श्रमजीवी विस्फोट कांड: दोनों आतंकियों को हुई मृत्युदंड की सजा, 18 साल बाद मिला इंसाफ; 14 लोगों की हुई थी मौत
श्रमजीवी एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में कोर्ट की तरफ से फैसला आया है। इस कांड के आतंकियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है। इसके साथ ही उनपर अलग-अलग धाराओं में जुर्माना भी लगाया गया। इस दौरान न्यायालय परिसर में सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था रही। सजा सुनाए जाने के बाद दोषियों को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच जिला जेल ले जाया गया।
जागरण संवाददाता, जौनपुर। उत्तर प्रदेश के सिंगरामऊ के हरपालगंज रेलवे स्टेशन के समीप हरिहरपुर क्रासिंग के पास श्रमजीवी एक्सप्रेस (Shramjeevi Express Blast) ट्रेन में 28 जुलाई 2005 को हुए बम विस्फोट (2005 Jaunpur train bombing) के मामले के बुधवार को दोपहर बाद 4.15 बजे अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम राजेश कुमार राय ने दोनों दोषी आतंकी बांग्लादेश निवासी हिलालुद्दीन उर्फ हिलाल व बंगाल निवासी नफीकुल विश्वास को मृत्युदंड की सजा सुनाया।
इसके साथ ही अलग-अलग धाराओं में जुर्माना भी लगाया। इस दौरान न्यायालय परिसर में सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था रही। सजा सुनाए जाने के बाद दोषी दोषियों को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में जिला जेल ले जाया गया। अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम की अदालत में मंगलवार को सजा के बिंदु पर बहस हुई थी।
22 दिसंबर को दोनों हुए थे दोषी करार
दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद न्यायाधीश ने सजा सुनाने के लिए बुधवार की तिथि नियत की थी। दोनों आतंकियों को 22 दिसंबर को दोषी करार दिया गया था।बुधवार को अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम की अदालत में श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन में बम विस्फोट के मामले में सजा सुनाए जाने के लिए दोषी करार दिए गए आतंकी बांग्लादेश निवासी हिलालुद्दीन उर्फ हिलाल व बंगाल निवासी नफीकुल विश्वास को कड़ी सुरक्षा में दोपहर बाद तीन बजकर 15 मिनट पर पेश किया गया।
दोनों पक्ष के अधिवक्ता रहे मौजूद
इसके बाद सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हुई। 4 बजकर 15 मिनट पर न्यायाधीश ने दोनों को मृत्युदंड व जुर्माना का फैसला सुनाया। इस दौरान कोर्ट में दोषियों के अधिवक्ता न्याय मित्र ताजुल हसन तथा अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता एडीजीसी वीरेंद्र मौर्य मौजूद रहे।इसके पूर्व मंगलवार को सजा के बिंदु पर हुई बहस में अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता एडीजीसी वीरेंद्र मौर्य ने अपना पक्ष रखते हुए विस्फोट की घटना को विरल से विरलतम बताया था। उन्होंने दिल्ली राज्य बनाम नवजोत संधू 2005 सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया।
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