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Pintu Sengar Murder Case: एसपी राजकुमार अग्रवाल को राहत, दो इंस्पेक्टर जांच में पाए गए दोषी, होगी कार्रवाई

कानपुर में बसपा नेता पिंटू सेंगर की 20 जून 2020 को जाजमऊ जेके कालोनी में सपा नेता चंद्रेश सिंह के घर के बाहर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में विवेचना में गोलमाल करने के आरोप पुलिस पर लगे थे।

By Abhishek VermaEdited By: Updated: Sat, 20 Aug 2022 09:21 PM (IST)
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बसपा नेता पिंटू सेंगर हत्याकांड डीसीपी पूर्वी की जांच पूरी।
कानपुर, जागरण संवाददाता। बसपा नेता पिंटू सेंगर हत्याकांड Pintu Sengar Murder से जुड़े मुख्य आरोपितों की विवेचना में गोलमाल करने के आरोप में चल रही डीसीपी पूर्वी की जांच में तत्कालीन एसपी पूर्वी को राहत मिल गई है। लंबी चली जांच के बाद साक्ष्यों के अभाव में उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया है, जबकि विवेचना में शामिल इंस्पेक्टर रवि श्रीवास्तव और इंस्पेक्टर राम कुमार गुप्ता को दोषी माना गया है। अब इन दोनों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही होगी, जिसके बाद दंड तय किया जाएगा। 

पिंटू सेंगर की 20 जून 2020 को जाजमऊ जेके कालोनी में सपा नेता चंद्रेश सिंह के घर के बाहर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 19 गोलियां लगने की पुष्टि हुई थी। पुलिस ने इस मामले का पर्दाफाश किया तो वीरेंद्र पाल और मनोज गुप्ता को मुख्य आरोपित बताया। दावा किया कि इन्होंने पप्पू स्मार्ट व अन्य सहयोगी सऊद अख्तर, महफूज अख्तर की मदद से हत्याकांड को अंजाम दिलवाया। 

 तीन महीने बाद पुलिस ने जब अदालत में चार्जशीट दाखिल की तो हैरान करने वाला कदम उठाते हुए अदालत से अनुरोध किया कि वीरेंद्र पाल और मनोज गुप्ता को रिहा कर दिया जाए, क्योंकि इनके खिलाफ सबूत नहीं मिल रहे। इसी के साथ पुलिस ने महफूज अख्तर और अधिवक्ता दीनू उपाध्याय व अरिदमन सिंह का नाम भी निकाल दिए। 

सबसे पहले दैनिक जागरण ने पुलिस के इस खेल का पर्दाफाश किया। जांच हुई तो सामने आया कि पुलिस ने इस मामले में आरोपितों के साथ मोटी डीलिंग की थी। तत्कालीन एडीजी जेएन सिंह के  आदेश से दोबारा जांच हुई और पुलिस ने जो चार्जशीट दाखिल की थी, उसमें ही वीरेंद्र पाल, मनोज गुप्ता और महफूज के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। इन सबूतों के आधार पुलिस ने पूरक चार्जशीट लगाई। अधिवक्ता दीनू उपाध्याय व अरिदमन सिंह व शुभानअल्ला के नाम पर अभी भी जांच जारी है। 

दैनिक जागरण की खबर को संज्ञान में लेकर तत्कालीन एडीजी ने जाे जांच शुरू कराई थी, उसमें कमिश्नरेट गठन के बाद पूर्वी जोन के एडिशनल डीसीपी सोमेंद्र मीणा ने जांच की थी। उन्होंने इस मामले में विवेचकों व तत्कालीन एसपी पूर्वी की भूमिका पर संदेह व्यक्त करते हुए उच्चस्तरीय जांच की संस्त़ति की थी, जिसके बाद डीसीपी पूर्वी प्रमोद कुमार यह जांच कर रहे थे। 

डीसीपी ने बताया कि अधिक समय बीत जाने की वजह से तत्कालीन एसपी पूर्वी राजकुमार अग्रवाल के खिलाफ लगे आरोपों के साक्ष्य नहीं मिल सके। उन्हें साक्ष्यों के अभाव में दोषमुक्त किया गया है। हालांकि इंस्पेक्टर रवि श्रीवास्तव व रामकुमार गुप्ता को अभियुक्तों के नाम निकालने का दोषी पाया गया है। रामकुमार गुप्ता ने महफूज की टेनरी के चार नौकरों के बयानों पर उसका नाम बाहर कर दिया था, जबकि रवि श्रीवास्तव ने ही मनोज व वीरेंद्र पाल को रिहा करने के लिए अदालत से गुहार की थी।  

जांच से बच निकले इंस्पेक्टर रोहित तिवारी 

पिंटू सेंगर हत्याकांड में अभियुक्तों के नाम निकालने के इस खेल में एक तीसरे इंस्पेक्टर पर भी गंभीर आरोप हैं, लेकिन वह बच निकले। वर्तमान समय में गोविंदनगर के प्रभारी इंस्पेक्टर रोहित तिवारी ने भी पिंटू सेंगर हत्याकांड की जांच की थी और आरोपित अधिवक्ता दीनू उपाध्याय व अरिदमन सिंह को लेकर वादी धमेंद्र सिंह के बयान अपने आप ही दर्ज कर दिए थे, जिससे केस कापी कमजोर होने की संभावना थी। जानकारी होने पर वादी ने इंस्पेक्टर द्वारा अपने मन से दर्ज किए गए बयानों की शिकायत तत्कालीन पुलिस आयुक्त असीम अरुण से भी की थी, लेकिन पुलिस अधिकारियों द्वारा आरोपों को गंभीरता से न लेने की वजह से रोहित तिवारी बच निकले।

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