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यूपी में भेड़ियों का आतंक: 22 बच्चों की मौत… 35 लोग घायल, 27 साल पहले का दर्दनाक इतिहास; जानिए कैसे हुआ था खात्मा

Wolf Terror In UP उत्तर प्रदेश में भेड़ियों का आतंक कोई नया नहीं है। प्रतापगढ़ सुल्तानपुर व जौनपुर के सई नदी के किनारे के गांवों में मार्च 1996 से अक्टूबर 1997 तक आतंक रहा। सुजानगंज महराजगंज व बदलापुर ब्लाक भी प्रभावित रहा था। उस दौरान यहां बहराइच जैसा भय व आतंक का माहौल आठ माह तक रहा। लोग घरों से बाहर निकलने में डरते थे।

By Anand Swaroop Chaturvedi Edited By: Riya Pandey Updated: Thu, 05 Sep 2024 09:03 PM (IST)
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यूपी में भेड़ियों के आतंक का दर्दनाक इतिहास
आनन्द स्वरूप चतुर्वेदी, जौनपुर। Wolf Terror In UP: प्रदेश में भेड़ियों का आतंक कोई नया नहीं है। 27 साल पहले मार्च 1996 से अक्टूबर 1997 तक इनका आतंक प्रतापगढ़, सुलतानपुर व जौनपुर में भी रहा।

सबसे अधिक आतंक जनपद के सुजानगंज, महराजगंज व बदलापुर ब्लाक के सई नदी के किनारे के गांवों में था। यहां के 22 बच्चों को भेड़ियों ने मार डाला था। इनके हमले में लगभग 35 लोग घायल हुए थे। उस दौरान यहां बहराइच जैसा भय व आतंक का माहौल आठ माह तक रहा। लोग घरों से बाहर निकलने में डरते थे।

छह माह में 13 आदमखोर भेड़ियों को था मारा

प्रदेश के कई जिलों के वन विभाग के अधिकारियों ने गांवों में रहकर सघन अभियान चलाकर छह माह में 13 आदमखोर भेड़ियों को मारा था। इसके बाद स्थिति सामान्य हुई थी। सई नदी के किनारे प्रतापगढ़, सुल्तानपुर व जौनपुर के गांवों में मार्च 1996 में भेड़ियों का आतंक शुरू हुआ। कुछ दिन बाद प्रतापगढ़ व सुलतानपुर की सीमा से ये गायब हो गए।

इसके बाद जौनपुर के सुजानगंज, बदलापुर व महराजगंज ब्लाक के गांवों में इनका आतंक बढ़ा। सबसे पहले 23 फरवरी 1997 को बक्शा ब्लाक के कुसफेरा गांव में एक दो साल के बच्चे को भेड़िया उठा ले गया। कुछ दूर ले जाकर मार बच्चे को मार डाला। बच्चे को निवाला बनाने के बाद कंकाल छोड़ दिया। गांव के लोग तेंदुआ व लकड़बग्घा को लेकर आशंका व्यक्त करने लगे।

बदलापुर में डेढ़ साल के बच्चे को खाकर छोड़ा कंकाल

सूचना पर पहुंची वन विभाग की टीम तो पहले वह भी नहीं समझ सकी कि मौत कैसे हुई, लेकिन जांच के बाद पदचिह्न देख भेड़िए का पता चला। कुछ ही दिन बाद बदलापुर क्षेत्र में भी इसी तरह की घटना हुई। वहां भी डेढ़ साल के बच्चे को ले जाकर खाने के बाद कंकाल छोड़ दिया।

वन विभाग की टीम यह पता लगाने की कोशिश में जुट गई कि आखिर यह भेड़िया है या कोई और जानवर। जांच में एक स्थान पर जानवर का शौच और शिकार पर लगा बाल मिला। इसकी जांच के लिए वाइल्डलाइन इंस्टीट्यूट आफ देहरादून से डॉ. झाला पहुंचे। उन्होंने शौच व बाल की डीएनए जांच की और बताया कि यह भेड़िया ही है। इसके बाद वन विभाग व जिला प्रशासन अलर्ट हो गया।

दो-चार दिन पर उठा ले जाते थे बच्चा

भेड़ियों का ऐसा आतंक रहा कि दो-चार दिन पर दस से 12 किमी के दायरे में आने वाले गांवों से पांच वर्ष तक के बच्चों को उठा ले जाते थे और मार डालते थे। इसे लेकर वन विभाग व जिला प्रशासन परेशान हो गया।

वन विभाग के पास ऐसा कोई हथियार नहीं था जिससे भेड़िए को मारा जाए। मात्र पांच-सात की संख्या में 315 बोर की राइफलें थीं। उस समय प्रदेश में राष्ट्रपति शासन था। तत्कालीन जिलाधिकारी नवनीत सहगल ने मामले की गंभीरता से उच्च अधिकारियों को अवगत कराया।

