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...कि वो हिंदू क्यों है? इस सवाल पर डा. भीमराव आंबेडकर के मंथन का एक अंश

वो पारसी क्यों है? ईसाई क्यों है? मुसलमान क्यों है? सभी के पास अपना जवाब है लेकिन अगर पूछिए कि वो हिंदू क्यों है? इस प्रश्न पर कुछ भी संदेह नहीं कि वह एकदम चकरा जाएगा। उसकी समझ में न आएगा कि वह क्या उत्तर दे?

By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Sun, 10 Apr 2022 09:26 AM (IST)
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क्रांतिकारियों की कलम : धर्म पर मंथन करे समाज
कानपुर, फीचर डेस्क। धर्म को लेकर खींचतान करने से बेहतर है कि हम इसके प्रति स्पष्ट विचार रखें। इसी मुद्दे पर जनसामान्य से पहेलियों के रूप में प्रश्न किए थे डा. भीमराव आंबेडकर ने। बाबा साहेब की जन्मजयंती (14 अप्रैल) पर पढ़िए उनके मंथन का एक अंश...

भारत जमातों का देश है। यहां पारसी, ईसाई, मुसलमान और्र हिंदू रहते हैं। इन जमातों का आधार भिन्न-भिन्न नस्लें नहीं हैं। यह स्पष्ट है कि ये धार्मिक विभाजन है। किंतु ऐसा मान बैठना भी किसी बात की गहराई में जाना नहीं है। जो बात महत्व की है वह यह है कि जो पारसी है, वो पारसी क्यों है? जो ईसाई है, वह ईसाई क्यों है? जो मुसलमान है, वह मुसलमान क्यों है? जो हिंदू हैं वो हिंदू क्यों है? जहां तक पारसी, ईसाई, मुसलमान का सवाल है, उनके लिए प्रश्न का उत्तर देना कठिन नहीं। किसी पारसी से पूछिए कि वह पारसी क्यों है? उसे इस प्रश्न का उत्तर देने में कुछ कठिनाई न होगी। वह कहेगा कि वह इसलिए पारसी है क्योंकि वह जोराष्टर का अनुयायी है। यही प्रश्न किसी ईसाई से भी पूछिए। उसे भी प्रश्न का उत्तर देने में कुछ कठिनाई न होगी। वह ईसाई है क्योंकि वह हजरत ईसा में विश्वास करता है। एक मुसलमान से भी यही प्रश्न पूछिए। उसको भी इस प्रश्न का उत्तर देने में तनिक हिचकिचाहट न होगी। वह कहेगा कि वह इस्लाम में विश्वास करता है, इसीलिए वह मुस्लिम है। अब यही प्रश्न एक हिंदू से पूछकर देखिए। इसमें कुछ भी संदेह नहीं कि वह एकदम चकरा जाएगा। उसकी समझ में न आएगा कि वह क्या उत्तर दे?

यदि वह कहता है कि वह हिंदू इसलिए है कि वह उसी देवता की पूजा करता है, जिसकी बाकी सारे हिंदू करते हैं, तो उसका उत्तर सच्चा और सही नहीं हो सकता। सर्भी हिंदू किसी भी एक देवता को नहीं मानते हैं और किसी भी एक देवता की पूजा नहीं करते। कुछ हिंदू एक-देववादी हैं, कुछ अनेक देवताओं को नहीं मानते। कुछ विष्णु की पूजा करते हैं। कुछ भगवान शिव की, कुछ श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। कुछ किसी भी पुरुष देवता को नहीं मानते। वे किसी स्त्री देवी की पूजा करते हैं। देवियों को मानने वाले भी किसी एक ही देवी की पूजा नहीं करते। वे भिन्न-भिन्न देवियों को पूजते हैं। कुछ मां काली की पूजा करते हैं, कुछ पार्वती माता की पूजा करते हैं, कुछ लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं।

अनेक देववादियों को लें, वे सभी देवताओं को मानते-पूजते हैं। वे विष्णु को भी पूजेंगे, भगवान शिव को भी पूजेंगे, श्रीराम और श्रीकृष्ण को भी पूजेंगे। वे मां काली, पार्वती माता और लक्ष्मी माता को एक साथ पूजेंगे। एक हिंदू शिवरात्रि का व्रत रखेगा, क्योंकि वह भगवान शिव का पवित्र दिन है। वह एकादशी व्रत रखेगा, क्योंकि वह विष्णु का पवित्र दिन है। वह बेल का गाछ लगाएगा, क्योंकि वह भगवान शिव का पवित्र पेड़ है। वह तुलसी का पौधा लगाएगा, क्योंकि वह विष्णु का प्रिय पौधा है। हिंदुओं में जो अनेकदेववादी हैं, वे केवल हिंदू देवी-देवताओं की पूजा नहीं करते। वे किसी के भी देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। हजारों हिंदू अनेक मुस्लिम पीरों के परंपरागत पूजक ब्राह्मण हैं और मुस्लिम पीरों का वेश पहनते हैं। बंबई के पास ही मंत मौली नाम की ईसाई देवी पर हजारों हिंदू चढ़ावा चढ़ाने जाते हैं। ईसाई या मुस्लिम देवी-देवताओं की पूजा समय विशेष पर होती है। कुछ हिंदू लोग दूसरे धर्मों के साथ इसकी भी अपेक्षा निकट-वफादारी का संबंध निभाते हैं।

