UP Lok Sabha Votes Counting: मजबूत गढ़ में अपने ही बुने जाल में उलझती गई बसपा, कोई टोटका नहीं आया काम
आज मतदाता बसपा के लुभावने झांसे में नहीं फंस रहे। यही कारण है कि कभी सपा के साथ तो कभी अन्य दल को साथ किया और इस बार अकेले नैया पार करने को प्रत्याशी उतारा था लेकिन यह टुटका भी काम नहीं आया। इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में पहले राउंड से ही बसपा अपने दो प्रमुख दल भाजपा-सपा से बहुत पीछे होने लगी थी।
जागरण संवाददाता, उरई। जालौन-गरौठा-भोगनीपुर संसदीय क्षेत्र में लोकसभा में बसपा ने भले ही एक बार जीत हासिल की हो लेकिन अनुसूचित जाति बाहुल्य वाली इस सीट पर विधानसभा से लेकर निकाय चुनाव तक में कभी इस दल का दबदबा रहता था। चुनावी दंगल में अपना असर रखने वाली बसपा को मतदाताओं ने दिलों से उतार दिया।
जो कभी एकतरफा जीत का जरिया बने थे आज वह मतदाता उनके लुभावने झांसे में नहीं फंस रहे। यही कारण है कि कभी सपा के साथ तो कभी अन्य दल को साथ किया और इस बार अकेले नैया पार करने को प्रत्याशी उतारा था, लेकिन यह टुटका भी काम नहीं आया। इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में पहले राउंड से ही बसपा अपने दो प्रमुख दल भाजपा-सपा से बहुत पीछे होने लगी थी।
1952 से एससी सुरक्षित सीट पर कभी कांग्रेस का सिक्का चलता था। 1984 के बाद राजनीति में उभरी बसपा का यहां दबदबा बढ़ने लगा। यहां अनुसूचित जाति के वोट बैंक के दम पर अपनी शक्ति का एहसास कराने वाली बसपा का वह मत कब भाजपा की ओर आहिस्ता-आहिस्ता सरक गया उन्हें भनक तक नहीं लगी। बात संसदीय चुनाव की करें तो इस सीट पर 1991 के चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल की।
भाजपा के गया प्रसाद कोरी पहली बार सांसद बने। 1996 और 1998 दोनों ही चुनावों में यहां भाजपा के भानु प्रताप वर्मा सांसद बने। 1999 में बसपा ने ब्रजलाल खाबरी को मैदान में उतारा। उन्होंने भानु प्रताप वर्मा को हरा कर उनकी हैट ट्रिक नहीं बनने दी। 2014 में फिर से भाजपा भानु प्रताप सांसद चुने गए। भानु ने बसपा के ब्रजलाल खाबरी को 2 लाख 87 हजार 202 वोटों से हराया। 2019 में भाजपा के भानु प्रसाद वर्मा ने बसपा के अजय पंकज को एक लाख 57 हजार 377 मतों से हराया।
कांग्रेस को पीछे करने का श्रेय बसपा को
जिले की राजनीति में कांग्रेस को पीछे करने का श्रेय बसपा को है। 1988 में प्रदेश की तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार ने 14 साल बाद राज्य में स्थानीय निकाय के चुनाव कराने का फैसला किया। इन चुनावों में बसपा ने जिले भर में मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर सियासी फिजा को रोमांचक बना दिया। ध्रुवीकरण का ऐसा माहौल बना कि मुसलमान और दलित कांग्रेस से छिटक कर बसपा में चले गए। विधानसभा चुनावों में बसपा को जो सफलताएं मिलीं उससे यह लामबंदी गहराती गई।1989 आते-आते जिले में एक नई राजनीतिक ताकत का उदय बसपा के रूप में हुआ। कालपी छोड़ दी जाए तो बसपा ने तीनों विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। कालपी से बसपा के श्रीराम पाल काफी कम वोटों जनतापार्टी के उम्मीदवार शंकरसिंह से हारे थे। 1991 की रामलहर में भाजपा सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गई। उस समय भाजपा ने गयाप्रसाद कोरी को इस संसदीय सीट से उतारा जो जीत गए।साथ में तीन विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। कालपी में बसपा की एक मात्र जीत हुई। 1993 विधानसभा चुनाव में चारों सीटों पर बसपा फिर जीत गई। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भानु प्रताप को उतारा, जो जीत गए। 1998 और 99 में लोकसभा चुनाव हुए जिसमें 1998 में भानु तो 1999 में बसपा के ब्रजलाल खाबरी जीत गए। 2002 में बसपा ने एक नया प्रयोग किया, जिसमें पुराने चेहरों को हटा नए चेहरों को मौका दिया दिया। इसमें केवल माधौगढ़ सीट बसपा जीत सही, यहां ब्रजेंद्र सिंह विजयी रहे।
बसपा अन्य तीनों सीटें हार गई। वहीं कांग्रेस ने बसपा के पुराने चेहरों अपनी तरफ मिला लिया, लेकिन उसको इसका फायदा नहीं मिला। 2007 विधानसभा चुनाव में बसपा को माधौगढ़, कालपी, कोंच सीट में जीत मिली। 2012 चुनाव में बसपा को केवल माधौगढ़ विधानसभा सीट पर जीत मिली। 2014 लोकसभा चुनाव में बसपा दूसरे नंबर पर रही थी।2017 विधानसभा चुनाव में यहां बसपा का खाता नहीं खुला। 2019 लोकसभा चुनाव में फिर भाजपा जीती और बसपा दूसरे नंबर पर रही। 2024 लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी सुरेश चंद्र गौतम पहले राउंड से ही पिछड़ते रहे। यहां तक की 15 राउंड के बाद तक बसपा के सुरेश चंद्र गौतम को 49393 मत मिले थे। बात 2019 के चुनाव की करें तो बसपा दूसरे नंबर पर रही थी और उसे 423386 वोट मिले थे।
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