तीन जिलों की सरहद से वरुणा का उद्गम
By Edited By: Updated: Tue, 28 May 2013 09:06 PM (IST)
मुंगराबादशाहपुर (जौनपुर): भगवान शिव के त्रिशूल पर बसे विश्व प्रसिद्ध अलौकिक नगर काशी को वाराणसी नाम प्रदान करने वाली नदी वरुणा का उद्गम तीन जनपदों के सरहद से हुआ है। जौनपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़ की सीमा पर स्थित इनऊछ ताल के मैलहन झील से वरुणा नदी का उद्गम हुआ है। सैकड़ों गांवों को जीवन प्रदान करने वाली वरुणा नदी का अस्तित्व उपेक्षा के चलते खतरे में है।
जौनपुर जनपद के पश्चिमी सिरे पर बसे नगर मुंगराबादशाहपुर से बारह किमी. दूर प्रतापगढ़ व इलाहाबाद की सरहद पर स्थित इनऊछ ताल की झील से निकलकर वरुणा नदी 202 किमी. सफर तय कर वाराणसी के अस्सी घाट पर अस्सी नदी में समा जाती है। उद्गम स्थल से नीवी वारी इलाहाबाद लगभग 30 किमी. तक नदी की सफाई का कार्य कराया गया है। राजस्व अभिलेख में नीवी वारी वरुणा ड्रेन दर्ज है उसके बाद नदी के रूप में है लेकिन अतिक्रमण व उपेक्षा के चलते नदी के अस्तित्व पर संकट छा गया है। कभी तटीय गांवों को पेयजल सिंचाई आदि की सुविधा प्रदान करने वाली नदी अब केवल वर्षा होने पर ही अस्तित्व में आ जाती है। उद्गम स्थल से नीवी वारी तक खुदाई होने के बाद नदी अस्तित्व में बनी रह गई है लेकिन नीवी वारी के बाद सैकड़ों किमी. तक नदी का अस्तित्व खतरे में है। मान्यता है कि वरुणा नदी गंगा से भी प्राचीन है। मैलहन झील के दक्षिण पूर्व में भगवान इंद्र, वरुण, यम त्रिदेवों ने त्रिदेवेश्वर शिवलिंग स्थापित कर यज्ञ किया। देवता व ऋषियों के प्रसाद ग्रहण के उपरांत हस्त प्रक्षालन से मैलहन झील भर गई। त्रिदेव ने भर चुकी मैलहन झील से नदी खुदवा कर अस्सी नदी में मिलवा दिया। इसका विस्तार से वर्णन पुराण में भी प्राप्त होता है। 'वरना पाप हरना, काशी पाप नाशी' यह कहावत आज भी गांवों में सुनी जाती है। फिलहाल नदी का अस्तित्व बचाने का प्रयास न किया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब यह नदी कहावत ही मात्र बनकर रह जाएगी।मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर
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