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World Book Day: पढ़े बिना शॉर्ट में जानना चाहते हैं कई किताबों की कहानी तो जरूर पढ़ें ये खबर

विश्व पुस्तक दिवस पर पढ़ने के शौकीन युवाओं ने अबतक पढ़ी किताब की कहानी का सारांश साझा किया।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Thu, 23 Apr 2020 08:56 PM (IST)
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World Book Day: पढ़े बिना शॉर्ट में जानना चाहते हैं कई किताबों की कहानी तो जरूर पढ़ें ये खबर

कानपुर, जागरण स्पेशल। किताबों की दुनिया में एक बार डूबे तो निकलने का मन ही नहीं करता। आत्मा तृप्त ही नहीं होती। एक धारणा बनती जा रही है कि किताबें अब कम पढ़ी जा रही हैं, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। लोगों का मिजाज बदला है, उनकी सोच बदली है, लेकिन पढ़ने वालों की कमी नहीं है। आइए विश्व पुस्तक दिवस पर उन लोगों से मुलाकात कराते हैं, जिन्होंने हाल ही में न केवल पुस्तकें पढ़ीं, बल्कि गहनता से समझा भी.. और अब उन्हें साझा कर रहे हैं।

तन से नहीं मन से प्रेम करें

पवन मिश्र कहते हैं कि चित्रलेखा भगवती चरण गुप्ता की अनुपम किताब है। यह पुस्तक पाप, पुण्य, प्रेम, प्रतिकार और शांति की शानदार व्याख्या करती है। पुस्तक की नायिका चित्रलेखा सुंदर, रूपवान नर्तकी है। पति को ही परमेश्वर मान आदर करती है, लेकिन पति की मृत्यु के बाद वो पाटलिपुत्र के सामंत बीजपुत्र के संपर्क में आती है। चित्रलेखा बीजपुत्र के साथ पाटलिपुत्र के राजा के यहां जाती है। जहां उसे एक योगी मिलता है वह उसके ज्ञान से प्रभावित हो उससे दीक्षा लेने का निश्चय करती है।

वो आग्रह करती है लेकिन योगी ब्रrाचारी होने की बात कह मना कर देता है। चित्रलेखा के प्रयास पर योगी मान जाता है और चित्रलेखा बीजपुत्र को छोड़ योगी के आश्रम चली जाती है। यहां वह शांति और परमात्मा की खोज में आती है, लेकिन योगी उससे प्रभावित हो कर उस पर ही आसक्त हो जाता है और मर्यादा का त्याग कर देता है। इससे दुखी चित्रलेखा बीजपुत्र के पास लौट जाती है। उधर, बीजपुत्र अब सामंत नहीं था। उसने अपना वैभव और धन दान कर दिया था। चित्रलेखा को देख वो भावुक होता है और दोनों सब कुछ छोड़ संसार में प्रेम खोजने निकल जाते हैं। 

बाल मनोविज्ञान की तहों तक पहुंचता है ‘बाली उमर’

डॉ. राके शुक्ल कहते हैं युवा उपन्यासकार भगवंत अनमोल का उपन्यास ‘बाली उमर’ पढ़ा। जिसमें औसत मध्यवर्गीय ग्रामीण परिवार के उन चार किशोर होते बालकों की कहानी है, जो साइबरनेट की दुनिया के पहले के हैं। जिनकी जिज्ञासाओं, प्रश्नों, कल्पनाओं और कार्यकलापों के माध्यम से हम बालमनोविज्ञान की अंतरतहों तक पहुंच पाते हैं।

