Kanpur : कांशीराम अस्पताल में बिना आइसीयू का ट्रामा, घायलों को रेफर करने का चलता रहता है ड्रामा
कानपुर के रामादेवी स्थित कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय एवं ट्रामा सेंटर की स्थापना के 11 वर्ष बाद भी मरीजों और घायलों को इलाज महैया नहीं हो पा रहा है। यहां दोपहर दो बजे के बाद इमरजेंसी में नहीं मिलते डाक्टर है। वहीं डिजिटल एक्सरे मशीन दो वर्ष से खराब है।
By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Tue, 18 Oct 2022 03:39 PM (IST)
कानपुर, [ ऋषि दीक्षित ]। राष्ट्रीय राजमार्ग पर होने वाले हादसों में घायल होने वालों को जल्द से जल्द इलाज मिले, इसके लिए जीटी रोड और लखनऊ-कानपुर-दिल्ली हाईवे के मध्य स्थित रामा देवी चौराहे पर कांशीराम अस्पताल एवं ट्रामा सेंटर की स्थापना की गई। हालांकि स्थापना के 11 साल बाद भी ट्रामा सेंटर की परिकल्पना मूर्त रूप नहीं ले सकी है।
कहने को लेवल टू ट्रामा सेंटर है लेकिन यहां सुविधाओं का टोटा है। बिना आइसीयू के इस ट्रामा सेंटर में मामूली घायलों को भी इलाज नहीं मिलता और रेफर करने का ड्रामा चलता रहता है। दरअसल, बरसात के बाद हवा ने ठंड के दरवाजे पर दस्तक दे दी है। वहीं, कोहरा पड़ने से हाईवे पर हादसों की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में दैनिक जागरण टीम ने शहर और आसपास के ट्रामा सेंटरों की पड़ताल शुरू की है।
आपरेशन थियेटर पर ताला, कर्मचारी बोला- इसे खोलने की जरूरत ही नहीं पड़ती
सोमवार दोपहर दो बजे का समय। कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय एवं ट्रामा सेंटर में इमरजेंसी की कमान फार्मासिस्ट और नर्सिंग स्टाफ संभाले हुए हैं। डाक्टर साहब नदारद हैं। सुबह से सात मरीज आ चुके हैं, जिसमें पांच सामान्य व दो गंभीर हैं। कैंसर पीड़ित को जेके कैंसर और दूसरे को आइसीयू की जरूर होने पर रेफर कर दिया गया।
वहीं, इमरजेंसी के आपरेशन थियेटर (ओटी) के दरवाजे पर ताला लटका हुआ है। कर्मचारी से पूछा गया तो उसने बताया कि इसे खोलने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। डाक्टर जल्दी-जल्दी काम निपटा के चले जाते हैं। डिजिटल एक्सरे मशीन दो साल से खराब है। सामान्य एक्सरे से काम चलता है। शाम चार बजे के बाद सीटी स्कैन जांच भी नहीं होती है।
आइसीयू के टूटे दरवाजे, जरूरी उपकरण नहीं
आइसीयू के दरवाजे के शीशे टूटे हुए हैं। सिर्फ आक्सीजन के पैनल लटक रहे हैं। एक भी जीवन रक्षक उपकरण नहीं है लेकिन मरीज भर्ती हैं। वेंटिलेटर भी नहीं हैं। सीएमएस डा. स्वदेश गुप्ता का कहना है कि यहां कोविड आइसीयू बना था। इसके लिए स्टाफ नहीं होने पर बंद कर दिया गया है।
एक माह में छोटे-बड़े सिर्फ 70 आपरेशन
20 बेड का ट्रामा सेंटर फुल रहने का दावा सीएमएस करते हैं। आंकड़ों के अनुसार, तीन आर्थोपेडिक सर्जन और तीन एनेस्थेटिक्स मिलकर एक माह में छोटे-बड़े कुल मिलाकर 70 आपरेशन ही करते हैं। ट्रामा सेंटर के हिसाब से यह आंकड़ा बहुत कम है।
इमरजेंसी, वार्ड और ओटी तक एजेंट सक्रिय
इमरजेंसी, वार्ड और ओटी तक में एजेंट सक्रिय हैं, जो मरीजों और तीमारदारों को बरगलाकर यहां से निजी अस्पतालों में ले जाते हैं। बाहर से दवाएं आदि लेने का दबाव बनाते हैं। स्थिति यह है कि मरीज और उनके तीमारदारों के साथ तो सख्ती बरती जाती है लेकिन एजेंटों के कहीं भी आने-जाने पर कोई रोक नहीं है। इस पर सीएमएस डा. स्वदेश गुप्ता भी कुछ भी बोलने से बचते हैं।
ट्रामा सेंटर में दो आर्थोपेडिक सर्जन, दो एनेस्थेटिक्स, एक सर्जन व एक दंत रोग विशेषज्ञ हैं। 13 नर्सिंग स्टाफ मिला है। संयुक्त अस्पताल होने से जच्चा-बच्चा का भी इलाज होता है। अस्पताल में 37 डाक्टरों के पद स्वीकृत हैं, जिसमें 27 हैं। फिजीशियन, नेत्र सर्जन व ईएनटी सर्जन नहीं हैं। न्यूरो सर्जन व प्लास्टिक सर्जन के पद नहीं हैं, इसीलिए मरीजों की जान बचाने के लिए उन्हें रेफर करना पड़ता है। - डा. स्वदेश गुप्ता, सीएमएस, कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय एवं ट्रामा सेंटर।
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