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डिकोडिंग द योग सूत्राज आफ पतंजलि.., भ्रांतियों को दूर करने और योग की वास्तविकता समझने का सरल तरीका

योग गुरु कौशल कुमार और उद्यमी जय सिंघानिया की पुस्तक डिकोडिंग द योग सूत्राज आफ पतंजलि ए बिगिनर्स गाइड टु द अल्टीमेट ट्रुथ की समीक्षा करते हुए ब्रजबिहारी ने भारतीय जीवन पद्धति का उद्घोष बताया है ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Mon, 20 Jun 2022 12:36 PM (IST)
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योग के महत्व और वास्तविकता पर प्रकाश डालती है पुस्तक।
पुस्तक : डिकोडिंग द योग सूत्राज आफ पतंजलि, ए बिगिनर्स गाइड टु द अल्टीमेट ट्रुथ

लेखक : कौशल कुमार और जय सिंघानिया

प्रकाशक : विज्ञान योग पब्लिकेशन

मूल्य: 399 रुपये

समीक्षा : ब्रजबिहारी

महर्षि पतंजलि के योग सूत्र को आधार बना कर लिखी गई यह पुस्तक योग के वास्तविक अर्थ और उसके महत्व पर प्रकाश डालती है। यह योग पर प्रचलित भ्रांतियों का उन्मूलन भी करती है।

भारतीय दर्शन और उस पर आधारित जीवन पद्धति की धूम पूरी दुनिया में मची हुई है। वर्ष 2015 में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की शुरुआत इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। यूरोप और अमेरिका के साथ मुस्लिम देशों में भी योग की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। इसके बावजूद इसको लेकर भ्रांतियों की भी कमी नहीं और इसके नाम पर देश-विदेश में लोगों को मूर्ख बनाने वाले तथाकथित गुरुओं का भी अभाव नहीं है। ऐसे मे योग गुरु कौशल कुमार और उद्यमी जय सिंघानिया की पुस्तक 'डिकोडिंग द योग सूत्राज आफ पतंजलि : ए बिगिनर्स गाइड टु द अल्टीमेट ट्रुथ' पाठकों खासकर अंग्रेजी जानने-समझने वालों के लिए मार्गदर्शक का काम कर सकती है।

व्यक्ति की चित्त की चंचलता का शमन करते हुए उसे सभी प्रकार के विचारों से मुक्त करना ही योग का एकमात्र लक्ष्य है। उसके बाद ही व्यक्ति ज्ञानोदय की अवस्था में पहुंच सकता है, जहां कोई दुख उसे प्रभावित नहीं कर सकता है। ज्ञानोदय की दो अवस्थाएं होती है। पहली में व्यक्ति राजसिक और तामसिक विचारों से छुटकारा प्राप्त करता है। इस अवस्था में व्यक्ति विवेकपूर्ण हो जाता है, क्योंकि उसके अंदर केवल अच्छे विचारों का वास होता है। इस अवस्था को प्राप्त व्यक्ति जीवन में जो इच्छा करे, उसे प्राप्त कर सकता है। दूसरी अवस्था में सात्विक विचार भी विलग हो जाते हैं। यह ज्ञानोदय की अवस्था होती है। दरअसल, हमारे दुखों का मूल कारण हमारे विचार हैं। इसलिए दुख से मुक्ति तभी मिलती है, जब सात्विक विचारों से भी नाता टूट जाता है।

इस अवस्था तक पहुंचना बहुत कठिन है। विचारों से मुक्ति पाना दुष्कर कार्य है। बाहरी दुनिया के आकर्षण को ही हम सत्य मान बैठे हैं, इसलिए उसे ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करने के लिए सुबह से शाम तक परेशान रहते हैं। किसी के पास कोई अलग चीज देखी और मचल गए। लगता है कि खुश रहने के लिए भौतिक दुनिया की आवश्यकताओं की पूर्ति ही एकमात्र साधन है। वास्तविकता ठीक इसके उलट है। यही योग का संदेश है। योग को हिंदू धर्म से जोड़कर देखना तो नासमझी की पराकाष्ठा है, यह विशुद्ध रूप से एक पद्धति है।

योग की इस महत्ता को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए लेखक द्वय ने पुस्तक की भाषा काफी सरल रखी है। महर्षि पतंजलि के योग सूत्र की तरह इस पुस्तक में भी चार अध्याय हैं। पहले अध्याय में समाधि पद, दूसरे में साधना पद, तीसरे में विभूति पद और चौथे में कैवल्य पद का वर्णन है। सभी पदों में दिए सूत्रों को मूल संस्कृत में भी लिखा गया और फिर उसके बाद अंग्रेजी में उसका अर्थ बताया गया है। यही नहीं, पुस्तक में संस्कृत शब्दों के उच्चारण करने का तरीका भी बताया गया है, ताकि शब्दों को सही ढंग से पढ़ा और समझा जाए। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि क्यों और कैसे योग सूत्र में योगी के उडऩे, पानी पर चलने, पर्वत की तरह बड़ा या मक्खी की तरह छोटा आकार ग्रहण करने जैसी बातें शामिल हुई होंगी।

लेखक द्वय ने अपनी इस रचना के केंद्र में योग दर्शन के प्रशिक्षुओं को रखा है, जो इसके शीर्षक से ही स्पष्ट है। आज से लगभग दो हजार साल पहले महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र के रूप में एक ऐसी रचना की, जिसका अनुकरण करके सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति पाई जा सकती है। कठिनाई यह है कि मूल रचना संस्कृत में लिखी गई, जो जनसाधारण की भाषा नहीं थी। इसके बाद इस पर टीकाएं लिखी गईं, लेकिन वे सैद्धांतिक ज्यादा थी, इसलिए उनका अनुकरण करना सरल नहीं था। कालांतर में महर्षि वेदव्यास ने इसकी ऐसी व्याख्या प्रस्तुत की, जिससे पतंजलि के योग सूत्र के वास्तविक अर्थ को समझने में मदद मिली। आज दुनिया की कई भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। इसके बावजूद प्रामाणिकता की समस्या बनी हुई है। उम्मीद है कि लेखक द्वय की यह पुस्तक इस कमी को दूर करेगी।

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