मलकान-मुसलमानों की चर्चा करते हुए श्री ब्लंट ने लिखा है कि वे सभी पहले के हिंदू हैं और आगरा जिले के तथा आस-पास के मथुरा, एटा, मैनपुरी सदृश जिलों के रहने वाले हैं। वे पहले के राजपूत, जाट और बनिया हैं। वे अपना परिचय अपने आपको मुसलमान कहकर नहीं देते। वे बहुधा अपनी पुरानी जाति का नामोल्लेख करते हैं और मुश्किल से ‘मलकाना’ शब्द तक को जानते हैं। उनके नाम हिंदुओं के से नाम से हैं। वे अक्सर हिंदू-मंदिरों में आते-जाते हैं। आपस में भेंट-मुलाकात होने पर वे ‘राम-राम’ कहते हैं। शादी-विवाह वे केवल आपस में करते हैं। यूं वे कभी-कभी किसी मस्जिद में भी चले जाते हैं। वे सुन्नत करवाते हैं और अपने मुर्दों को दफन करते हैं।

यदि कोई कहता है कि मैं इसलिएद हिंदू हूं क्योंकि मैं हिंदू सिद्धांतों को मानता हूं, तो उसका जवाब भी सही नहीं। यहां परिस्थिति इतनी विकट है कि हिंदू धर्म के अपने कोई स्थिर सिद्धांत हैं ही नहीं। जो लोग अपने आपको हिंदू कहते हैं, उनमें ही से कुछ हिंदुओं के सिद्धांत अपने को हिंदू ही कहने वाले दूसरे लोगों के सिद्धांतों से इतने भिन्न हैं, जितने एक मुसलमान के एक ईसाई से भी नहीं होंगे। कुछ मुख्य सिद्धांतों तक ही अपने आप को सीमित रखें तो हिंदुओं के मुख्य सिद्धांत भी परस्पर विरोधी ही हैं। कुछ हिंदू कहते हैं कि सभी हिंदू ग्रंथों को मान्य ठहराया जाए। कुछ हिंदू तंत्र ग्रंथों को अमान्य कहेंगे। कुछ दूसरे हिंदू केवल वेदों को मान्य ठहराएंगे। कुछ का कहना है कि हिंदू होने के लिए कर्मों और जन्मांतर के सिद्धांत को मानना पर्याप्त है।

मान्यताओं और सिद्धांतों के अत्यंत उलझे हुए संग्रह का नाम हिंदू धर्म है। इसके घेरे में आते हैं एकेश्वरवादी, अनेक देववादी, सर्वेश्वरवादी, भगवान शिव और विष्णु जैसे महान देवताओं के पुजारी, उनकी देवियों के पुजारी, वृक्षों की पूजा करने वाले, चट्टानों और जलधाराओं की पूजा करने वाले तथा गांव के संरक्षक देवताओं के पुजारी। यदि कोर्ई हिंदू कहे कि मैं इसीलिए हिंदू हूं क्योंकि मैं दूसरे हिंदुओं के जो रीति-रिवाज हैं उन्हीं का अनुकरण करता हूं, तो इसका उत्तर भी सही नहीं है। सभी हिंदुओं के रीति-रिवाज समान हैं ही नहीं।

क्या यह प्रश्न प्रत्येक हिंदू के लिए विचारणीय नहीं है कि उनके अपने धर्म को ही लेकर उसकी अपनी स्थिति क्यों इतनी अधिक डांवाडोल है? जिस सीधे-साधे प्रश्न का उत्तर प्रत्येक पारसी, ईसाई या मुसलमान दे सकता है, अकेला वही उस प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं दे सकता? क्या अब भी वह समय नहीं आया, जब उसके लिए अपने आपसे यह प्रश्न पूछना अनिवार्य हो गया हो कि ऐसे कौन से कारण घटित हुए, जिनकी वजह से ऐसी धांधली मची हुई है!

( पुस्तक: हिंदू धर्म की पहेलियां

प्रकाशक: डा. आंबेडकर प्रतिष्ठान, भारत सरकार)

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