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Hathras Stampede: 'एफआईआर में साकार बाबा का नाम क्यों नहीं', तमाम सवालों को लेकर पुलिस पर उठ रहे सवाल

हाथरस में सत्संग के बाद हुई भीड़ में मरने वालों की संख्या 121 हो चुकी है। इस मामले में मामले में पुलिस ने प्राथमिकी तो दर्ज कर ली है लेकिन उसमें बाबा का नाम न होना लोगों के गले नहीं उतर रहा है। इसको लेकर आम लोगों के साथ ही राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी सवाल उठाए हैं। पुलिस ने मुख्य सेवादार और आयोजकों को ही आरोपित बनाया है।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Published: Thu, 04 Jul 2024 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 04 Jul 2024 06:00 AM (IST)
हाथरस में सत्संग के बाद हुई भीड़ में मरने वालों की संख्या 121 हो चुकी है

 जागरण संवाददाता, हाथरस। सिकंदरराऊ के गांव फुलरई में नारायण साकार विश्व हरि (भोले बाबा) के सत्संग में भगदड़ से हुई मौतों के मामले में पुलिस ने प्राथमिकी तो दर्ज कर ली है, लेकिन उसमें बाबा का नाम न होना लोगों के गले नहीं उतर रहा है। इसको लेकर आम लोगों के साथ ही राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी सवाल उठाए हैं।

पुलिस प्रशासन की भी लापरवाही

पुलिस ने मुख्य सेवादार और आयोजकों को ही आरोपित बनाया है। प्राथमिकी में भी घटना के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष कुमार कहते हैं कि घटना के पीछे बाबा की बड़ी लापरवाही है। उनके विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत होना चाहिए। इसी के साथ पुलिस प्रशासन की भी लापरवाही है। एसडीएम ने जब अनुमति दी तो उसके लिए व्यवस्था क्यों नहीं की गई? उन्हें तत्काल निलंबित किया जाना चाहिए।

वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप कौशिक ने कहा कि जो अपराध आयोजकों व मुख्य सेवादार पर बनता है, वह बाबा पर भी बनता है। पुलिस को विवेचना में इसे शामिल करते हुए बाबा को साजिश का आरोपित बनाना चाहिए। धारा 61 के तहत मुकदमा पंजीकृत होना चाहिए। साकार विश्व हरि ने अपने भाषण के माध्यम से अंधविश्वास फैलाया, इस पर भी मुकदमा हो सकता है।

इन धाराओं में मुकदमा दर्ज

कोतवाली सिकंदराराऊ के एसएचओ आशीष कुमार के मुताबिक सत्संग हादसे में भारतीय न्याय संहिता की धारा 105 (गैर इरादतन हत्या), 110 (गैर-इरादतन हत्या का प्रयास), 126 (2) (गलत तरीके से रोकना), 223 (लोकसेवक के आदेश का पालन न करना), 238 (साक्ष्य मिटाना) के अंतर्गम मुकदमा दर्ज किया गया है। साकार विश्व हरि का नाम भी जांच के बाद बढ़ाया जा सकता है। पुलिस का आरोप है कि आयोजकों ने 80 हजार की मंजूरी लेकर तीन गुनी भीड़ जुटाई। हादसे के बाद साक्ष्यों को मिटाया। बचाव कार्य में सहयोग नहीं किया।

कितनी सजा का प्रावधान

गैर इरादतन हत्या के मामले में पांच साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।

कई अधिकारियों से होकर गुजरता है अनुमति का प्रार्थनापत्र

जब भी कोई कार्यक्रम रैली, सभा, सत्संग का कार्यक्रम होता है, तो उसके लिए मुख्य आयोजक की ओर से एसडीएम को संबोधित अनुमति के लिए आवेदन किया जाता है। इसमें आवेदक का आधार कार्ड भी साथ लगाना होता है। आवेदनकर्ता को ये बताना होता है कि कार्यक्रम कहां और कब है? कार्यक्रम में कितनी भीड़ आने की संभावना है। अगर कोई जुलूस है तो उसका रूट क्या होगा? इसी के हिसाब से यातायात व्यवस्था की जानकारी पुलिस-प्रशासन करता है।

हवा-पानी से लेकर पंडाल और कुर्सी एवं बैरिकेडिंग के बारे में भी बताया जाता है। नियमानुसार अनुमति प्रार्थनापत्र एसडीएम के यहां से सीओ और फिर थाना प्रभारी के बाद चौकी इंचार्ज तक जाता है। चौकी इंचार्ज के बाद बीट सिपाही की रिपोर्ट लगती है। अनुमति देने से पहले पुलिस को कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण और पूरी जानकारी करनी होती है।

80 हजार लोगों की जानकारी दी गई थी

अनुमति का आवेदन बीट सिपाही की रिपोर्ट के बाद, थानेदार और सीओ की रिपोर्ट के बाद पुन: एसडीएम के पास पहुंचता है। इसके बाद सशर्त अनुमति-पत्र जारी किया जाता है। बड़ा कार्यक्रम होने पर डीएम और एसपी के संज्ञान में भी दिया जाता है। स्थानीय अधिकारियों का दावा है कि फुलरई के कार्यक्रम में सभी औपचारिकताएं पूरी की गई हैं। 80 हजार लोगों की जानकारी दी गई थी, जबकि भीड़ अधिक रही।


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