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Shatabdi Express में अब नहीं प्रवेश कर सकेगा Corona, कोच के अंदर UVC तकनीक से मरेगा Virus

यूवीसी तकनीक वायरलेस रिमोट कंट्रोल से चलने वाले रोबोटिक सिस्टम पर आधारित है। रिमोट कंट्रोल से इस रोबोटनुमा मशीन को आगे पीछे किया जा सकता है। इसमें यूवी का तात्पर्य अल्ट्रा वायलट है जबकि सी निकलने वाली किरण की कैटेगरी है

By Akash DwivediEdited By: Updated: Wed, 08 Sep 2021 01:55 PM (IST)
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पूरी ट्रेन को संक्रमण से मुक्त करने के बाद यात्री ट्रेन पर सफर करेंगे

कानपुर, जेएनएन। कोरोना संक्रमण के चलते यात्री गैर जरूरी यात्राएं करने से बच रहे हैं, जिसका असर रेलवे पर पड़ा है। इसे देखते हुए उत्तर रेलवे ने ट्रेन के डिब्बों को संक्रमण से मुक्त रखने के लिए यूवी-सी (अल्ट्रावायलेट-सी) तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है। इससे कोरोना वायरस को 99.99 फीसद नष्ट किया जा सकता है। फिलहाल, इसकी शुरुआत लखनऊ से नई दिल्ली चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस से की गई है। जल्द ही अन्य ट्रेनों में भी इसका प्रयोग शुरू होगा। रेलवे अधिकारी बताते हैं कि बाशिंग लाइन में इस तकनीक से पूरी ट्रेन को संक्रमण से मुक्त करने के बाद यात्री ट्रेन पर सफर करेंगे। हालांकि, उन्हें कोविड प्रोटोकाल का पालन करना होगा।

क्या है यूवी-सी तकनीक : यूवीसी तकनीक वायरलेस रिमोट कंट्रोल से चलने वाले रोबोटिक सिस्टम पर आधारित है। रिमोट कंट्रोल से इस रोबोटनुमा मशीन को आगे पीछे किया जा सकता है। इसमें यूवी का तात्पर्य अल्ट्रा वायलट है, जबकि सी निकलने वाली किरण की कैटेगरी है, जो वायरस खत्म करने में मददगार होती है। इस रोबोट में दो विग्स लगे होते हैं, जो यात्री कोच में जाते ही फैल जाते हैं। इन विग्स से निकलने वाली अल्ट्रावायलेट-सी किरणें कोरोना के संक्रमण को पूरी तरह समाप्त कर देती हैं। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, प्रयोगशाला में इस तकनीक का परीक्षण किया गया। परीक्षण के बाद सामने आया कि इस तकनीक से जीवाणु, कीटाणु और रोगाणु 99.99 फीसद तक समाप्त हो गए। इसका प्रयोग मानव जीवन के लिए नुकसानदेह नहीं है।

एयर इंडिया भी कर रही इस्तेमाल : रेलवे अधिकारी बताते हैं, विमानन कंपनी एयर इंडिया इस तकनीक को काफी पहले से इस्तेमाल कर रही है। कोरोना संक्रमण के दौरान अब कई अस्पतालों में भी इसका प्रयोग शुरू हो चुका है। हालांकि, रेलवे ने पहली बार इसका प्रयोग शुरू किया है।

इनका ये है कहना

  • अभी शताब्दी एक्सप्रेस में इस तकनीक का प्रयोग शुरू किया गया है। ये भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) से प्रमाणित है। इसका फायदा भी दिख रहा है। जल्द ही अन्य ट्रेनों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया जाएगा। - दीपक कुमार, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी, उत्तर रेलवे
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