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प्राचीन सभ्यताओं की थाती सहेजे है ये महानगर, भगवान शिव को समर्पित हैं तीन देवालय; जानिये क्या है इतिहास

कानपुर के घाटमपुर तहसील के भीतरगांव ब्लॉक में स्थित कोरथा गांव अपने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित तीन देवालय गुप्तोत्तरकालीन स्थापत्य कला के बेहतरीन उदाहरण हैं। मुख्य मंदिर पंचायतन मंदिर और गोलाकार मंदिर सभी अपने अनूठे डिजाइन और वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं। इस लेख में हम आपको कोरथा के इन प्राचीन मंदिरों के बारे में विस्तार से बताएंगे...।

By shiva awasthi Edited By: Sakshi Gupta Updated: Sun, 24 Nov 2024 05:32 PM (IST)
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भगवान शिव को समर्पित हैं कानपुर के तीन देवालय। (तस्वीर जागरण)
शिवा अवस्थी, कानपुर। घाटमपुर तहसील के भीतरगांव ब्लॉक में छोटा सा गांव है कोरथा। कोरथा दो साल पहले सड़क हादसे में 26 मौतों से चर्चा में आया। यह गांव अपने आगोश में प्राचीन धरोहर और इतिहास भी सहेजे है। यहां स्थित गुप्तोत्तरकालीन तीन देवालय आकर्षण का केंद्र हैं। तीन देवालयों में मुख्य मंदिर, पंचायतन मंदिर व गोलाकार मंदिर हैं। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में उच्च कोटि की पच्चीकारी व उभारदार अलंकृत पट्टिकाएं मन को मोह लेती हैं। पढ़िए, ये रिपोर्ट...

तीनों देवालयों का निर्माण अधूरा रह गया या इन्हें तोड़ा गया, इसे लेकर यहां के लोग अनभिज्ञ हैं। हालांकि, अधूरा निर्माण भी इसके आकर्षण को और बढ़ाता है। मंदिर परिसर में घुसते ही एक अलग सा अहसास होता है। पड़ोस में पर्यटन करना है तो यहां जा सकते हैं। विश्व धरोहर सप्ताह 25 नवंबर तक है। ऐसे में संरक्षित स्मारकों व संग्रहालयों को जानने की कड़ी में इस स्थल का जिक्र आवश्यक बन पड़ता है। ये स्थल पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित भी है।

सुरक्षित ईंटों से निर्मित है गुप्तकालीन विरासत

गुप्तकालीन विरासत सुरक्षित ईंटों से निर्मित है। वर्तमान में इस मंदिर के अवशेष ही मौजूद हैं। मंदिर की मूल संरचना कैसी रही होगी, ये मंदिर किन देवता का रहा होगा, इसका भी पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है। ग्रामीण इसे आलदेव बाबा के मंदिर के नाम से पुकारते हैं। मंदिर की बनावट भगवान शिव के मंदिरों जैसी है। पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित मंदिर को पहली नजर में देखने पर ऐसा लगता है, जैसे परिसर को किसी दीवार के माध्यम से बीच से विभाजित किया गया है।

जानिये, कैसा दिखता है मंदिर?

विभाजित एक हिस्से के बीचों-बीच किसी मंदिर का चबूतरा है। उसके आसपास ऐसे ही तीन और चबूतरे स्थित हैं। दूसरे हिस्से में एक ऊंचा चबूतरा व मंदिर के गर्भगृह की दीवारें हैं। मंदिर निर्माण की शैली गुप्त काल के दौरान की हैं। गर्भगृह की दीवारों के निचले हिस्से पर पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां अद्भुत व दर्शनीय हैं। मंदिर में लगी प्राचीन टेराकोटा ईंटों को देखकर पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण पांचवीं सदी में हुआ होगा। मंदिर की ईंटें, निर्माण शैली काफी हद तक भीतरगांव के सूर्य मंदिर से मेल खाती है। मंदिर देखने पर ऐसा लगता है कि वर्गाकार गर्भगृह के ऊपर एक बड़ा शिखर रहा होगा।

अलग-अलग समय के पुरातत्व विभाग के अफसरों को कोरथा में निर्मित मुख्य मंदिर गुप्तोत्तर काल का होने की बात पता चली है। यहां स्थित अन्य दो देवालय पूर्व मध्यकालीन या मध्यकालीन हैं।

मंदिर तक कैसे पहुंचे?

