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कानपुर में यहां पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं भगवान श्रीराम, ऐसे हुई मंदिर की स्थापना

Kanpur Ramlala Temple कानपुर के रावतपुर में स्थित रामलला मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। यह मंदिर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा है। हर साल यहां से राम नवमी पर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। यह परंपरा इस बार भी निभाई जाएगी।

By Abhishek VermaEdited By: Updated: Fri, 08 Apr 2022 02:53 PM (IST)
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रावतपुर गांव स्थित प्राचीन रामलला मंदिर तक शहर के किसी भी भाग से सीधे पहुंचा जा सकता है।
कानपुर, जागरण संवाददाता। अयोध्या की तरह शहर के रावतपुर में भी दशरथ नंदन श्रीरामलला के रूप में विराजमान हैं। रघुराई के अनन्य भक्त हनुमान पूरे परिवार के साथ इस पूरे क्षेत्र की रखवाली करते हैं। इस श्री रामलला मंदिर का इतिहास 150 साल से अधिक पुराना है। महाराजा रावत रणधीर सिंह का विवाह मध्य प्रदेश के रीवा में हुआ था। महारानी रौताइन बघेलिन जब विदा होकर आई तो अपने साथ सिंहासन पर विराजमान रामलला की मूर्ति भी लेकर आई। उन्होंने ने ही मंदिर की स्थापना कराई। यह मंदिर, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा है। वर्ष 1988 में श्रीराम नवमी के दिन भव्य शोभायात्रा निकाली गई थी, तब से यह परंपरा निरंतर चल रही है।

ऐसे पहुंचें मंदिर तक

रावतपुर गांव स्थित प्राचीन रामलला मंदिर तक शहर के किसी भी भाग से सीधे पहुंचा जा सकता है। दक्षिण क्षेत्र व मध्य के लालबंगला से आने वाले भक्त विजय नगर चौराहे होते हुए रावतपुर तक पहुंचे सकते हैं।

यह होगा शोभायात्रा का मार्ग

शोभायात्रा श्री रामलला मंदिर से शुरू होकर ट्रांसफार्मर तिराहा, आनंद नगर, बजरंग तिराहा, गोपाल टावर, एम ब्लाक चौराहा, श्री रामलला रोड होते हुए मंदिर में पहुंचेगी। इसमें पूरे शहर की शोभायात्राएं विभिन्न मार्गों से होते हुए सम्मलित होंगी।

माता सीता और लवकुश के बचपन का साक्षी रहा है बिठूर धाम

कानपुर का बिठूर धाम प्रभु श्रीराम, माता सीता और लवकुश के बचपन का साक्षी रहा है। यहां सीता रसोई, लवकुश आश्रम, सीता कुंड, स्वर्ण सीढ़ी के रूप में भगवान और उनके परिवार की कई प्राचीन स्मृतियां आज भी विद्यमान हैं। बिठूर धाम में ही प्रभु श्रीराम और माता सीता के पुत्र लव-कुश का बचपन बीता। लवकुश ने यहीं वीर हनुमान को बंधक बनाया। आज भी लवकुश आश्रम और सीता रसोई में उस समय के बर्तन मौजूद हैं। इसी स्थान पर माता सीता पाताल में समाई थीं, वो स्थान सीता कुंड के नाम से स्थापित है। इसके साथ ही वाल्मीकि आश्रम में स्वर्ग सीढ़ी जिसे सरग नशेनी भी कहते हैं, को देखने लोग पहुंचते हैं। इसमें 65 सीढिय़ां बनी हुई हैं।

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