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विभाजन का दर्द... पाकिस्तान से आकर कानपुर में बसे थे सिंधी शरणार्थी; आज भी नहीं भुला पाते बंटवारे का वह दौर

भारत-पाकिस्तान के विभाजन को 77 वर्ष पूरे हो चुके हैं। लेकिन पाकिस्तान से भारत आए लोगों की Independence Day 2024 आंखों में आज भी विभाजन की विभीषिता का दर्द छलकता है। यूपी के कानपुर जिले में उस समय सिंधी समाज के लोगों ने शरण ली और कड़ी मेहनत कर अपने परिवार का पेट पाला। उन्हें दलेलपुरवा रूपम चौराहा तलाक महल इफ्तिखाराबाद रामबाग आदि क्षेत्रों में पनाह दी गई।

By daud khan Edited By: Abhishek Pandey Updated: Wed, 14 Aug 2024 10:28 AM (IST)
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बोरे बेचकर की बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था,आंखों से छलकता विभाजन का दर्द
मोहम्मद दाऊद खान,  कानपुर। देश के विभाजन को 77 वर्ष होने को आए हैं। पाकिस्तान बनने के बाद वहां से विस्थापित होकर भारत में शरणार्थी बनकर आए सिंधी समुदाय के बुजुर्गों की आंखों से अब भी विभाजन की विभीषिका का दर्ज छलकता है।

सिंधी समाज के लोगों ने यहां आने के बाद कड़ी मेहनत कर अपने परिवार का पेट पाला। रोते-बिलखते बच्चों के आंसू पोछने, उनके लिए दूध की व्यवस्था करने के लिए दर-दर भटकते रहे। किसी ने बोरे बेचे, किसी ने खोमचा लगाया तो किसी ने कपड़े का काम शुरू किया।

वर्तमान समय में सिंधी समुदाय फलफूल रहा है। पूरे शहर में इनकी अच्छी आबादी है।  देश के विभाजन के समय पाकिस्तान से आए सिंधी शरणार्थियों को दलेलपुरवा, रूपम चौराहा, तलाक महल, इफ्तिखाराबाद, रामबाग आदि क्षेत्रों में पनाह मिली।

1965 में आवंटित की गई थी दुकानें

नई सड़क पर उन्होंने गुमटियां बनाकर तथा तख्त बिछाकर परचून की दुकानें खोलीं, कपड़े बेचे तथा अन्य छोटे-छोटे कार्य किए। वर्ष 1965 में रिफ्यूजी मार्केट (नवीन मार्केट) में उनको दुकानें आवंटित की गईं। विभाजन के दौरान आत्माराम मेघानी पाकिस्तान के नवाबशाह जिला से अमृतसर आए। वहां पर उन्होंने कई दिन शरण ली। उनके पास केवल 10 रुपये ही थे।

गुरुद्वारा में परिवार के साथ पहुंचने पर उनको कई दिनों बाद भोजन नसीब हुआ। वहां से ट्रेन से कानपुर आए और शरणार्थी के रूप में दलेलपुरवा में पनाह ली। इन क्षेत्रों में कई सिंधी परिवार रुके हुए थे। पास में ही नई सड़क पर सिंधी समुदाय ने परचून, कपड़े, चीनी आदि की दुकानें लगाकर रोटी-रोटी की व्यवस्था की। धीरे-धीरे आबादी बढ़ने के साथ सिंधी समुदाय गोविंद नगर, शास्त्री नगर, गुजैनी आदि क्षेत्रों में बसते गए।

धर्मदास कोटवानी ने बताया-

19 वर्ष की आयु में परिवार के साथ पाकिस्तान के जिला दादू से आए थे। अब 93 वर्ष के हैं। वहां से शहर आने तक बहुत परेशानियां उठानी पड़ीं। यहां आर्यनगर में किराने का व्यापार शुरू किया। बोरियां भी बेचीं। अब आर्यनगर में डिपार्टमेंटल स्टोर है।

हरिराम शिवानी ने बताया-

पाकिस्तान के सिंध में रोहिणी जिले से विभाजन के बाद शहर आ गए। विभाजन की विभीषिका स्वयं देखी। जिंदगी की गाड़ी खींचने के लिए पी रोड पर खोमचा लगाया। रात-दिन की मेहनत से धीरे-धीरे हालात सुधरते गए। अब 94 वर्ष की आयु हो चुकी है। पी रोड पर ही रसगुल्ला व दोसा की दुकान है।

पाकिस्तान के सिंध से आए प्रकाश पंजवानी ने बताया-

देश के विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आए सिंधी समुदाय ने जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए कड़ी मशक्कत की। कई सिंधी उधार दूध, चाय पत्ती लाते तथा चाय बनाकर बेचते। उससे मिलने वाली धनराशि के मुनाफे से घर का खर्च चलाते।

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