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Road safety in Jaunpur : सड़क दुर्घटना के मामलों का निस्तारण कर ट्रिब्यूनल कोर्ट भर रहा पीड़ितों का जख्म

मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल कोर्ट) सड़क हादसों के पीड़ितों का जख्म भर रहा है। कुछ माह पूर्व हाईकोर्ट ने पूरे प्रदेश के लिए गाइड लाइन जारी किया है कि पहले पुराने मुकदमे निपटाएं जाए।

By Anand Swaroop ChaturvediEdited By: Saurabh ChakravartyUpdated: Tue, 22 Nov 2022 10:55 PM (IST)
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मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल कोर्ट) सड़क हादसों के पीड़ितों का जख्म भर रहा है।
जागरण संवाददाता, जौनपुर : मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल कोर्ट) सड़क हादसों के पीड़ितों का जख्म भर रहा है। हर माह दाखिल हो रहे 40 से 50 मुकदमों में औसतन 20 से 25 निस्तारित हो रहे हैं। सरायख्वाजा में 2017 में स्कूल बस के धक्के से घायल हुए मोटरसाइकिल सवार रोहित सिंह को पांच वर्ष बाद 20 लाख क्षतिपूर्ति मिली।

सिंगरामऊ में 2016 में ट्रक के धक्के से मृत छात्र के स्वजन को छह साल लड़ाई के बाद नौ लाख की क्षतिपूर्ति दिलाई गई। सरायख्वाजा के ही सिद्दीकपुर में सात फरवरी 2015 को कम्मरपुर सरपतहां निवासी शिक्षक रामजीत सिंह की स्कूल बस के धक्के से हुई मौत के बाद जज भूदेव गौतम ने इनके स्वजन को मय ब्याज 20 लाख की क्षतिपूर्ति दिलाई। इसी तरह कई मामले हैं जिसमें कोर्ट पीड़ितों को काफी राहत पहुंचा रही है।

इसके इतर अभी कोर्ट में 2330 मुकदमे लंबित हैं। हर माह 40 से 50 मुकदमे दाखिल हो रहे हैं। अगस्त में 74 मुकदमे आए। जिसमें 57 लोक अदालत में निस्तारित हुए। इसी तरह सितंबर में 37, अक्टूबर में 29 का निस्तारण जज भूदेव गौतम ने किया। कुछ माह पूर्व हाईकोर्ट ने पूरे प्रदेश के लिए गाइड लाइन जारी किया है कि पहले पुराने मुकदमे निपटाएं जाए। ऐसे मुकदमों की संख्या सौ के आसपास है जो 2015 के पूर्व के हैं।

व्यवस्था व क्लेम में बाधक हैं कई कारक

पहले नौ से दस अदालतों में एक्सीडेंट क्लेम के मामले देखे जाते थे। अब एक ही कोर्ट है, मुकदमों की संख्या में कमी नहीं आई है। ऐसे में फोरम व स्थाई लोक की तर्ज पर अधिकरण में भी 1-2 सदस्यों की नियुक्ति होनी चाहिए। जिस अनुपात में मुकदमे दाखिल हो रहे हैं, निस्तारण नहीं हो पा रहा है। पुलिस के समय से आरोप पत्र दाखिल न करने व बीमा कंपनी के कागजों के सत्यापन में देरी से भी समस्या है।

-वीरेंद्र सिन्हा, अधिवक्ता, सड़क परिवहन निगम।

सड़क पर बगैर बीमा के न चलें वाहन

एक ही कोर्ट से मुकदमों के निस्तारण में समस्या है। पुलिस भी समय से आरोप पत्र दाखिल कर दे तो निस्तारण में इजाफा हो। दुर्घटना करने वाली गाड़ियों का बीमा न होने से क्षतिपूर्ति की वसूली में दिक्कत व विलंब होता है। क्षतिपूर्ति भी कम मिलती है। कुछ मामलों में तो यदि वाहन स्वामी के नाम संपत्ति नहीं है तो वसूली भी नहीं हो पाती। इसके लिए कानून बने, अन्यथा राज्य ही दायित्व वहन करे। सड़क पर बिना बीमा के वाहन नहीं चलने चाहिए, यदि चल रहा है तो सरकार उत्तरदाई हो।

-यादवेंद्र चतुर्वेदी, वरिष्ठ अधिवक्ता।

ट्रैफिक पुलिस का प्रशिक्षण महज कोरम

ट्रैफिक पुलिस के प्रशिक्षण की व्यवस्था महज कोरम है। लखनऊ से आनलाइन कार्यशाला होती है। जिसमें जवानों को हेलमेट व सीटबेल्ट में किस तरह कार्रवाई करनी है तथा हादसों के बाद त्वरित उपचार के बारे में बताया जाता है, कभी यह विस्तार से नहीं बताया जाता कि हादसों को रोकने के लिए जवान क्या करें।

अभी तक किसी घटना में नहीं हुई वैज्ञानिक जांच

हादसों के बाद वैज्ञानिक जांच का नियम है। इसमें हादसे जिस स्थान पर हुए वहां की स्थिति, हादसों की प्रमुख वजह, सड़कों की बनावट व संरचना के साथ ही कोई और अहम कारण तो नहीं रहे जो हादसे की वजह बनी। यह जांच पुलिस की ओर से की जाती है। हालांकि जिले में अभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई जिसकी वैज्ञानिक जांच हो।

-मनीष कुमार वर्मा, जिलाधिकारी, अध्यक्ष सड़क सुरक्षा समिति।

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