इनकी शरारतों से शुरू यह कहानी धीरे धीरे मानवीय संवेदना और भावनात्मकता कहानी को कन्नड़ भाषी पात्र ‘पागल है’ को मुखिया के जाल से छुड़ा कर वापस उसके राज्य कर्नाटक भेजने के गंभीर विषय की ओर कलात्मकता से मोड़ देती है। ‘पागल है’ का चरित्र कहानी में बहुत मजबूती से उभरता है और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संघर्षरत रहने की प्रेरणा देने के साथ उन्हीं परिस्तिथियों में जीवन को जी लेने का अवसर न छोड़ने की सीख भी देता है। खिलंदड़ी अंदाज में कथा की बुनावट कर लेखक ने सामाजिक विरूपता को भी उजागर किया है।

सामंतवादी व्यवस्था से जूझते गांव की कहानी

प्रवक्ता प्रदीप कुमार वर्मा बताते हैं कि नीलोत्पल मृणाल का उपन्यास ‘औघड़’ हाल ही में पढ़ा। इसकी पूरी कहानी मलखानपुर और सिकंदरपुर गांव के इर्दगिर्द घूमती है, जिसका मुख्य पात्र बिरंची कुमार उर्फ बिरंचिया है। बिरंचिया इतिहास में मास्टर्स करने के बाद भी बेरोज़गार है, वह दिनभर आवारागर्दी और लफंगई करता है। गांवों में जैसा जातीय भेदभाव दिखता है, उसे लेखक ने बखूबी बयां किया है।

औघड़ सिर्फ एक गांव नहीं बल्कि हिंदुस्तान के हर गांव की कहानी बयां करता है। जहां गांव का व्यक्ति हर बार सामंत से नहीं बल्कि सामंतवादी मानसिकता से हारता है। लेखक ने बड़ी बेबाकी से शासन से लेकर प्रशासन और मीडिया के क्रियाकलापों की परतें उधेड़ी हैं। साफ कहा है कि लोकतंत्र के सारे स्तंभ ईमानदारी से काम करने लगें तो समाज में व्याप्त असमानताएं दूर हो पाएंगी।

सामाजिक विचारों से दूर हुआ चीन

प्रवक्ता डॉ. संजय चंदानी का कहना है कि हाल ही में प्रशांत त्रिपाठी की पुस्तक ‘समाज शास्त्र के अग्रदूत’ पढ़ी। इस पुस्तक में चीन के समाजशास्त्रियों व विचारों को प्रस्तुत किया गया है। यह उल्लेख है कि प्राचीन चीनी समाज दो विचारधाराओं में बंटा था। एक थी ताओवादी और दूसरी कन्फ्यूशियस विचारधारा। ये विचारधाराएं सार्वभौमिक कल्याण पर आधारित थीं। जिसमें युद्ध, भ्रष्टाचार, लोभ की कठोर निंदा की गई है लेकिन आज चीन अपने प्राचीन सामाजिक विचारों को त्यागकर शक्ति के चक्कर में पड़ा है। जहां से विश्व कल्याण की विचारधारा निकलती थी। वहां से कोविड-19 जैसी महामारी मिली है।

अव्यक्त और अलौकिक प्रेम का चित्रण

बिरहाना रोड के आशीष मिश्र बताते हैं कि डॉ. धर्मवीर भारती की ‘गुनाहों का देवता’ दोबारा पढ़ी। इसमें अव्यक्त और अलौकिक प्रेम का जो अद्भुत वर्णन यहां मिलता है वह कल्पना से परे है। उपन्यास की पृष्ठभूमि इलाहाबाद है तथा मुख्य किरदार चंदर और सुधा हैं। चंदर, सुधा के पिता का प्रिय छात्र होने के नाते बेखटक घर आता जाता है। दोनों को कब प्रेम हुआ? यह सुधा तो समझ ही नहीं सकी और प्रेम को लेकर चंदर का द्वंद्व बार-बार सामने आता है। सुधा की भक्ति ने चंदर को उसका देवता बना दिया था।

