NSI Kanpur में गन्ने की खोई से बायो गैस बनाने का प्रयोग सफल, यूपी सरकार ने बढ़ाए कदम
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में गन्ने के अपशिष्ट से बायो सीएनजी और बायो गैस बनाने का प्रयोग सफल हुआ है। प्रदेश में संचालित 121 चीनी मिलों से 30 से 35 लाख टन अपशिष्ट निकलता है जिसका प्रयोग अब बाये गैस बनाने में करने के लिए प्रदेश सरकार ने कदम बढ़ाए हैं।
By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Mon, 06 Sep 2021 05:14 PM (IST)
कानपुर, जेएनएन। गन्ने से चीनी व इथेनाल निकालने के बाद बचे अपशिष्ट का इस्तेमाल अब राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआइ) फिल्टर केक बनाकर बायो सीएनजी तैयार करेगा। इसमें सफलता मिल चुकी है। अब इसे बड़े पैमाने पर बनाने की तैयारी है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने कदम बढ़ाए हैं। निजी कंपनियों के साथ मिलकर बायो सीएनजी प्लांट स्थापित किया जाएगा। प्रदेश के गन्ना विकास व चीनी मिल मंत्री सुरेश राणा ने भी इसके संकेत दिए हैं। उन्होंने एनएसआइ के इस शोध का औद्योगिकीकरण किए जाने के लिए निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन से योजना तैयार करने के लिए कहा है।
प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि चीनी मिलों से भारी मात्रा में अपशिष्ट निकलता है, जिसे कूड़े में डाल दिया जाता है। इससे फिल्टर केक तैयार करके बायो सीएनजी व बायो गैस बनाई जा सकती है। उन्होंने एनएसआइ प्रयोगशाला में इसके परीक्षण के लिए छोटा प्लांट लगाया है। प्रदेश में 121 चीनी मिले हैं। गन्ना पेराई के दौरान साढ़े तीन फीसद अपशिष्ट निकलता है। चीनी मिलों की संख्या के आधार पर सीजन में 30 से 35 लाख टन अपशिष्ट निकलता है। इस अपशिष्ट को फेंक दिया जाता है, जो सड़ता रहता है। इसे अपशिष्ट केक बनाकर संरक्षित किया जा सकता है। इसके बाद अपशिष्ट केक से बायो सीएनजी व बायो गैस बनाकर बेहतरी लाई जा सकती है।
इंडोनेशिया से करार करने की तैयारी
मिस्र, श्रीलंका व नाइजीरिया के बाद अब एनएसआइ इंडोनेशिया से करार करने जा रहा है। निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि श्रीलंका में शुगन केन रिसर्च सेंटर के लिए करार किया गया है, जबकि नाइजीरिया में नाइजीरिया शुगर इंस्टीट्यूट स्थापित किया है। मिस्र में शुगर टेक्नोलाजी व रिसर्च सेंटर की अत्याधुनिक प्रयोगशाला संस्थान के सहयोग से विकसित की गई है। अब इंडोनेशिया के साथ ही शोध के क्षेत्र में काम किया जाएगा। प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि दुनिया के कई संस्थानों से एनएसआइ चीनी उत्पादन की तकनीकी के शोध संस्थानों में बहुत आगे है।
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