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Adi Shankaracharya Jayanti 2022: सनातन संस्कृति के स्वाभिमान के संरक्षक आदिगुरु शंकराचार्य

आदि गुरु शंकराचार्य संसार को माया जरूर मानते थे लेकिन कर्म करने पर बल देते रहे। यही कारण है कि उन्होंने चार मठों की स्थापना की जहां से उन्होंने वेद वेदांत उपनिषदों ब्रह्मसूत्रों तथा अन्यान्य सनातन संस्कृति के उत्थान संबंधित ग्रंथों की रचना की टीकाएं लिखी।

By Amit SinghEdited By: Updated: Mon, 02 May 2022 05:58 PM (IST)
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एक संस्मरण आदिगुरु के लिए विख्यात है।

सलिल पांडेय। आदिगुरु शंकराचार्य के पूर्व भारतीय ज्ञान-परंपरा के मूल स्रोत वेद का तिरस्कार और अपमान चरम पर था। अन्य मतों व संप्रदायों के लोग अपने धर्म को विशिष्ट बताने में भारतीय सनातन परंपरा का खंडन भी कर रहे थे। अनेक संप्रदायों ने अपनी-अपनी आचारसंहिताएं बना लीं। तंत्रपूजा की प्रधानता हो गई। धार्मिक अराजकता के इस माहौल को शंकराचार्य जी ने अपने तर्क व ज्ञान से समाप्त किया और सनातन संस्कृति के स्वाभिमान को संरक्षित किया। माधवाचार्य का तो यह कहना है कि भगवान शंकर ने इस धार्मिक अराजकता को समाप्त करने के लिए शंकराचार्य के रूप में अवतार लिया था।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदिगुरु शंकराचार्य जी का जन्म 8वीं सदी के उत्तरार्ध में सन् 788 ई. में केरल प्रांत के कालपी ग्राम में हुआ था। इनके पिता शिवगुरु तथा माता सुभद्रा भगवान शिव के उपासक थे। पुत्र प्राप्ति के तीन साल के अंदर ही पिता की मृत्यु हो गई। बालक शंकर की प्रथम गुरु के रूप में उनकी माता ही रही। ईश्वरीय कृपा से उन्हें आठ वर्ष की अवस्था में आध्यात्मिक ग्रंथों का ज्ञान हो गया। माता के साथ कहीं से आते हुए नदी पार करने के लिए उसमें घुसे, नदी के बीच माता से हठ करने लगे कि वे उन्हें संन्यास लेने की अनुमति दें, अन्यथा मैैं अभी डूब जाऊंगा। विवश मां ने संन्यास की अनुमति दे दी। आदिगुरु ने संन्यास तो ले लिया, परंतु मां का अंत्येष्टि संस्कार भी किया। एक संन्यासी के इस कार्य की बड़ी आलोचना हुई, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। वैदिक ज्ञान में पूर्ण पारंगत होने के बाद भी योग्य गुरु की खोज उन्हें निरंतर थी। जब उन्हें योग्य गुरु के रूप में गोविंद स्वामी मिल गए तो उनके प्रति खुद को समर्पित कर दिया।

आदि गुरु शंकराचार्य वैदिक ज्ञान में विकास के गुण-सूत्र नजर आते थे। आदि गुरु शंकराचार्य शास्त्रार्थ के माध्यम से ज्ञान का प्रवाह निरंतर करते रहे। इसी क्रम में मंडन मिश्र और उनकी पत्नी को भी आदिगुरु ने पराजित किया। शंकराचार्य ने भारतीय संस्कृति पर विविध संप्रदायों द्वारा लगातार किए जा रहे हमले का ज्ञान के बल पर सामना किया तथा वैदिक धर्म का संरक्षण किया।

एक संस्मरण आदिगुरु के लिए विख्यात है। किसी ने आदिगुरु से तत्कालीन दौर के किसी धर्मगुरु का नाम लेकर कहा कि वे आपके लिए अमर्यादित तथा अनर्गल शब्द बोलते हैं। जिस पर आदि गुरु ने कहा कि यदि मेरे शरीर को बोल रहे हैं, तब तो पंचभौतिक शरीर हेय तो है ही और यदि शरीर में विद्यमान आत्मा को बोल रहे हैं तो वह आत्मा परमानंद का अंश है। वे मुझे नहीं, उस परम सत्ता को अनर्गल बोल रहे हैं। इस प्रकार वे निंदा और स्तुति से ऊपर स्थितिप्रज्ञ की श्रेणी के महापुरुष थे। वे 'पंच मकार' के दुरुपयोग के विरुद्ध 'पंच गकार' के प्रति चेतना जाग्रत कर रहे थे, जिसमें गुरु, गीता, गायत्रीमंत्र, गाय, गंगा शामिल है।

[आध्यात्मिक विषयों के अध्येता]

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