Hathras Stampede: …तो बच जाती 121 लोगों की जान, एलआईयू ने चार बार चेताया, फिर भी चौकन्ना नहीं हुआ प्रशासन
सत्संग के बाद भगदड़ मामले में अधिकारियों की लापरवाही की परतें खुलने लगी हैं। आयोजकों और जिम्मेदार अफसरों ने ठीक से अपनी जिम्मेदारी निभाई होती तो 121 लोगों की मौत नहीं होती। एलआईयू ने चार बार चेताया। भीड़ अधिक होने तक की जानकारी दी। इसके बाद भी प्रशासन ने सुध नहीं ली। एलआईयू ने न्यायिक जांच आयोग को रिपोर्ट सौंप दी है।
जागरण संवाददाता, हाथरस। दो जुलाई को सूरजपाल (नारायण साकार विश्व हरि) के सत्संग के बाद भगदड़ मामले में अधिकारियों की लापरवाही की परतें खुलने लगी हैं। आयोजकों और जिम्मेदार अफसरों ने ठीक से अपनी जिम्मेदारी निभाई होती तो 121 लोगों की मौत नहीं होती।
सत्संग की अनुमति देने में महज औपचारिकताएं पूरी की गईं। मौका मुआयना किए बिना अनुमति दे दी गई। विद्युत और अग्निशमन विभाग से एनओसी ही नहीं ली गई। एलआईयू ने चार बार चेताया। भीड़ अधिक होने तक की जानकारी दी। इसके बाद भी प्रशासन ने सुध नहीं ली। एलआईयू ने न्यायिक जांच आयोग को रिपोर्ट सौंप दी है।
आवेदक का आधार कार्ड होता है जरूरी
सत्संग की अनुमति के लिए जून के दूसरे सप्ताह में आवेदन किया गया था। यह मात्र औपचारिकता थी। रैली, सभा, सत्संग की अनुमति के लिए मुख्य आयोजक की ओर से एसडीएम को आवेदन दिया जाता है।
इसमें आवेदक का आधार कार्ड भी लगाना होता है। कार्यक्रम कहां और कब होगा, कितनी भीड़ आने की संभावना है, ये तथ्य बताने होते हैं। इसके बाद पुलिस-प्रशासन से रिपोर्ट ली जाती है।
बीट सिपाही से एसडीएम तक होते हैं जिम्मेदार
नियमानुसार, अनुमति प्रार्थना पत्र एसडीएम के यहां से सीओ और फिर थाना प्रभारी के बाद चौकी इंचार्ज तक जाता है। चौकी इंचार्ज के बाद बीट सिपाही की रिपोर्ट लगती है। अनुमति से पहले पुलिस को कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण और पूरी जानकारी करनी होती है।
अनुमति का आवेदन बीट सिपाही की रिपोर्ट के बाद, थानेदार और सीओ की रिपोर्ट लगती है। अग्निमशन, विद्युत विभाग की एनओसी ली जाती है। बड़े आयोजन में एसडीएम, सीओ, कोतवाल को मौका मुआयना करना होता है।
इन सब की औपचारिकताओं के बाद आवेदन पुन: एसडीएम के पास पहुंचता है। इसके बाद सशर्त अनुमति-पत्र जारी किया जाता है। बड़ा कार्यक्रम होने पर डीएम और एसपी के संज्ञान में भी लाया जाता है।
अग्निशमन विभाग से कोई अनुमति नहीं
सूरजपाल के सत्संग को अनुमति प्रक्रिया पूरी किए बिना ही दे दी गई। मुख्य अग्निशमन अधिकारी आरके वाजपेयी का कहना है कि इस आयोजन के लिए अग्निशमन विभाग से कोई अनुमति नहीं ली गई।
आवेदन आया होता को टीम भेजकर मौका मुआयना कराया जाता। पर्याप्त व्यवस्थाएं की जातीं। फिर भी अधिकारियों की सूचना पर एक दमकल वहां भेज दी गई थी।
15 दिन पहले जता दी थी अधिक भीड़ की संभावना
एलआईयू ने चार बार जिला प्रशासन को चेताया था, लेकिन अधिकारी अनदेखी करते रहे। एलआईयू ने आयोजन से 15 दिन पहले ही तैयारियों को देखते हुए अधिक भीड़ की संभावना जता दी थी, मगर एसडीएम, सीओ समेत अन्य अधिकारियों ने सत्संग के बड़े आयोजन को गंभीरता से नहीं लिया।
पीठ दिखाने वाली पिंक आर्मी थी सर्वेसर्वा
सूरजपाल की सुरक्षा में गरुड़ सेना, नारायणी सेना और हरिवाहक सेना तैनात होती है। इसका भीड़ नियंत्रण से कोई मतलब नहीं होता। कार्यक्रम स्थल के बाहर लाठी वाले सेवादारों को ¨पक आर्मी कहते हैं।
इनका काम यातायात नियंत्रण से लेकर अन्य बाहरी व्यवस्थाओं की होती है। हाथरस हादसे के बाद पिंक आर्मी ही सर्वेसर्वा (प्रमुख) बन गई। हालात जब बेकाबू हो गए तो पिंक आर्मी वालों ने सबसे पहले अपनी वर्दी उतारकर थैला में रखी। सादा कपड़े पहनकर भाग गए।
यह भी पढ़ें: Rahul Gandhi से मिलीं शहीद अंशुमान की मां, कहा- बंद की जाए अग्निवीर योजना; 3 दिन पहले मिला कीर्ति चक्र