प्राचीन सभ्यताओं की थाती सहेजे है ये महानगर, भगवान शिव को समर्पित हैं तीन देवालय; जानिये क्या है इतिहास
कानपुर के घाटमपुर तहसील के भीतरगांव ब्लॉक में स्थित कोरथा गांव अपने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित तीन देवालय गुप्तोत्तरकालीन स्थापत्य कला के बेहतरीन उदाहरण हैं। मुख्य मंदिर पंचायतन मंदिर और गोलाकार मंदिर सभी अपने अनूठे डिजाइन और वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं। इस लेख में हम आपको कोरथा के इन प्राचीन मंदिरों के बारे में विस्तार से बताएंगे...।
शिवा अवस्थी, कानपुर। घाटमपुर तहसील के भीतरगांव ब्लॉक में छोटा सा गांव है कोरथा। कोरथा दो साल पहले सड़क हादसे में 26 मौतों से चर्चा में आया। यह गांव अपने आगोश में प्राचीन धरोहर और इतिहास भी सहेजे है। यहां स्थित गुप्तोत्तरकालीन तीन देवालय आकर्षण का केंद्र हैं। तीन देवालयों में मुख्य मंदिर, पंचायतन मंदिर व गोलाकार मंदिर हैं। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में उच्च कोटि की पच्चीकारी व उभारदार अलंकृत पट्टिकाएं मन को मोह लेती हैं। पढ़िए, ये रिपोर्ट...
तीनों देवालयों का निर्माण अधूरा रह गया या इन्हें तोड़ा गया, इसे लेकर यहां के लोग अनभिज्ञ हैं। हालांकि, अधूरा निर्माण भी इसके आकर्षण को और बढ़ाता है। मंदिर परिसर में घुसते ही एक अलग सा अहसास होता है। पड़ोस में पर्यटन करना है तो यहां जा सकते हैं। विश्व धरोहर सप्ताह 25 नवंबर तक है। ऐसे में संरक्षित स्मारकों व संग्रहालयों को जानने की कड़ी में इस स्थल का जिक्र आवश्यक बन पड़ता है। ये स्थल पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित भी है।
सुरक्षित ईंटों से निर्मित है गुप्तकालीन विरासत
गुप्तकालीन विरासत सुरक्षित ईंटों से निर्मित है। वर्तमान में इस मंदिर के अवशेष ही मौजूद हैं। मंदिर की मूल संरचना कैसी रही होगी, ये मंदिर किन देवता का रहा होगा, इसका भी पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है। ग्रामीण इसे आलदेव बाबा के मंदिर के नाम से पुकारते हैं। मंदिर की बनावट भगवान शिव के मंदिरों जैसी है। पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित मंदिर को पहली नजर में देखने पर ऐसा लगता है, जैसे परिसर को किसी दीवार के माध्यम से बीच से विभाजित किया गया है।जानिये, कैसा दिखता है मंदिर?
विभाजित एक हिस्से के बीचों-बीच किसी मंदिर का चबूतरा है। उसके आसपास ऐसे ही तीन और चबूतरे स्थित हैं। दूसरे हिस्से में एक ऊंचा चबूतरा व मंदिर के गर्भगृह की दीवारें हैं। मंदिर निर्माण की शैली गुप्त काल के दौरान की हैं। गर्भगृह की दीवारों के निचले हिस्से पर पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां अद्भुत व दर्शनीय हैं। मंदिर में लगी प्राचीन टेराकोटा ईंटों को देखकर पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण पांचवीं सदी में हुआ होगा। मंदिर की ईंटें, निर्माण शैली काफी हद तक भीतरगांव के सूर्य मंदिर से मेल खाती है। मंदिर देखने पर ऐसा लगता है कि वर्गाकार गर्भगृह के ऊपर एक बड़ा शिखर रहा होगा।अलग-अलग समय के पुरातत्व विभाग के अफसरों को कोरथा में निर्मित मुख्य मंदिर गुप्तोत्तर काल का होने की बात पता चली है। यहां स्थित अन्य दो देवालय पूर्व मध्यकालीन या मध्यकालीन हैं।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।