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Kanpur Railway Station History: जानिए- पहली ट्रेन चलाने में क्यों लगे चार साल और क्यों क्रांतिकारियों ने उखाड़ फेंकी थी पटरियां

मेरठ में 10 मई 1857 को कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में हुई क्रांति की आग पूरे देश में फैल गई थी। कानपुर में 4 जून को अंग्रेज सेना के सिपाही टिक्का सिंह ने अपने साथियों के साथ नवाबगंज का खजाना लूटकर विद्रोह की शुरूआत की थी।

By ShaswatgEdited By: Updated: Thu, 10 Dec 2020 12:18 PM (IST)
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तीन मार्च 1859 को इलाहाबाद से कानपुर के बीच पहली ट्रेन चली।

कानपुर, जेएनएन। ईस्ट इंडिया कंपनी ने कानपुर में वर्ष 1855 में रेल पटरियों को बिछाने का काम शुरू किया था। इलाहाबाद वर्तमान में प्रयागराज  से कानपुर के बीच पटरियां बिछाने का काम लगभग अपने अंतिम चरण में था इसी बीच 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल मेरठ में बज उठा। कानपुर में स्वतंत्रता संग्राम की कमान नाना साहेब ने अपने हाथों में ले ली। ऐसी स्थिति में अंग्रेजी सेना कहीं रेल मार्ग के जरिये कानपुर न पहुंच जाए इसलिए क्रांतिकारियों ने रेल की पटरियां और पुल सब उखाड़ फेंके थे। यही कारण रहा कि पहली ट्रेन चलाने में लगभग चार साल लग गए। 

अंग्रेजी सेना के आने की आशंका पर किया ऐसा काम 

मेरठ में 10 मई 1857 को कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में हुई क्रांति की आग पूरे देश में फैल गई थी। कानपुर में 4 जून को अंग्रेज सेना के सिपाही टिक्का सिंह ने अपने साथियों के साथ नवाबगंज का खजाना लूटकर विद्रोह की शुरूआत की थी। इस विद्रोह की कमान नाना साहेब के हाथ में थी। 9 जून को नाना साहब ने अपने क्रांतिकारियों के साथ किले को घेर लिया और अंग्रेजों का रसद पानी बंद कर दिया। उधर, पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन तक रेल लाइन बिछ चुकी थी ऐसे में क्रांतिकारियों को इस बात का भी भय था कहीं अंग्रेजी सेना इलाहाबाद से रेल मार्ग के जरिये न आ जाए। इस पर क्रांतिकारियों ने कानपुर से इलाहाबाद को जाने वाली रेल की पटरियों को जगह-जगह से उखाड़ फेंका। कानपुर के साथ ही चंदारी, चकेरी, रूमा और सरसौल से आगे फतेहपुर तक क्रांतिकारियों ने जगह-जगह से पटरियों को उखाड़ फेंका था। इतिहासकार प्रोफेसर समर बहादुर सिंह बताते हैं कि क्रांतीकारियों की सेना ने इस रूट पर बनाए गए करीब आधा दर्जन पुलों को भी बारूद लगाकर उड़ा दिया गया था। इस क्रांति को भले ही कुछ महीनों में दबा दिया गया लेकिन चिंगारी डेढ़ साल तक सुलगती रही। यही कारण रहा कि मुंबई और कोलकाता के साथ कानपुर भी पांच प्रमुख केंद्रों में शामिल हो गया। 

40 लाख पौंड का हुआ था नुकसान 

इतिहासकार बताते हैं कि 1857 की क्रांति में देश भर में रेल पटरियों और पुलों को काफी नुकसान पहुंचा था। एक अनुमान के मुताबिक क्रांति की वजह से कानपुर समेत पूरे देश में ईस्ट इंडियां कंपनी को करीब 40 लाख पौंड का नुकसान हुआ था। इस क्रांति के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का अस्तित्व समाप्त हो गया और भारत पर अंग्रेजी शासन हो गया। जिसके बाद एक बार फिर तेजी से रेल लाइनों का विस्तार हुआ और तीन मार्च 1859 को इलाहाबाद से कानपुर के बीच पहली ट्रेन चली।

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