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यह राक्षस है, जिसका नाम रावण है.., 164 साल पहले कानपुर में दशहरे का आंखों देखा हाल बताती अंग्रेज लेखक की डायरी

अंग्रेज लेखक विलियम हावर्ड रसेल ने अपनी पुस्तक माई डायरी इन इंडिया में 1858 में कानपुर की विजयादशमी पर्व का आंखों देखा हाल बताया है। अंग्रेस शासनकाल में 164 वर्ष पहले शहर में किस तरह दशहरा मनाया जाता था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Wed, 05 Oct 2022 11:58 AM (IST)
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कानपुर में अंग्रेज लेखक विलियम हावर्ड रसेल की पुस्तक में दहशरा का जिक्र।
कानपुर, मोहम्मद दाऊद खान। सदियों से देश में असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक विजयादशमी पर्व मनाया जा रहा है लेकिन जब भारत में अंग्रेजों के शासन की शुरुआत हुई तब त्योहार कैसे मनाए गए। इस सवाल का आंखों देखा जवाब अब शायद कोई नहीं दे पाए लेकिन अंग्रेज लेखक विलियम हावर्ड रसेल ने अपनी पुस्तक माई डायरी इन इंडिया में दशहरे के पर्व का उल्लास बयां किया है। उन्होंने अंग्रेज शासन काल में 164 वर्ष पहले कानपुर में आयोजित हुए दशहरा का आंखों देखा हाल बताया है। 

अंग्रेज लेखक विलियम हावर्ड रसेल ने वर्ष 1858-59 का समय भारत में बिताया था। इस दौरान उन्होंने कानपुर की भी यात्रा की। भारत में अपनी यात्रा के वृतांत पर उन्होंने डायरी तैयार की। वर्ष 1860 में इसको माई डायरी इन इंडिया के नाम से लंदन में रूटलेज, वार्ने एंड रूटलेज ने प्रकाशित किया। इस पुस्तक में लेखक ने कानपुर की रामलीला व रावण दहन का भी वर्णन किया है। उस समय होने वाली भीड़, विशालकाय रावण व भव्य सजावट, संगीत आदि का जिक्र है।

यह राक्षस है, जिसका नाम रावण है

हावर्ड ने अपनी डायरी में लिखा है कि वह 17 अक्टूबर वर्ष 1858 में कानपुर पहुंचकर चर्च गए। वहां से उन्होंने देखा कि मैदान में 70 से 80 फीट का विशाल पुतला खड़ा हुआ है। उसका बहुत बड़ा सिर है और कई भुजाएं भी हैं। जानकारी मिली कि यह राक्षस है, जिसका नाम रावण है। यह श्रीराम की पत्नी को सीलोन (लंका) ले गया था। भगवान राम ने वानरों की सहायता से उसे मार दिया। रावण की मृत्यु पर उत्सव मनाया जाता है। उन्होंने अपनी डायरी में रामलीला में उमड़ने वाली भीड़, रावण दहन तथा विजयादशमी पर होने वाले हर्षोल्लास का वर्णन किया है।

बडा मैदान खचाखच भरा था

अंग्रेज लेखक ने अपनी डायरी में लिखा है कि शाम को वह सम्मानित भारतीय के घर गए, जिसका बरामदा बाहर मैदान की तरफ था। वहां से रामलीला तथा रावण दहन का पूरा कार्यक्रम देखा। इस दौरान बहुत बड़ा मैदान लोगो से खचाखच भरा हुआ था। ऐसा लग रहा था कि पूरा शहर रावण को जलता देखने के लिए पहुंच गया हो। हर तरफ रोशनी थी। लोग अच्छे कपड़े पहनकर मैदान में पहुंच रहे थे।

80 फीट ऊंचे पुतलेद के बड़े सिर और भुजाएं

पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि भीड़ के बीच हाथी व ऊंट व गाड़ियों पर सवार लोग श्री राम की सेना के रूप में शामिल थे। वे बड़ी कठिनाई से रास्ता बनाते हुए रावण के पुतले के पास पहुंचे। कई भुजाओं वाला विशालकाय रावण का 80 फीट ऊंचा पुतला बना है, जिसके बड़े सिर के साथ उसकी भुजाएं भी हैं। जलते समय रावण की आंखों से आग निकल रही है। आग से जलता पुतला देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं और तेज आवाज में श्रीराम श्रीराम बोल रहे हैं। रथयात्रा के साथ भव्य आतिशबाजी होती थी। भीड़ को काबू में करने के लिए घुड़सवार पुलिस तैनात है।

देर तक होती थी भव्य आतिशबाजी

रावण के दहन से पहले देर तक भव्य आतिशबाजी हुई। अंग्रेज लेखक ने लिखा है कि रावण का पुतला दहन के दौरान राम ने तीर चलाया। इससे रावण का शरीर जलने लगा। उसकी आंखों से भी आग निकलने लगी। बारूद आदि से भरे सूती कपड़े तेज आवाज के साथ फटने लगे। अंत में कई बार इधर-उधर झूलता हुआ रावण का ऊपरी भाग जमीन पर गिर गया। लोग शोर मचाते हुए नाचने लगे।

-अंग्रेज लेखक विलियम हावर्ड रसेल की पुस्तक के पेज नंबर 273-274 पर कानपुर में होने वाली विजयादशमी उत्सव का जिस तरह उल्लेख किया है इससे साफ है कि आज से 164 वर्ष पहले भी दशहरा में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी थी। पूरे शहर में हर्षोल्लास होता था। 19वीं सदी के मध्य में विशालकाय रावण बनता था, आतिशबाजी देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते थे। -अनूप शुक्ला, महासचिव कानपुर इतिहास समिति

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