2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा की लहर कुछ यूं चली कि हर किसी के पांव इस क्षेत्र में उखड़ गए। केवल कन्नौज सीट पर ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की पत्नी डिंपल यादव जीत पाईं। इसके बाद मोदी के लिए ‘मैं हूं चौकीदार’ की थीम ने 2019 में फिर सफलता के प्रतिमान गढ़े और सभी सीटें भाजपा के खाते में आ गईं।
2024 में ‘मोदी का परिवार’ नारे के साथ भारतीय जनता पार्टी कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की 10 लोकसभा सीटों पर तीसरी बार मैदान में है। छह सीटों पर व्यक्तिगत तौर पर उम्मीदवारों को हैट्रिक की तलाश है। इनमें फतेहपुर व जालौन से केंद्रीय मंत्री हैं, जबकि चार वर्तमान सांसद हैं। फिलहाल, तीन सीटें ऐसी हैं, जिनमें दूसरी बार उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं।
कानपुर लोकसभा सीट पर अभी प्रत्याशी घोषित नहीं हुआ है। मौजूदा सांसद मैदान में उतरे तो दूसरी बार लड़ेंगे। कोई नया नाम आया तो वह पहली बार मैदान में होंगे।
भाजपा जहां भव्य राम मंदिर निर्माण, सीएए, मुखर राष्ट्रवाद, कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में एक्सप्रेसवे, हवाई अड्डों, मूलभूत विकास कार्यों, डिफेंस कारिडोर जैसे कार्यों के साथ तीसरी बार जनसमर्थन जुटाने के लिए आश्वस्त दिख रही है वहीं सपा-कांग्रेस समेत घटक दल का आइएनडीआइए का पिछड़ा, दलित अल्पसंख्यक अर्थात पीडीए समीकरण पर जोर लगाकर रोकने के भरसक प्रयास में है।
कानपुर में हर बार बदल रहा प्रत्याशी
कानपुर संसदीय सीट पर वर्ष 2014 में भाजपा से मुरली मनोहर जोशी ने 4,74,712 मत पाकर जीत हासिल की थी। 2019 सत्यदेव पचौरी मैदान में उतरे और 4,68,937 वोट पाकर जीते। इस बार अभी इस सीट पर प्रत्याशी तय नहीं हो सका है।
दल के रूप में 2014 के बाद भाजपा तीसरी बार मैदान में है, जबकि व्यक्तिगत प्रत्याशी बदल रहा है। इससे पहले निर्दलीय एसएम बनर्जी ने 1957 से 1971 तक चार बार लगातार इस सीट पर जीत हासिल की। 1991 से 1998 तक भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण जीते। वहीं, कांग्रेस के श्रीप्रकाश 1999 से 2009 तक तीन बार जीते। दो बार केंद्रीय मंत्री भी रहे।
तीन सीटों पर दूसरी बार भाजपा प्रत्याशी मैदान में
बांदा-चित्रकूट लोकसभा क्षेत्र में 2014 में भाजपा के भैरों प्रसाद मिश्रा जीते थे। 2019 में आरके पटेल भाजपा की टिकट पर जीते। अब वह दूसरी बार मैदान में हैं। इस सीट पर दल के रूप में कांग्रेस ने 1952, 1957 से 1962 में जीत कर हैट्रिक लगाई।
सपा से 2004 में श्यामा चरण गुप्ता व 2009 में आरके पटेल जीते थे। इस तरह सपा लगातार दो बार यहां जीत चुकी है। इसी तरह इटावा-औरैया में 2014 में भाजपा के अशोक दोहरे जीते। 2019 में राम शंकर कठेरिया ने विजय पाई। 2024 में वो दूसरी बार फिर मैदान में हैं। इससे पहले आगरा से दो बार सांसद रह चुके हैं।वहीं, कन्नौज में 2012 के उपचुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध चुनी गईं। 2014 में डिंपल ने भाजपा के सुब्रत पाठक को चुनाव हराया। 2019 में सुब्रत पाठक ने डिंपल को मात दी। सुब्रत फिर से मैदान में हैं, जबकि सामने सपा प्रमुख अखिलेश यादव होंगे।
मोदी के साथ और विरोध करने वाले मतदाता हर क्षेत्र में हैं। जनता इस चुनाव को लोकतंत्र को बचाने का समझ रही है। स्वयं को बंधन में महसूस कर रहे लोग चुनाव की घोषणा के साथ सजग हो गए हैं। सपा-कांग्रेस गठबंधन कानपुर-बुंदेलखंड में भाजपा का विजय रथ रोकेगा। -अमिताभ बाजपेई, विधायक, समाजवादी पार्टीभाजपा 2014 में भी कानपुर-बुंदेलखंड की सभी 10 सीटें जीतती, लेकिन उस समय प्रदेश में सपा शासन के कारण प्रशासन ने लगकर कन्नौज में जनता को वोट नहीं डालने दिए थे। 2019 में 10 सीटों में भाजपा की जीत से यह बात आसानी से समझ सकते हैं। 2024 में केवल कानपुर-बुंदेलखंड ही नहीं, पूरे प्रदेश में हर गठबंधन का सफाया होगा। जनता परिवारवाद, भ्रष्टाचार से ऊबकर भाजपा के साथ आई है, जो अब हमेशा साथ रहेगी। -प्रकाश पाल, भाजपा कानपुर-बुंदेलखंड के क्षेत्रीय अध्यक्ष
