विभाजन का दर्द... पाकिस्तान से आकर कानपुर में बसे थे सिंधी शरणार्थी; आज भी नहीं भुला पाते बंटवारे का वह दौर
भारत-पाकिस्तान के विभाजन को 77 वर्ष पूरे हो चुके हैं। लेकिन पाकिस्तान से भारत आए लोगों की Independence Day 2024 आंखों में आज भी विभाजन की विभीषिता का दर्द छलकता है। यूपी के कानपुर जिले में उस समय सिंधी समाज के लोगों ने शरण ली और कड़ी मेहनत कर अपने परिवार का पेट पाला। उन्हें दलेलपुरवा रूपम चौराहा तलाक महल इफ्तिखाराबाद रामबाग आदि क्षेत्रों में पनाह दी गई।
1965 में आवंटित की गई थी दुकानें
19 वर्ष की आयु में परिवार के साथ पाकिस्तान के जिला दादू से आए थे। अब 93 वर्ष के हैं। वहां से शहर आने तक बहुत परेशानियां उठानी पड़ीं। यहां आर्यनगर में किराने का व्यापार शुरू किया। बोरियां भी बेचीं। अब आर्यनगर में डिपार्टमेंटल स्टोर है।
पाकिस्तान के सिंध में रोहिणी जिले से विभाजन के बाद शहर आ गए। विभाजन की विभीषिका स्वयं देखी। जिंदगी की गाड़ी खींचने के लिए पी रोड पर खोमचा लगाया। रात-दिन की मेहनत से धीरे-धीरे हालात सुधरते गए। अब 94 वर्ष की आयु हो चुकी है। पी रोड पर ही रसगुल्ला व दोसा की दुकान है।
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देश के विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आए सिंधी समुदाय ने जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए कड़ी मशक्कत की। कई सिंधी उधार दूध, चाय पत्ती लाते तथा चाय बनाकर बेचते। उससे मिलने वाली धनराशि के मुनाफे से घर का खर्च चलाते।