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Kannauj से यह ऐतिहासिक पहचान अब छिन जाएगी, शहर से खत्म हो जाएगा जीटी रोड का वजूद

Kannauj NH-91 का नाम बदलकर NH-34 होने के साथ ही दशकों पुरानी ऐतिहासिक पहचान भी शहर से छिनने जा रही है। शहर के बाहर से निकाले गए बाईपास को ही नेशनल हाईवे माना जाएगा। इससे अब शहर के अंदर नेशनल हाईवे जीटी रोड का वजूद खत्म हो जाएगा।

By Rahul KumarEdited By: MOHAMMAD AQIB KHANUpdated: Sat, 04 Feb 2023 03:46 PM (IST)
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Kannauj से यह ऐतिहासिक पहचान अब छिन जाएगी, शहर से खत्म हो जाएगा जीटी रोड का वजूद : जागरण
कन्नौज, जागरण संवाददाता: नेशनल हाईवे-91 (ग्रैंड ट्रंक रोड यानी जीटी रोड) का नाम बदलकर नेशनल हाईवे-34 होने के साथ ही दशकों पुरानी ऐतिहासिक पहचान भी शहर से छिनने जा रही है। शहर के बाहर से निकाले गए बाईपास को ही नेशनल हाईवे माना जाएगा।

इससे अब शहर के अंदर नेशनल हाईवे जीटी रोड का वजूद खत्म हो जाएगा। इस कारण गुरसहायगंज से लेकर कन्नौज तक के 20 किमी का यह टुकड़ा नेशनल हाईवे नहीं, बल्कि अन्य जिला मार्ग में तब्दील कर दिया जाएगा।

एशिया के सबसे पुराने और लंबे राजमार्गों में शुमार में से एक जीटी रोड कन्नौज शहर के अलावा गुरसहायगंज, जलालाबाद, जलालपुर पनवारा, जसोदा के अंदर से होकर गुजरता है। ऐसे में विभिन्न शहरों और प्रदेशों के लोग यहां से होकर गुजरते थे। जिससे कहीं न कहीं इत्र नगरी का इन विभिन्न शहरों से जुड़ाव हो जाता है।

मगर अब एनएचएआइ ने छिबरामऊ के बाद से गुरसहायगंज के गांव रजलामऊ के पहले से ही सिक्स लेन बाईपास निकाल कर नेशनल हाईवे को डायवर्ट कर दिया गया है। ऐसे में अब गुरसहायगंज से लेकर कन्नौज तक छोड़ी गई लगभग 20 किमी की सड़क नेशनल हाईवे के मानक से बाहर हो गई है।

एनएचएआइ से टूटकर पीडब्ल्यूडी से जुड़ेगा नाता

यह 20 किमी हिस्से का संबंध अब एनएचएआई (नेशनल हाईवे अथार्टी आफ इंडिया) से नहीं रहेगा। हां, पहले पूरे जीटी रोड़ का संबंध एनएचआइ से हुआ करता था। मरम्मत, निर्माण, देखभाल की जिम्मेदारी भी एनएचआइ की ही थी। अब इस टुकड़े से नाता तोड़कर एनएचएआइ इसे पीडब्ल्यूडी के अधीन करेगा। इसको लेकर विभागीय तैयारियां चल रही हैं। मार्च तक यह प्रक्रिया होने की उम्मीद जताई जा रही है।

ऐसे बदले नाम

जीटी रोड (वर्तमान में एनएच-34) का इतिहास सुनहरा रहा है। इस मार्ग की शुरुआत ईसा से तीन सदी पूर्व हुआ था। तब इसे उत्तरापथ के नाम से जाना जाता था। शासक बदले तो मार्ग का नाम भी बदलता चला गया। 16वीं सदी में शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए इसका पुनर्निर्माण करवाया। तब इसे शेरशाह सूरी मार्ग के नाम से जाना गया।

इसके बाद मुगल काल में इस मार्ग का विस्तार हुआ। मुगल काल में इसका विस्तार बांगलादेश के चटगांव से अफगानिस्तान के काबुल तक हुआ। तब इस मार्ग को सड़क-ए-आजम का खिताब मिला। 17वीं वीं सदी में इस मार्ग का ब्रिटिश शासकों ने पुनर्निर्माण किया और इसका नाम बदलकर ग्रैंड ट्रंक रोड या जीटी रोड कर दिया गया।

हावड़ा से कानपुर तक के खंड को राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-2 से नामित किया गया। कानपुर से गाज़ियाबाद तक के खंड को राष्ट्रीय राजमार्ग 91 का नाम दिया गया। जबकि कुछ समय पहले इसे नेशनल हाईवे-34 का नाम दिया गया है।

इनका कहना है

गुरसहायगंज से कन्नौज तक करीब 20 किमी टुकड़ा अब एनएचआइ का हिस्सा नहीं रहेगा। इसकी मरम्मत कराने के बाद इसे पीडब्ल्यूडी को सौंप दिया जाएगा। अब वही विभाग इसकी देखरेख करेगा। बाइपास पर टोल शुरू होते ही इसकी मरम्मत का काम शुरू कर दिया जाएगा। इसको लेकर जोरों से तैयारियां चल रहीं हैं। -आकाश विक्रम सिंह, सहायक अभियंता, एनएचएआइ

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