हरि प्रबोधिनी एकादशी : दरिद्रता की प्रतीक अलक्ष्मी को भगाने का पर्व, जानें संपूर्ण विधान और मान्यता
हरि प्रबोधिनी एकादशी के मौके पर गन्ने से सूप को पीटकर दरिद्रता को भगाने की अवध व पूर्वांचल की परंपरा के क्रम में तड़के ही महिलाएं आयोजन को पूर्ण करेंगी। इसी के साथ दरिद्रता भगाने और देवताओं के आने की कामना की जाएगी।
जौनपुर, जागरण संवाददाता। अवध और पूर्वांचल की पुरातन परंपरा में दीपावली के बाद एकादशी की रात को लोगों के घरों से दरिद्रता को भगाने (अवधी में खेदने) की परंपरा का मान रखते हुए आयोजन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। घरों में पुराने सूप को निकालकर उसे पीटने के लिए सुरक्षित रख लिया गया है। वहीं बाजारों में गन्ने की बिक्री भी शुरू हो गई है।
घरों में तड़के सूर्योदय के पूर्व ही महिलाएं या परिवार की बुजुर्ग महिला गन्ने के आगे के हिस्से (गेड़) से सूप को घर के कोने कोने से बजाते हुए दरिद्रता को खदेड़ने की परंपरा का निर्वहन करती हैं। परंपराओं के निर्वहन के बाद वर्ष भर के लिए अलक्ष्मी यानी दरिद्रता को दूर रखने की मान्यता को पूर्ण किया जाता है।
आयोजन का ज्योतिषीय मान
समुद्र मंथन के दौरान विष निकलने के पश्चात पहले जयेष्ठा अलक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था अलक्ष्मी को दुखों एवं दारिद्रय का अधिष्ठात्री कहा जाता है। जिन घरों में विष्णु शिव, दुर्गा आदि देवी देवताओं की पूजा नहीं की जाती, घंटा घड़ियाल, शंख आदि की ध्वनि नहीं होती, वेदों के मंत्र नहीं पढ़े जाते, पर्व आदि नहीं मनाया जाता है तथा पितृ कर्म नहीं किए जाते, ऐसे घरों में दरिद्रतारूपी अलक्ष्मी का वास होता है ऐसा व्याख्यान लिंग पुराण में उल्लखित है।
हरि प्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु के योग निद्रा का चार मास पूर्ण हो जाता है और इसी रात्रि को भगवान विष्णु को घण्टे और शंख की ध्वनि से पुरुष सूक्त के मंत्रों का उच्चारण करके जगाने का विधान है और इसी रात्रि को घर से नकारात्मक ऊर्जा, दुख और दरिद्रता का प्रतीक अलक्ष्मी को दूर भगाने के लिए सूप को गन्ने से पीट कर ध्वनि करके दरिद्रता का निस्तारण किया जाता है।
इस दिन उत्पन्न हुए नवधान्य जैसे सिंघाड़ा, कंद व गन्ने की पूजा की जाती है तथा उसका सेवन भी किया जाता है। हर घरों में घण्टे शंख आदि उपलब्ध नहीं होता इसलिए सूप को गन्ने से पीट कर दरिद्रता का निस्तारण किया जाता है। यह एक लोकाचार प्रक्रिया है जो सदियों से चली आ रही है। शास्त्रों में इसका प्रमाण नहीं मिलता। - ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य, डॉ. शैलेष मोदनवाल, मछली शहर, जौनपुर।