इसके बाद मीरजापुर, सोनभद्र, वाराणसी व भदोही सहित अन्य जिलों से 215 वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई। जगह-जगह गांवों में कैंप लगाया गया।

सैकड़ों साल से क्षेत्र में रह रहे भेड़िए

जांच के दौरान यह बताया गया कि भेड़िया क्षेत्र में सैकड़ों साल से रह रहें हैं, हालांकि इनका बसेरा नदी के किनारे जंगल-झाड़ियों में ही रहा। यह बस्ती में नहीं आते थे। बाद में कुछ भेड़िया आदमखोर हो गए। यह निर्णय लिया गया कि जो भेड़िया बस्ती की तरफ आएगा उसे मारा जाएगा। इस दौरान मुख्य वन संरक्षक वन्य जीव विशेषज्ञ डा. रामलखन सिंह के संरक्षण में टीम ने कांबिंग कर भेड़ियों को मारना शुरू कर दिया।

छह माह में कुल 13 भेड़िए मारे गए। अंतिम भेड़िया 15 अक्टूबर को मारा गया। इसके बाद कोई घटना बच्चों को उठाने व मारने की नहीं हुई, फिर भी पूरी टीम नौ नवंबर तक अपने-अपने स्थान में डटी रही। इसके बाद प्रशासन व वन विभाग सहित ग्रामीणों ने राहत की सांस ली। ऐसे में 23 फरवरी से शुरू हुआ भेड़ियों का आतंक 15 अक्टूबर तक चलता रहा।

एसपी कमल सक्सेना ने मालखाने से दी थी 90 बंदूकें

तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कमल सक्सेना ने वन विभाग की टीम को भेड़ियों को मारने के लिए संसाधन उपलब्ध कराए थे। उन्होंने वन विभाग को 12 बोर की 90 बंदूकें व कारतूस मालखाने से निकलवा कर दिया था। इसके साथ ही वायरलेस, वाकी-टाकी सहित अन्य संसाधन भी उपलब्ध कराया।

आठ माह स्कूल में ही बना लिया था आवास

उस समय प्रभागीय वनाधिकारी के पद पर तैनात रहे बीसी तिवारी (अब सेवानिवृत्त) ने बताया कि तीन ब्लाकों में आठ माह तक भेड़ियों का आतंक रहा। मैंने सुजानगंज के रामनगर स्कूल में ही अपना आवास बना लिया था। वहीं से कांबिंग के साथ ही अन्य जिलों से आए 215 वन विभाग के लोगों की मानीटरिंग करता था।

रात में कांबिंग करता था और सुबह किसी न किसी गांव से बच्चों को मारने की खबर आ जाती थी। कुल 22-23 बच्चों की मौत हुई थी। 35-40 लोग जख्मी हुए थे।

केस-1... नींद खुली तो चारपाई से गायब था बच्चा 

सुजानगंज क्षेत्र के अलैया गांव के मुन्नर प्रजापति ने बताया कि 19 जून की रात घर के बाहर चार वर्षीय बेटा श्याम सोया था। वह अचानक चारपाई से गायब हो गया। नींद खुली तो चारपाई पर न पाकर खोजबीन शुरू हुई। लगभग डेढ़ सौ मीटर दूर नहर के बगल में उसका क्षत-विक्षत शव मिला। बाद में पता चला कि भेड़िया उठा ले गया और मार डाला। इस घटना को लेकर थाने पर काफी बवाल हुआ था। पीएसी लगानी पड़ी। कई लोगों पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था।

केस-2... बाहर खेल रहे बच्चे को उठा ले गया

सुजानगंज क्षेत्र के मिश्रमऊ गांव के राममूर्ति यादव की पत्नी सोमवारी देवी ने बताया कि उनका तीन वर्षीय बेटा सुनील यादव गोधूलि बेला में बाहर बैठा था। अचानक कुत्ते की तरह दिखने वाला कोई जानवर आया और बेटे को उठा ले गया। गांव का ही कोई व्यक्ति आ रहा था तो उसे झाड़ी से बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। बच्चे को झाड़ी से निकालकर घर ले आए और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां इलाज हुआ। बेटा पूरी तरह स्वस्थ है और बाहर नौकरी करता है।

केस-3... तीन वर्षीय बेटी को उठा ले गया भेड़िया 

महाराजगंज ब्लाक के राजापुर गांव के बुद्धू प्रजापति ने बताया कि उनकी भाभी राजकुमारी तीन वर्षीय बेटी को लेकर घर के बाहर सोई थीं। भोर में भेड़िया आया और बेटी को उठाकर भाग गया। सुबह जब नींद खुली तो तो आठ सौ मीटर दूर राजापुर-पहाड़पुर गांव की सीमा के नाले में बेटी का क्षत-विक्षत शव मिला।

मौके पर जिलाधिकारी पहुंचे। बच्ची के माता-पिता को पट्टे पर जमीन आवंटित की। इसके बाद लोगों की मांग पर तुरकौली-पड़री मार्ग पर पुल बनाने की स्वीकृति मिली।

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