इसी कशमकश में सुधा की अन्यत्र शादी हो जाती है और उपन्यास का दु:खद अंत सुधा के देहांत से होता है। उपन्यास की लेखनशैली और इसके कुछ अंश भावुक कर देते हैं। ‘जब भावना और सौंदर्य के उपासक को बुद्धि और वास्तविकता की ठेस लगती है, तब वह सहसा कटुता और व्यंग्य से उबल उठता है।’ और ‘मनुष्य का एक स्वभाव होता है। जब वह दूसरे पर दया करता है तो वह चाहता है कि याचक विनम्र होकर उसे स्वीकार करे। अगर याचक दान लेने में कहीं भी स्वाभिमान दिखाता है तो आदमी अपनी दानवृत्ति और दयाभाव भूलकर नृशंसता से उसके स्वाभिमान को कुचलने में व्यस्त हो जाता है।

खुद के जीवन से सीखने का दर्शन है ‘सिद्धार्थ’

लेखिका मानसी शुक्ला ने बताया कि नोबल पुरस्कार विजेता लेखक हरमन हेसे की पुस्तक ‘सिद्धार्थ’ को मैंने ‘लॉकडाउन’ के दौरान पढ़ा। सिद्धार्थ महात्मा बुद्ध का भी प्रारंभिक नाम है। किंतु यह कहानी उन्हीं दौर के एक युवा की है, जिसका नाम सिद्धार्थ है। ब्राrाण परिवार में जन्मा यह युवक सच्चे ज्ञान की तलाश में घर छोड़ देता है। यात्र तपस्वी के रूप में उसकी जीवन यात्र बेहद उतार-चढ़ाव से भरी है। पहले वह तीन कौशल सीखता है, सोचने के लिए, प्रतीक्षा करें, और उपवास करें। इसके बाद वह बुद्ध से मिलता है, जहां वह सीखता है कि कुछ भी नहीं सीखा जा सकता है। इसके बाद उसकी यात्र दिलचस्प होती जाती है।

वह प्रेम की कला सीखता है और सांसारिक जीवन में पहुंचता है। इस दौरान वह लालच और भौतिकवाद के जाल में पड़ जाता है। किन्तु धीरे-धीरे जीवन के अपने अनुभवों से वह इससे उबर जाता है। अध्यात्मिक और सांसारिक दोनों तरह के अनुभवों से गुजरकर उसे आसक्ति और विरक्ति दोनों का अर्थ भली भांति समझ में आ जाता है। यह एक दार्शनिक पुस्तक है और उनका दर्शन बहुत गहन है।

व्यवस्था की कलई खोलती है राग दरबारी

बैंक कर्मी संध्या त्रिपाठी बताती हैं कि लॉकडाउन में कई बार की पढ़ी हुई श्रीलाल शुक्ल की ‘रागदरबारी’ हर बार की तरह फिर नई लगी। व्यंग्यात्मक शैली के इस उपन्यास का हर किरदार अपने में रोचक है और समाज से लेकर व्यवस्था की पोल खोलता है। कहानी की शुरूआत में रंगनाथ शहर से अपने मामा वैद जी के यहां गांव शिवपालगंज जाता है। बकौल लेखक जो शिवपालगंज में नहीं है वह कहीं नहीं है। इसी के माध्यम से पूरा भारत दर्शाया गया है।

यहां के लोग खुद को गंजहा कहते हैं। यहां एक छंगामल विद्यालय इंटर कॉलेज नाम का एक स्कूल भी है जहां के शिक्षक विज्ञान पढ़ाने की बजाय अपनी चक्की के बारे में बताने को •यादा उत्सुक हैं, जहां के बच्चे पढ़ाई की जगह अन्य कारगुज़ारियों में बहुत पारंगत हैं। प्रिंसिपल साहब शुद्ध अवधी में बात करते हैं और वैद जी के खास व्यक्ति हैं। इसके बाद इस कहानी में गांव में प्रधानी के चुनाव से लेकर सोसायटी और स्कूल के चुनाव तक छल प्रपंच, सरकारी अफसरों का रवैया और ग्रामीण मनोभावों का ऐसा चित्रण किया गया है, वह आनंदित कर देता है।

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