल में दूसरी कुर्सी पर उनकी पत्नी।- फाइल फोटो
डॉ. राहुल सिंघई, हाथरस। इंटेलीजेंस विभाग के सिपाही सूरज पाल सिंह ने 17 साल पहले नौकरी से इस्तीफा दिया और खुद को नई पहचान दी। ये पहचान थी साकार विश्व हरि की। अंदाज संत महात्मा और प्रवचन देने वालों से एकदम अलग। सूट-बूट और काला चश्मा, मंच पर चांदी का चमकता सिंहासन और बगल में दूसरी कुर्सी पर पत्नी। पूजा सामग्री और न प्रसाद फल-फूल।

उत्तर प्रदेश के जिलों से निकलते हुए आस्था का साम्राज्य देश के कई राज्यों में गांव-गांव तक पहुंच गया। पुलिस प्रशासन, नेता और मीडिया से दूरी बनाकर भोले बाबा गरीब, वंचित समाज का परमात्मा बन गया। पहले उसके अनुयायियों में वंचित समाज के लोग मुख्य तौर पर जुड़े थे, लेकिन जब उसके साथ सभी जाति-वर्ग के लोग जुड़े तो उसने अपना नाम बदल लिया।

हर सत्संग सभा में लाखों की भीड़ उमड़ती, लेकिन न तो पुलिस की सुरक्षा के लिए आवेदन किया जाता और न ही कोई बड़ा प्रचार-प्रसार। खुद को साकार विश्व हरि बताने वाले भोले बाबा ने अपनी पैतृक जमीन पर आश्रम की स्थापना की। इसके बाद घूम-घूमकर सत्संग शुरू कर दिया। बाबा का प्रभाव बढ़ते ही गांव-गांव और शहरों में समितियां बन गईं। इन समितियों के माध्यम से अपने-अपने क्षेत्र में सत्संग का आयोजन कराया जाने लगा।

समिति में 50 से 60 सदस्यों के माध्यम से सत्संग का प्रस्ताव बाबा को दिया जाता है। इसके बाद बाबा स्वीकृति देते हैं। आयोजन पर होने वाले खर्च की धनराशि समिति अपने सदस्यों से जुटाती है। समय के साथ बाबा के अनुयायी उत्तर प्रदेश के बाहर उत्तराखंड, राजस्थान और मध्यप्रदेश तक बन गए। हर सत्संग के लिए आयोजन समिति अपने माध्यम से अनुयायियों तक आयोजन की जानकारी भेजकर आमंत्रित करती है।

सत्संग में आने वाले अनुयायी अपने खर्च पर आयोजन स्थल तक पहुंचते हैं। आयोजक बाबा की अनुमति मिलने के बाद ही भंडारे का इंतजाम करते हैं। हर सत्संग में लाखों की भीड़ जुटती है। बाबा का सत्संग मध्यप्रदेश के ग्वालियर, राजस्थान और उत्तराखंड के कई जिलों में होता है।

व्यवस्था के लिए गुलाबी वर्दी वाले सेवादारों की फौज

सत्संग में जुटने वाली भीड़ की सुरक्षा के लिए बाबा पुलिस प्रशासन पर भरोसा नहीं करते। ट्रैफिक से लेकर सुरक्षा की जिम्मेदारी बाबा के गुलाबी रंग की वर्दी वाले सेवादार निभाते हैं। सेवादार बनने के लिए भक्त आवेदन करते हैं। इन सेवादारों की आयोजन से पहले ड्यूटी लगाई जाती है। समिति के प्रमुख इनकी ड्यूटी लगाते हैं। आयोजन के लिए प्रशासन की अनुमति में कहीं भीड़ की संख्या का उल्लेख नहीं किया जाता।

न प्रसाद न चढ़ावा, न फूल न चंदा

साकार विश्व हरि के आयोजन में न तो कोई प्रसाद होता है न चढ़ावा चढ़ाया जाता है। अनुयायी पहुंचते हैं और मंच के नीचे से बाबा को प्रणाम करते हैं। इसके कारण बाबा की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी। बाबा न किसी भगवान का नाम लेते हैं और न कोई साहित्य या सामग्री बेचते हैं।

पेंशन से चलता है बाबा का खर्च

फिरोजाबाद जिले में बाबा का सत्संग करा चुके विजय सिंह बताते हैं कि परमात्मा न तो चंदा लेते हैं और न किसी को सीधे आशीर्वाद देते हैं। सिर्फ सदमार्ग दिखाते हैं। अगर किसी समिति द्वारा जनता से चंदा करने की जानकारी होती है तो उसे बर्खास्त कर दिया जाता है। सत्संग के दौरान बाबा के ठहरने की व्यवस्था आयोजन समिति द्वारा की जाती है। बाबा के यहां कोई वीआइपी कल्चर भी नहीं है।

