Interview : महाभारत में शांतनु से मिली पहचान, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन संग किया काम Kanpur News
कानपुर के ऋषभ शुक्ला ने अभिनय की दुनिया में अलग पहचान बना मुकाम हासिल किया है।
- शांतनु का किरदार कैसे मिला, रोल पाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी ?
वो दौर बेहद मुश्किल था। उस समय नए कलाकारों के लिए रास्ते नहीं होते थे। बस थिएटर ही सहारा था। वही करता था। अचानक एक दिन पता चला कि महाभारत के लिए ऑडीशन हो रहे हैं। वहां पहुंचा तो कृष्ण का कॉस्ट्यूम पहना दिया गया। सिलेक्ट भी हो गया। नया था इसलिए रोल को रिफ्यूज कर दिया। इसके बाद मुझे शांतनु का किरदार दिया गया। 2 अक्टूबर 1988 को पहला एपिसोड प्रसारित होते ही फेम मिल गया और तेजी से काम मिलने लगा।
- आपने एक्टिंग का कोई कोर्स नहीं किया, इंडस्ट्री में इतना लंबा सफर तय करने में मुश्किल नहीं हुई?
बेशक मैनें एक्टिंग का कोई कोर्स नहीं किया, लेकिन मेरी मां श्रीमती कुसुम शुक्ला खुद एक इंस्टीट्यूट थीं। वे खुद एक रंगकर्मी थीं और 60 के दशक में नाट्य प्रस्तुति देती थीं। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण ने भी उन्हें सम्मानित किया था। उन्होंने ही मुझे एक्टिंग की बारीकियां सिखाईं। प्रेरित किया कि सीखकर आगे बढ़ो। मैनें बस वही किया। उनके आशीर्वाद से कभी मुश्किलें नहीं आईं।
- आपने थिएटर भी किए हैं, एक्टिंग के लिए थिएटर कितना उपयोगी है ?
सही मायनों में कलाकार को थिएटर ही निखारता है। 1980 में कानपुर से मुंबई जाने के बाद मैनें बहुत थिएटर किए। पृथ्वी थिएटर से भी जुड़ा रहा। फिल्मों और टीवी पर काम मिलने के बाद धीरे-धीरे थिएटर कम कर दिया।
- आपने हैरी पॉटर के नेगेटिव किरदार वॉल्डेमार्ड को भी आवाज दी है, डबिंग करियर की शुरुआत कैसे हुई ?
मुंबई जाने के बाद अचानक से काम मिलना बेहद मुश्किल था। थिएटर करता था, कमाई का कोई साधन नहीं था। थिएटर ग्रुप से जुड़ीं माधवी मंजुला जी ने रास्ता दिखाया। पहली बार गुजराती फिल्म के लीड किरदार को आवाज दी। हौसला बढ़ा तो फिर विभिन्न भाषाओं में अनगिनत फिल्मों की डबिंग की। हैरीपॉटर के अलावा गार्जियन ऑफ द गैलैक्सी, एक्वामैन जैसी कई हॉलीवुड फिल्मों को भी आवाज दी है।
- अमृत और आज का अर्जुन जैसी बड़ी फिल्मों से शुरुआत के बाद, फिल्मी पर्दे पर कम दिखाई दिए क्यों ?
सब किस्मत की बात है। आज का अर्जुन के बाद प्रसिद्ध फिल्म निर्माता केसी बोकाडिय़ा ने लीड एक्टर के तौर पर तीन फिल्मों के लिए करार किया। कांट्रैक्ट की कुछ शर्तें थीं। इसके चलते अन्य फिल्में साइन नहीं कीं। धीरे-धीरे हालात बदले और फिल्में फ्लोर पर नहीं आ सकीं। एक फिल्म शुरू भी हुई तो उसमें जयाप्रदा की जगह रेखा और मेरी जगह रजनीकांत ने ले ली। हालांकि बाद में फिल्में लीड एक्टर के तौर पर कीं, लेकिन तब तक टीबी पर ज्यादा व्यस्त हो गया था।
- आपने स्नातक तक शिक्षा कानपुर में ली, जेहन में शहर की कितनी यादें हैं ?
कानपुर मेरा अपना शहर है। घाटमपुर तहसील में स्थित गुजैला मेरा पैतृक गांव है। वहां आज भी मेरी जमीन है। साल में एक बार कानपुर आता हूं। सारे नाते-रिश्तेदार यहां रहते हैं। खलासी लाइन में मेरा ननिहाल है। कानपुर आगमन पर मैं यही रुकता हूं। पिता एसएन शुक्ला चिकित्सक थे। जो शहर में कई अस्पतालों में तैनात रहे। जीआइसी से हाईस्कूल और हरसहाय इंटर कॉलेज से इंटमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद डीएवी से ही स्नातक किया था।
- फिल्मी दुनिया में करियर बनाने की चाह रखने वाली युवा प्रतिभाओं के लिए कोई सलाह ?
हार्ड वर्क बहुत जरूरी है। मेहनत से अपना काम करें। सबसे ज्यादा जरूरत होती है सीखने की। इसलिए सीखने की ललक रखें। खुद को पॉलिश करें। बेशक सुंदर दिखना जरूरी है, लेकिन किरदार के हिसाब से खुद को ढालना प्राथमिकता होती है। इसी का ख्याल रखें।