गोह के लुप्तप्राय होने पर चिंतित वन्य जीव वैज्ञानिक, दवाई व चर्म उत्पाद बनाने के लिए गोह को बेरहमी से मारा जा रहा
कार्यशाला में शिरकत करने आईं वन्यजीव वैज्ञानिक कुमुदनी बाला ने बताया कि गोह जहरीला प्राणी नहीं है। ये किसी पर हमला भी नहीं करता। तीन वर्षों में छह सौ से अधिक गोह के नमूनों की जांच में सामने आया है कि इनकी संख्या तेजी से घट रही है।
कानपुर, जेएनएन। गोह का नाम आते ही शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है। लोग इसे विषैला जीव मानते हैं, लेकिन ये नहीं जानते कि गोह उनकी सबसे बड़ी मित्र है। किसानों की फसलों को कीड़ों व बड़े जीवों से बचाने वाला यह शर्मीला जीव जैव विविधता का प्रहरी होता है। गोह के शोध प्रबंध पर कार्य करने वाली भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ)में विधि विज्ञान शोधकर्ता कुमुदनी बाला गौतम ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में बताया कि दवाई व चर्म उत्पाद बनाने के लिए गोह को बेरहमी से मारा जा रहा है। जो भविष्य के लिए चिंताजनक है।
चिडिय़ाघर में रविवार को हुई कार्यशाला में शिरकत करने आईं वन्यजीव वैज्ञानिक कुमुदनी बाला ने बताया कि गोह जहरीला प्राणी नहीं है। ये किसी पर हमला भी नहीं करता। तीन वर्षों में छह सौ से अधिक गोह के नमूनों की जांच में सामने आया है कि इनकी संख्या तेजी से घट रही है। गोह की बंगाल मानीटर लिजर्ड येलो मानीटर लिजर्ड वाटर मानीटर लिजर्ड व डिसर्ट मानीटर लिजर्ड प्रजातियां होती हैं।
आनलाइन तस्करी पर कसा शिकंजा : उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा व उत्तराखंड में गोह के अनुवांशिक रक्त समूह पर कार्य कर रहीं शोधकर्ता कुमुदनी बाला गौतम ने बताया कि शेर व बाघ जैसे महत्वपूर्ण जीवों की तरह गोह भी संरक्षित श्रेणी-एक का प्राणी है। डब्ल्यूआइआइ की रिपोर्ट से इसकी तस्करी पर लगाम लगी है। कुछ आनलाइन मार्केटिंग कंपनियां इस जीव के अंगों को बेचा करती थीं उन्होंने यह काम बंद कर दिया। इसे पकडऩे व मारने पर न्यूनतम तीन वर्ष की कैद व 25 हजार का जुर्माना है।