मंच पर माताजी के अलावा किसी को नहीं स्थान

विजय सिंह बताते हैं कि सत्संग के मंच पर केवल दो कुर्सियां होती हैं। एक पर बाबा और दूसरी पर मां जी बैठती हैं। बाबा की अनुपस्थिति में मां जी प्रवचन करती हैं। पिछले तीन महीने से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा है, इसलिए वे मंच पर नहीं बैठतीं।

अनुयायी करते हैं प्रचार-प्रसार

जिस जिले में बाबा के सत्संग का आयोजन होता है, उस जिले की समिति प्रचार करती है। अनुयायी एक दूसरे को सोशल मीडिया के माध्यम से संदेश भेजते हैं। इसके बाद अनुयायी मिलकर वाहनों की व्यवस्था करते हैं। हर अनुयायी अपना किराया खर्च खुद देता है। बाबा का यू-ट्यूब चैनल और फेसबुक पेज है, जिसमें लाखों की संख्या में सबस्क्राइबर हैं।

ग्वालियर के बाद मैनपुरी पहुंचे थे बाबा

हाथरस के सिकंदराराऊ में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बाबा मैनपुरी के बिछवां से पहुंचे थे। सूत्रों के मुताबिक एक माह पहले बाबा ग्वालियर में रहे। उसके बाद मैनपुरी के बिछवां में समिति की ओर से बुलाया गया था। बाबा मैनपुरी से ही सिकंदराराऊ पहुंचे और वापस मैनपुरी जाना था।

बाबा की काली चाय व रज को लालायित रहते हैं अनुयायी

अनुयायियों को भोले बाबा के संत्सग का सालभर इंतजार रहता है। एक अनुयायी के अनुसार सत्संग में भोले बाबा पीड़ितों को काली चाय पिलाते हैं। इसके सेवन से उसकी बीमारी व अन्य कष्ट दूर हो जाते हैं। इस चाय को पीने के लिए अनुयायी काफी लालायित रहते हैं। चाय मिलने वाले अनुयायी खुद को भाग्यशाली समझते हैं। जिन्हें नहीं मिलती वे बाबा का आदेश मानकर संतोष कर लेते हैं। अनुयायियों को विश्वास है कि भोले बाबा उनका कष्ट हरेंगे। उनकी आस्था है कि बाबा के आशीर्वाद से हर समस्या का समाधान संभव है। मनोकामना पूर्ण होने के बाद अनुयायी बाबा के प्रति अपनी कृतज्ञता जताने भी पहुंचते हैं।

बाबा के चरणों की रज के प्रति दीवानगी

सभी आयु वर्ग के लोग बाबा के अनुयायी हैं। बाबा व्यक्तिगत रूप से किसी से नहीं मिलते। इसलिए अनुयायी उनके चरणों की रज लेने के लिए उत्सुक रहते हैं। कई बार तो बाबा का काफिला जिस मार्ग से गुजरता है, अनुयायी वहां जमीन पर लेट जाते हैं। महिलाएं आंचल में रज भरकर ले जाती हैं।

पटियाली में बाबा के वैभव का 'व्हाइट हाउस'

सिपाही से साकार बाबा बने सूरजपाल सिंह का वैभव उनके व्हाइट हाउस में देखने को मिलता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में बने इस परिसर में आवास के साथ आश्रम भी संचालित है। इसे किलेनुमा अंदाज में बनाया गया है। बाहरी दीवारें सफेद रंग में हैं और ऊंचाई इतनी है कि बाहर से कोई झांक भी न सके। सूरज पाल ने पैतृक गांव में एक हेक्टेयर से अधिक भूमि पर आश्रम की स्थापना वर्ष 1992 में की। पटियाली-सिढ़पुरा मार्ग स्थित मार्ग पर आश्रम का मुख्य गेट है।

आश्रम की स्थापना के साथ इनका नाम साकार विश्व हरि (भोले बाबा) हो गया। शुरुआत में आश्रम परिसर में निर्माण कम था और खुली भूमि अधिक थी। धीरे-धीरे इस परिसर में अन्य भवनों का निर्माण होता रहा। जानकार बताते हैं कि अब परिसर में विशाल रसोई गृह है। जिसमें हर माह के प्रथम मंगलवार को होने वाले विशाल सत्संग के दौरान भोजन तथा प्रसाद बनता है। सैकड़ों सेवादार इसमें सहयोग करते हैं।

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