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Kargil: गोली लगने के बावजूद पांच PAK रेंजर्स को ढेर करने वाले जांबाज की वीरगाथा, देशभक्ति से भर उठेगा रोम-रोम

Kargil Vijay Diwas 2023 6 जुलाई 1999 यह वो तारीख है जब हमारे वीर जवानों ने पाकिस्तान को धूल चटाकर कारगिल में तिरंगा लहराया था। इस लड़ाई में कई जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया तो कई आज भी अपंग होकर वीरता शौर्य और पराक्रम की मिसाल कायम की। कारगिल युद्ध में यूपी के लाल रविंद्र कुमार ने अपनी वीरता का परिचय दिया था।

By Edited By: Abhishek PandeyUpdated: Tue, 25 Jul 2023 04:56 PM (IST)
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गोली लगने के बावजूद पांच PAK रेंजर्स को ढेर करने वाले जांबाज की वीरगाथा

जागरण संवाददाता, कन्नौज: (Kargil Vijay Diwas 2023) 26 जुलाई 1999 यह वो तारीख है, जब हमारे वीर जवानों ने पाकिस्तान को धूल चटाकर कारगिल में तिरंगा लहराया था। इस लड़ाई में कई जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया, तो कई आज भी अपंग होकर वीरता, शौर्य और पराक्रम की मिसाल कायम की। कारगिल युद्ध में उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के लाल रविंद्र कुमार ने दिलेरी का परिचय देते हुए जान की बाजी लगा दी थी। पैर में लगी गोली से खून से लथपथ हालत में रेंगते हुए अकेले पांच दुश्मनों को ढेर कर दिया था।

तालग्राम ब्लाक के ब्राहिमपुर गांव में 14 दिसंबर 1964 को रविंद्र कुमार का जन्म हुआ था। पढ़ाई-लिखाई के बाद पैरासूट रेजीमेंट स्पेशल फाेर्स में भर्ती हुए थे। तीन मई को कारगिल में युद्ध के काले बादल छा गए। भारतीय सेना और पाकिस्तान सेना के बीच गोलीबारी शुरू हुई। सियाचिन ग्लेशियर में तैनात पैरासूट रेजीमेंट स्पेशल फोर्स के जवानों के साथ सेक्शन कमांडर रविंद्र कुमार को भी बटालिक सेक्टर में एरिया रिंग कंट्रोल पर तैनात कर दिया गया।

पैर में गोली लगने के कारण हो गए थे बेहोश

दुर्गम पहाड़ियों की ओट में छिपकर पाकिस्तान की नार्दन लाइट सेना उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर रही थी। लोहा लेते समय 22 जुलाई को रविंद्र कुमार के बाएं पैर में गोली लग गई और जमीन पर गिर गए। कारगिल योद्धा रविंद्र कुमार बताते हैं कि खून से लथपथ वह बेहोश होकर जमीन पर गिर गए। करीब तीन घंटे बाद होश आने पर देखा कि उनके चार साथी शहीद हो गए।

घायल होने के बाद पांच पाकिस्तानी रेंजर्स को किया था ढेर

साथियों का बदला लेने के जज्बे में वह रेंगते हुए एक पहाड़ी पर घात लगाकर बैठ गए और डटकर मुकाबला करते हुए पांच पाकिस्तानी रेंजर्स को गोली मारकर ढेर कर दिया। करीब 85 दिन तक चली लड़ाई के बाद 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सेना पीठ दिखाकर भागने लगी। सीजफायर की घोषणा के साथ भारत ने कारगिल युद्ध में विजय पताका फहराया। उनकी बहादुर पर तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायण ने उन्हें सेना पदक से सम्मानित किया।

पत्नी ने छोड़ दी उम्मीद, लड़खड़ा कर लौटे घर

परम योद्धा रविंद्र कुमार बताते हैं कि कारगिल युद्ध में कई जवान शहीद हुए। दिल्ली हेड क्वार्टर से शहीदों की स्थिति स्पष्ट नहीं हो रही थी। उनकी कंपनी के कई जवान शहीद हो गए थे। गोली लगने के बाद वह तीन दिन तक मोर्चा पर ही डटे रहे। इससे उनके पैर में संक्रमण फैल गया था। युद्ध विजय के बाद वह एक माह तक आर्मी अस्पताल में भर्ती रहे।

करीब तीन माह बाद लड़खड़ाते हुए घर पहुंचे। पत्नी सविता देवी उन्हें देखकर रोने लगी। वीर जवान रविंद्र कुमार बताते हैं कि पत्नी और बच्चों ने उनके आने की उम्मीद छोड़ दी थी। युद्ध मैदान में विजय पाने के हौसले ने उन्हें जिंदा रखा।

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