सड़क मार्ग से मंदिर तक पहुंचने के लिए कानपुर के नौबस्ता चौराहा से रमईपुर होकर साढ़-मंझावन मार्ग से होकर साढ़ कस्बे पहुंचे। यहां से भीतरगांव जाने वाले रास्ते पर चलकर कोरथा गांव बाईं दिशा में गई सड़क पर कुछ दूर पर स्थित है। गांव में ही ये गुप्तकालीन मंदिर स्थित है। ट्रेन से पहुंचने के लिए पतारा या घाटमपुर स्टेशन पर उतरकर घाटमपुर वाया भीतरगांव होकर साढ़ होकर मंदिर पहुंच सकते हैं।

पंचायतन शैली, उभारदार पट्टिकाएं

कोरथा गांव स्थित देवालय में मुख्य मंदिर भू-विन्यास में स्थित है। 0.75 मीटर ऊंची जगती पर निर्मित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित होने की बात निर्माण शैली से पता चलती है। इसमें उच्चकोटि की पच्चीकारी, उभारदार अलंकृत पट्टिकाएं आकर्षण बिखेरती हैं। वर्गाकार गर्भगृह का दृश्य मन मोह लेता है। दूसरा देवालय भू-विन्यास में पंचायतन शैली का है। इसका केवल ध्वंसावशेष ही अब केवल बचा है। तीसरा देवालय बाहर से गोलाकार व अंदर से वर्गाकार है। यहां उत्खनन में मिट्टी की बनी एक स्त्री प्रतिमा व पाषाण प्रतिमा के कुछ टुकड़े भी मिले थे। भू-विन्यास में बाहर से लगभग 11 मीटर का वर्गाकार यह मंदिर भग्नावस्था में मिला था।

मंदिर के निचले भाग में सादी लेकिन उभारयुक्त पच्चीकारी है। इसके ऊपर पकी मिट्टी के पट्टों की कई श्रृंखलाएं हैं। ये अर्ध स्तंभों से विभक्त हैं। इन अर्ध स्तंभों के मध्य में अनके मिट्टी की मूर्तियां अलग ही आकर्षण बिखेरती हैं। ये अर्ध स्तंभ अत्यंत अलंकृत छजली से युक्त है, जो मंदिर के चारों ओर दिखाई पड़ती है। मंदिर के पास ही ईंटों के एक अन्य निर्माण के अवशेष दिखते हैं। इसमें बाहर से सोलह पहल हैं व इसके मध्य में 3.4 मीअर व्यास का गर्भगृह भी निर्मित है।

कानपुर मंडल के मंडलायुक्त अमित गुप्ता ने बताया कि कानपुर दर्शन के तहत शहर व आसपास क्षेत्रों में स्थित प्राचीन धरोहरों को लेकर सर्किट तैयार कराया गया है। छात्र-छात्राओं को इन्हें दिखाया जा रहा है। पड़ोस में पर्यटन की थीम पर इसे सराहना भी मिल रही है। भीतरगांव, घाटमपुर, बिठूर से लेकर गंगा तटवर्ती स्थल दर्शनीय हैं। धीरे-धीरे लोगों में इनके प्रति रुचि बढ़ रही है।

जिलाधिकारी राकेश कुमार सिंह ने बताया कि भीतरगांव में बेहटा के जगन्नाथ मंदिर के आसपास तालाब और सड़क के काम कराए जा रहे हैं। कोरथा के देवालयों को लेकर भी कार्ययोजना बनाई जाएगी। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जबकि नई पीढ़ी संस्कृति, इतिहास व प्राचीन धरोहरों को करीब से जान सकेगी।

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