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ट्रेन के इंजन में बनेगा 'बिजली घर'

- कोच में लगे उपकरण डी़जल से नहीं, ओएचई की बिजली से चलेंगे - खर्च बचाने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Oct 2018 01:00 AM (IST)Updated: Wed, 10 Oct 2018 01:00 AM (IST)
ट्रेन के इंजन में बनेगा 'बिजली घर'

- कोच में लगे उपकरण डी़जल से नहीं, ओएचई की बिजली से चलेंगे

- खर्च बचाने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण भी होगा

- एक तिहाई हो जाएगा खर्च, इलेक्ट्रिक इंजन में किया जा रहा परिवर्तन

झाँसी : रेलवे ने कोच में लगे उपकरण अब ओएचई (ओवरहेड इलेक्ट्रिकल वायर) से चलाने की तकनीक तलाश ली है। रेलवे अपने इलेक्ट्रिक इंजन में बदलाव कर इंजन में एक जेनरेटर लगा रहा है, जो ओवरहेड वायर से बिजली खींच सकेगा। अभी कोच में लगे उपकरण डी़जल जेनरेटर की मदद से चलाये जाते हैं। ऐसा करके डी़जल की खपत कम की जाएगी, जिससे खर्च लगभग एक तिहाई कम होगा, जो पर्यावरण हित में होगा।

दौर बदलने के साथ कोच में लगे उपकरण भी बढ़ते जा रहे हैं। मोबाइल व लैपटॉप चार्जिग पॉइण्ट इसका एक उदाहरण कहा जा सकता है। कोच में लगे एसी, पंखे, लाइट्स, चार्जिग यूनिट्स को चलाने के लिए ट्रेन के पीछे एक पावर कार लगा होता है, जिसमें रखा डी़जल जेनरेटर इलेक्ट्रिकल एनर्जी उत्पन्न करता है। अगर एसी कोच की बात की जाए, तो ये कोच एक घण्टे में 60 से 70 यूनिट बिजली लेते हैं। नॉन एसी कोच में यह संख्या 25 से 35 यूनिट के बीच होती है। 1 लिटर डी़जल से 3 यूनिट बिजली उत्पन्न होती है। इस प्रकार एसी कोच के उपकरण एक घण्टे में लगभग 1600 रुपए व नॉन एसी कोच करीब 800 रुपए का डी़जल लेते हैं। 12-15 घण्टे लगातार चलने वाली ट्रेनों में इस खर्च का आकलन इससे किया जा सकता है। यह ़खर्च तो अपनी जगह है ही, डी़जल की अपार खपत से पर्यावरण का भी नु़कसान होता है। रेलवे पुराने आइसीएफ (इण्टिग्रल कोच फैक्ट्रि) कोच को एलएचबी (लिंक हॉफमैन बुश) कोच से बदल रहा है। पर, दोनों ही प्रकार के कोच में कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिससे पावर कार के उपयोग का विकल्प दिखे। इसको देखते हुए रेलवे इलेक्ट्रिक इंजन में बदलाव कर रहा है। बदलाव के तहत इंजन में एक हेड जेनरेटर लगाया जा रहा है, जो ओवरहेड वायर से बिजली खींच सकता है। रेलवे सरकारी बिजली कम्पनि से 7 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली लेता है। अगर इस दर से मिल रही बिजली का उपयोग हो पाए, तो नॉन एसी कोच में लगे उपकरणों का खर्च प्रति घण्टा करीब 500 रुपए और नॉन एसी कोच के उपकरणों का खर्च लगभग 100 रुपए तक सीमित हो जाएगा, जो वर्तमान की तुलना में करीब एक तिहाई ही होगा। चूँकि सभी रेलवे लाइन्स का विद्युतीकरण नहीं हुआ है, इसलिए पावर कार नहीं हटायी जाएंगी। इलेक्ट्रिक लाइन पर ओवरहेड वायर से, तो अन्य लाइन पर पावर कार से बिजली ली जाएगी। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि रेलवे सभी लाइन्स को विद्युतीकृत करने की दिशा में काम कर रही है, इसलिए भविष्य में इस तकनीक का प्रयोग शत-प्रतिशत भी होगा। अधिकारियों के मुताबिक रेलवे डी़जल का एक बड़ा खपतकर्ता है, इसका असर निश्चित तौर पर्यावरण पर होता है, पर अभी तक कोई विकल्प सामने नहीं था। नयी तकनीक ने एक रास्ता दिखाया है, जिस पर ते़जी से काम किया जाएगा।

झाँसी रेल मण्डल के जनसम्पर्क अधिकारी मनोज कुमार सिंह ने बताया कि ट्रेनों के कोच में सुविधाएं लगातार बढ़ायी जा रही हैं, यह जारी रहेगा। ऐसे में ओवरहेड वायर से बिजली लेना रेलवे और पर्यावरण दोनों के लिहाज से उत्तम होगा। इंजन में हेड जेनरेटर लगाने का काम शुरू कर दिया गया है।

फाइल : हिमांशु वर्मा

समय : 7.45 बजे

9 अक्टूबर 2018


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