झांसी के मंडलायुक्त डा. अजय शंकर पाण्डेय ने 111 वर्ष पुरानी कमिश्नरी में रचा इतिहास, संस्कृत को मिला सम्मान
Dr. Ajay Shankar Pandey झांसी मंडल के आयुक्त डा. पाण्डेय ने उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के अभियान में बड़ा कदम बढ़ाया है। उन्होंने राजस्व व शस्त्र अधिनियम के दो मामलों में संस्कृत भाषा में अपना फैसला लिखा है।
By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Sat, 08 Jan 2022 02:14 PM (IST)
झांसी, जेएनएन। सूबे के विभिन्न जिलों में तैनाती के दौरान विशिष्ट कार्य के कारण चर्चित होने वाले आइएएस अधिकारी डा. अजय शंकर पाण्डेय ने झांसी की 111 वर्ष पुरानी कमिश्नरी में शुक्रवार को इतिहास रच दिया। झांसी मंडल के आयुक्त डा. पाण्डेय ने उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के अभियान में बड़ा कदम बढ़ाया है। उन्होंने राजस्व व शस्त्र अधिनियम के दो मामलों में संस्कृत भाषा में अपना फैसला लिखा है।
अपने कार्यालय में निर्धारित समय से दस मिनट पहले पहुंचने के बाद स्वयं ही झाड़ू लगाकर कार्यालय को साफ करने वाले आइएएस अफसर डा अजय शंकर पाण्डेय एक बार फिर चर्चा में हैं। देश की आजादी के बाद से अब तक प्रदेश की किसी भी राजस्व न्यायालय के आदेश में संस्कृत का उपयोग नहीं किया गया है। डा. अजय शंकर पाण्डेय ने देश की आजादी के अग्रदूत जनपद में पहली बार किसी भी फैसले को संस्कृत भाषा में लिखा। इससे पहले सभी निर्णय अंग्रेजी, हिंदी तथा उर्दू भाषा में ही लिखे गए हैं।
झांसी में ब्रिटिश हुकूमत के समय में बनी कमिश्नरी की बिल्डिंग में 111 वर्ष बाद इतिहास लिखा गया। कमिश्नरी न्यायालय में राजस्व व आम्र्स ऐक्ट के मामलों में सुनवाई करते हुए मंडल के आयुक्त डा. अजय शंकर पाण्डेय ने मण्डलायुक्त ने दो निर्णय संस्कृत भाषा में लिखे। जानकारों का मानना है कि प्रदेश भर की राजस्व न्यायालय में यह पहला फैसला है, जो संस्कृत भाषा में लिखा गया है। मण्डलायुक्त का यह कदम संस्कृत भाषा को सम्मान दिलाने में मील का पत्थर साबित होगा। अब तो मंडलायुक्त का यह कदम चर्चा में हैं। इंटरनेट मीडिया में भी इसके काफी चर्चे हैं।
झांसी के मंडलायुक्त डा. अजय शंकर पाण्डेय ने संस्कृत का सम्मान करते हुए शुक्रवार को ऐतिहासिक निर्णय लिया। देश और राज्य में संस्कृत सिर्फ शिक्षा और धार्मिक अनुष्ठान या सीमित पाठ्यक्रम तक सिमट रही है। ऐसे में कमिश्नर कोर्ट में राजस्व एवं शस्त्र अधिनियम के मामलों की सुनवाई के बाद जब डा. अजय शंकर पाण्डेय ने संस्कृत में फैसला लिखा तो सभी हैरान रह गए। आमतौर पर फैसले हिंदी या फिर अंग्रेजी में लिखे जाते हैं। ऐसा पहली बार हुआ कि जब फैसला संस्कृत में लिखा गया। मंडलायुक्त ने दोनों निर्णयों को संस्कृत भाषा में लिखा और फिर अधिवक्ताओं को हिंदी में इसका अर्थ बताया। आयुक्त के पेशकार प्रमोद तिवारी ने बताया कि उक्त दोनों निर्णय संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं और संस्कृत भाषा हर किसी को समझ में नहीं आती है। लिहाजा इसके लिए मंडलायुक्त ने इसका हिंदी में अनुवाद करवाकर पत्र पर रखने का निर्देश दिया है। वकील राजीव नायक ने कहा कि संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए आयुक्त की पहल सराहनीय है।
अपने इस फैसले पर डा. अजय शंकर पाण्डेय ने कहा कि संस्कृत तो सभी भाषाओं की जननी है। अधिकांश लोगों की धारणा है कि संस्कृत कठिन भाषा है, जबकि यह एक वैज्ञानिक भाषा है। गणित के बाद सबसे उपयुक्त संस्कृत भाषा को ही माना गया है। शिक्षणकाल में संस्कृत विषय में पढ़ाई की थी। दोनों निर्णय संस्कृत भाषा में देने का उद्देश्य इस भाषा के प्रति लोगों को आकर्षित करना भी है।
पहले नहीं हुआ संस्कृत में फैसलाझांसी के आयुक्त के संस्कृत भाषा में फैसला देने के बाद आयुक्तालय के अभिलेखागार की तलाशी ली गई और रिकॉर्डकीपर दिलीप कुमार ने पुराने अभिलेखों की छानबीन की। यह पता किया जा सके कि इससे पहले क्या कोई फैसला संस्कृत में दिया गया है या नहीं। झांसी कमिश्नरेट अंग्रेजों के जमाने से 1911 से चल रहा है और रिकार्ड के मुताबिक इससे पहले कोई फैसला आयुक्त कार्यालय ने संस्कृत में नहीं दिया। झांसी के मंडलायुक्त ने संस्कृत भाषा का मान बढ़ाने के लिए ऐतिहासिक निर्णय लिया।
यह था मामाला मामलाप्रकरण-1 : मण्डलायुक्त के न्यायालय में वाद संख्या-1296/2021 छक्कीलाल बनाम राजाराम आदि के अन्तर्गत धारा-207 अधिनियम, उप्र राजस्व संहिता-2006 में दर्ज हुआ था। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद उभयपक्षों को साक्ष्य व सुनवाई का समुचित अवसर देते हुये संस्कृत भाषा में दो पृष्ठ का निर्णय पारित किया गया। उपरोक्त वाद में अपीलार्थी के अधिवक्ता देवराज सिंह कुशवाहा ने संस्कृत भाषा में पारित निर्णय के लिए मंडलायुक्त डा. अजय शंकर पाण्डेय को धन्यवाद दिया।
प्रकरण- 2 : शस्त्र लाइसेंस से सम्बन्धित वाद संख्या-1266/2021 रहीश प्रसाद यादव बनाम राज्य सरकार उप्र अन्तर्गत धारा-18 भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1959 में दर्ज हुआ। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद उभयपक्षों को साक्ष्य व सुनवाई का समुचित अवसर देते हुये संस्कृत भाषा में दो पृष्ठ का निर्णय पारित किया गया। उपरोक्त वाद में अपीलार्थी के अधिवक्ता हरी सिंह यादव एवं उत्तरदाता के अधिवक्ता राहुल शर्मा ने संस्कृत भाषा में पारित किये गये निर्णय का स्वागत किया।
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