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कन्नौज का रोचक रण तय करेगा सपा प्रमुख की भविष्य की रणनीति, 2027 का संदेश भी; भाजपा प्रत्याशी सुब्रत के लिए भी बड़ी चुनौती

कन्नौज संसदीय सीट डा. राम मनोहर लोहिया के साथ समाजवाद के नारे संग आगे बढ़े मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही। वर्ष 2000 में मुलायम ने बेटे अखिलेश को यहीं से राजनीति में उतारा। वो 2012 तक सांसद रहे। उनके मुख्यमंत्री बनने पर फिर उनकी पत्नी डिंपल यादव जीतीं। 2019 में भाजपा के सुब्रत पाठक सपा से ये सीट छीनकर राजनीतिक क्षितिज में चमके। सभी विधानसभा क्षेत्रों में भी भगवा...

By Jagran News Edited By: Riya Pandey Updated: Tue, 14 May 2024 02:18 PM (IST)
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कन्नौज का रोचक रण तय करेगा सपा प्रमुख अखिलेश की भविष्य की रणनीति
शिवा अवस्थी, कानपुर। Kannauj Lok Sabha Seat: जिस इत्र नगरी से 21 साल पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने राजनीति का ककहरा सीखकर नित नए प्रतिमान गढ़े, अब वहीं के सियासी ‘भंवर’ में हैं। लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में मतदान के बाद रोचक रण उनकी भविष्य की राजनीति तय करने की दिशा में बढ़ चुका है।

भले अभी तीन साल का समय है, पर चार जून को आने वाला परिणाम 2027 के विधानसभा चुनाव का संदेश भी साफ करेगा। राजनीति सिखाने वाली धरती सपा प्रमुख के लिए अगला कदम सुनिश्चित करेगी। वहीं, भाजपा सांसद और प्रत्याशी सुब्रत पाठक के लिए राजनीतिक गलियारों में मुकाम पाने में यह रण बड़ी चुनौती होगा। 

मुलायम सिंह की कर्मभूमि रही कन्नौज सीट

कन्नौज संसदीय सीट डा. राम मनोहर लोहिया के साथ समाजवाद के नारे संग आगे बढ़े मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही। वर्ष 2000 में मुलायम ने बेटे अखिलेश को यहीं से राजनीति में उतारा। वो 2012 तक सांसद रहे। उनके मुख्यमंत्री बनने पर फिर उनकी पत्नी डिंपल यादव जीतीं।

2019 में भाजपा के सुब्रत पाठक सपा से ये सीट छीनकर राजनीतिक क्षितिज में चमके। कन्नौज में सभी विधानसभा क्षेत्रों में भी भगवा परचम लहराया। उसी इत्र नगरी की सियासत लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद नया करवट लेगी। 

सपा का वनवास खत्म होगा या और बढ़ेगी चुनौती

सपा का वनवास खत्म होगा या चुनौती और बढ़ेगी। यह बात हर नुक्कड़, चौराहा व घर तक है। भतीजे तेज प्रताप यादव का टिकट काट सपा प्रमुख के स्वयं मैदान में उतरने से रोचक हुए सियासी रण की पृष्ठभूमि ने धड़कनें तेज कर दी हैं।

भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक की प्रतिष्ठा भी दांव पर

सपा प्रमुख के विरुद्ध बयानों से सुर्खियां बटोरने वाले भाजपा सांसद व प्रत्याशी सुब्रत पाठक की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। चुनाव में संवाद, संबंध और विकास के हथियार चले। जातिगत भावनाएं हावी रहीं। शहर से लेकर गांवों तक राष्ट्र, सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और केंद्रीय योजनाओं से मिले लाभ के मुद्दों ने खूब जोर मारा। 

बिगड़ी कानून-व्यवस्था और सुधार पर कांटे की टक्कर

भाजपा प्रत्याशी सुब्रत के लिए गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य दहाड़े। राष्ट्रीय मुद्दों पर माहौल और प्रखर हुआ। आतंकवाद, सीमा पर सुरक्षा, राम मंदिर, सपा शासनकाल में बिगड़ी कानून-व्यवस्था और योगी सरकार में आए सुधारों पर टक्कर कांटे की हो गई। सपा व भाजपा की सरकारों में हुए विकास कार्यों की तुलना भी हुई। अखिलेश के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी उतरे। 

कन्नौज के चुनाव परिणाम का 13 जिलों पर राजनीतिक असर

कन्नौज का चुनाव परिणाम कानपुर-बुंदेलखंड के 13 जिलों की राजनीति पर असर डालेगा, जबकि मैनपुरी, आगरा, एटा तक प्रभाव जाएगा। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, सपा प्रमुख को कन्नौज सदर, तिर्वा में भाजपा से कड़ी टक्कर मिली है। एकतरफा जैसी स्थिति नहीं रही। बिधूना में उनकी उपस्थिति ठीक दिखी, जबकि रसूलाबाद में कांटे की टक्कर है। 

रसूलाबाद में पूर्व मंत्री रंग भी दिखाएगा असर

छिबरामऊ विधानसभा क्षेत्र में पलड़ा कहीं भारी तो कुछ जगह कमजोर है। कन्नौज सदर में समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण, छिबरामऊ में अर्चना पांडेय, तिर्वा में कैलाश राजपूत अलग-अलग वोट बैंक में मजबूत पकड़ बनाते दिखे। क्षेत्रवार भाजपा व सपा के बीच लड़ाई रोचक है। रसूलाबाद में पूर्व मंत्री शिवकुमार बेरिया का असर भी रंग दिखाएगा। 

बूथों पर लंबी कतारों में खुश दिखे भाजपाई

13 मई की सुबह मतदान की शुरुआत के बाद बूथों पर लगी लंबी कतारों से भाजपाई खुश दिखे। इस बीच इटावा से अखिलेश के कन्नौज पहुंचने पर सपाइयों का जोश बढ़ा। इससे चुनौती दोनों के लिए कड़ी है। सौरिख, छिबरामऊ व तालग्राम में अखिलेश के घूमने से जोशीला अंदाज रहा।

छिबरामऊ के भाजपा कार्यकर्ता के पुराने प्रकरण से माहौल पल-पल बदला। इत्र नगरी में जीत का सेहरा भले किसी के सिर बंधे पर मतों का अंतर बहुत अधिक नहीं होगा।

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