केंद्र व राज्य की भाजपा सरकारों की नीतियों के विरुद्ध जनता में इस बार नाराजगी है। मतदाता अभी बोल नहीं रहे हैं, लेकिन आइएनडीआइए के पक्ष में एकजुटता से वोट करने की तैयारी में हैं। कांग्रेस भले दो सीटों पर लड़ रही, लेकिन सपा के साथ मिलकर सभी सीट पर ताकत लगाएंगे। बेरोजगारी, महंगाई व ग्रामीण क्षेत्र में किसान समस्या ऐसे मुद्दे हैं, जो भाजपा के तीसरी बार के विजय रथ को रोकेंगे। -हर प्रकाश अग्निहोत्री, कांग्रेस प्रदेश, महासचिव
दो केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर
कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में दो केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। पहली केंद्रीय मंत्री फतेहपुर संसदीय सीट से चुनाव जीत रहीं साध्वी निरंजन ज्योति हैं। वर्ष 2014 में भाजपा की टिकट पर उतरीं साध्वी को इस सीट पर 4,85,994 वोट मिले थे और वो 1,87,206 मत के अंतर से जीती थीं। 2019 में साध्वी को 5,66,040 मत मिले। जीत का अंतर 1,98,205 रहा। 2024 में भी भाजपा ने उन्हें मैदान में उतारा है।
इस सीट पर संसदीय इतिहास में अब तक व्यक्तिगत किसी ने तीसरी बार जीत हासिल नहीं की है। वहीं, जालौन लोकसभा क्षेत्र में 2014 में भाजपा की टिकट पर उतरे भानु प्रताप वर्मा ने 5,48,631 वोट पाए। वह 2,87,202 मतों के अंतर से जीते थे। 2019 में उन्हें 5,81,763 मत मिले, जबकि जीत का अंतर कम होकर 1,58,377 मत रहा। 2021 में उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। अब वह तीसरी बार मैदान में हैं। वह अलग-अलग समय पांच बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं। वह पहली बार 1996 में चुनाव मैदान में उतरे थे।
चार सांसद लगातार तीसरी बार चुनावी मैदान में ठोकेंगे ताल
फर्रुखाबाद संसदीय सीट से भाजपा के मुकेश राजपूत लगातार तीसरी बार मैदान में हैं। 2014 में उन्हें 4,06,195 वोट मिले थे। 2019 में 5,69,880 मत हासिल किए, जो पिछली बार से अधिक थे। अब तीसरी बार किस्मत का निर्णय जनता करेगी। 1952 से 1957 तक इस सीट पर कांग्रेस ने हैट्रिक लगाई है, जबकि व्यक्तिगत किसी ने अभी तक तीन बार जीत नहीं हासिल की। इसी तरह उन्नाव में वर्ष 2014 से साक्षी महाराज जीत रहे हैं।
यहां 1991 से 1999 के बीच राम लहर के दौरान भाजपा के देवी बक्स सिंह लगातार जीते थे। पार्टी के रूप में कांग्रेस ने जरूर 1952 से 1971 तक इस सीट पर सबसे अधिक छह बार कब्जा बरकरार रखा। महोबा-हमीरपुर सीट पर 2014 में भाजपा के पुष्पेंद्र सिंह चंदेल जीते थे।अब तीसरी बार वो मैदान में हैं। 2014 में 4,53,884 मत मिले थे तो 2019 में 5,75,122 वोट हासिल किए। इससे पहले 1952 से 1962 तक कांग्रेस के मन्नूलाल द्विवेदी व 1991 से 1998 के बीच दल के रूप में भाजपा ने यहां लगातार तीन बार जीत पाई, जिसमें विश्वनाथ शर्मा व गंगा चरण जीते थे। इसी तरह अकबरपुर क्षेत्र में 2014 से भाजपा के देवेंद्र सिंह भोले जीत रहे हैं। 2014 में उन्हें 4,81,584 मत मिले, जबकि 2019 में 5,81,282 वोट पाए।अब वह भाजपा के टिकट पर तीसरी बार मैदान में उतरे हैं। इससे पहले इस सीट की पहचान बिल्हौर लोकसभा क्षेत्र के रूप में थी। तब 1962 से 1971 तक कांग्रेस तीन बार जीती। भाजपा से यहां 1991 से 1998 के बीच राम लहर में श्याम बिहारी मिश्र लगातार चुनाव जीतते रहे।
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