देश में तैयार हो गया ऐसा बायो आयल जो प्रदूषण करेगा कम, दाम में भी आधा; बढ़ा देगा इंजन की लाइफ
कानपुर स्थित HBTU के शोध विज्ञानियों ने एक ऐसा बायो ल्युब्रीकेंट किया है जो मार्केट में बिकने वाले केमिकल बेस्ड ल्युब्रीकेंट का एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इस ल्युब्रीकेंट की खासियत है कि इसे पेट्रो पदार्थ के बजाय वनस्पति तेल से तैयार किया गया है। इससे न सिर्फ प्रदूषण कम होगा बल्कि दाम के मामले में भी यह आधा होगा।
अखिलेश तिवारी, जागरण, कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एचबीटीयू) के शोध विज्ञानियों ने ऐसा बायो ल्युब्रीकेंट तैयार किया है जो बाजार में बिकने वाले रासायनिक ल्युब्रीकेंट का विकल्प बन सकेगा।
इस ल्युब्रीकेंट को पेट्रो पदार्थ के बजाय वनस्पति तेल से तैयार किया गया है। ईंधन के साथ जलने पर भी इससे प्रदूषण नहीं होगा और यह बाजार में मौजूद ल्यूब्रीकेंट के मुकाबले 50 प्रतिशत तक सस्ता भी है। इसके साथ ही बाजार के ल्युब्रीकेंट के मुकाबले इसकी ऊष्मा क्षमता लगभग दोगुणी है। विश्वविद्यालय के शोध को भारत सरकार का पेटेंट भी मिल चुका है।
एचबीटीयू में यह शोध कार्य एक वर्ष से भी ज्यादा समय में पूरा किया गया है। विश्वविद्यालय के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में शोधार्थी मानसी तिवारी ने बताया कि वाहनों से निकलने वाले काले धुएं की वजह से वातावरण प्रदूषित होता है।
वाहनों का चलना भी जरूरी है इसी को ध्यान में रखकर एडवांस्ड बायो ल्युब्रीकेंट तैयार किया है। नैनो टेक्नोलाजी की मदद से इसे वनस्पति तेल से बनाया गया है। इससे यह पारंपरिक या बाजार में मौजूद ल्युब्रीकेंट के मुकाबले शून्य प्रदूषणकारी है। जैविक होने की वजह से इसका अपशिष्ट भी सूक्ष्म जीवों की मदद से प्रकृति में स्वयं नष्ट हो जाता है। इससे वाहनों के इंजन को भी क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है।
जैविक उत्पाद की तुलना बाजार में उपलब्ध ल्युब्रीकेंट उत्पाद से की गई है। बाजार में उपलब्ध लयुब्रीकेंट की सभी विशेषता व गुण-धर्म इसमें भी मौजूद है। प्रयोगशाला परीक्षण से गुजरने के बाद बायो ल्यूब्रीकेंट निर्माण तकनीक को भारत सरकार ने अपना पेटेंट भी दिया है।प्रयोगशाला परीक्षण के दौरान हमने वनस्पति तेल से 80 प्रतिशत ल्युब्रीकेंट प्राप्त किया है। इसे ल्युब्रीकेंट का स्वरूप देने के लिए नैनो टेक्नोलाजी आधारित प्रक्रिया से गुजारना पड़ता है।
इस तकनीक से ही ल्युब्रीकेंट की गुणवत्ता प्राप्त करना संभव हो सका है। पेट्रो ल्यूब्रीकेंट को प्रयोग करने के बाद अपशिष्ट निस्तारण एक समस्या है, लेकिन बायो ल्यूब्रीकेंट का प्राकृतिक और स्वाभाविक निस्तारण हो जाएगा।
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एचबीटीयू में तैयार बायो ल्यूब्रीकेंट की ऊष्मा वहन क्षमता भी दोगुणी है। डॉ. शास्त्री ने बताया कि इंजन के चलने के साथ ही ल्युब्रीकेंट भी इंजन की ऊष्मा से गर्म और इंजन बंद होने पर शीतल हो जाता है। ल्युब्रीकेंट के बार-बार प्रयोग की एक निर्धारित क्षमता है जिसे हीट कैपसिटी कहा जाता है। बायो ल्यूब्रीकेंट की ऊष्मा क्षमता बाजार में मौजूद पेट्रो ल्यूब्रीकेंट के मुकाबले लगभग दोगुणा है। प्रयोगशाला में दोनों ही लयुब्रीकेंट की क्षमता को जांच गया है इसके अनुसार बाजार में उपलब्ध पेट्रो ल्यूब्रीकेंट की हीट कैपसिटी 2.2 के जे प्रति किलोग्राम केल्विन है जबकि बायो ल्यूब्रीकेंट की क्षमता 3.8 के जे प्रति किलोग्राम केल्विन है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि पेट्रो ल्यूब्रीकेंट का प्रयोग अगर किसी वाहन में 10 हजार किमी तक किया जाता है तो 17 से 20 हजार किमी तक किया जा सकेगा।जैविक ल्युब्रीकेंट प्रक्रिया के लिए भारत सरकार से शोध अनुदान दिया गया है। ल्युब्रीकेंट तैयार करने में सफलता मिल गई है। इसका वाहनों पर प्रयोग इसी साल अगस्त महीने में करने की तैयारी है। उत्पादन तकनीक को भारत सरकार का पेटेंट भी मिला हैं।- डॉ. एसवीएआर शास्त्री,एचबीटीयू केमिकल इंजीनियरिंग विभाग