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रामपुर में कौन संभालेगा नवाब खानदान और आजम परिवार की विरासत? जान‍िए क्‍या कह रहे शहर के लोग

रामपुर में करीब पौने दो सौ साल नवाबों की रियासत रही। 1947 में देश के आजाद होने के दो साल बाद रामपुर आजाद हुआ। इसके बाद नवाब खानदान सियासत में आ गया। 1952 में पहला लोकसभा चुनाव खुद लड़ने के बजाए नवाब खानदान ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को लड़ाया। वह देश के पहले शिक्षामंत्री बने। इसके बाद नवाब रजा अली के दामाद राजा अहमद मेंहदी दो बार चुनाव जीते।

By Jagran News Edited By: Vinay Saxena Updated: Wed, 10 Apr 2024 12:59 PM (IST)
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रामपुर में नवाब खानदान और आजम परिवार के बिना हो रहा पहला चुनाव। आजम खान- फाइल फोटो

संजय रुस्तगी, रामपुर। 'जानी यह रामपुरी है, लग जाए तो खून निकल आता है'। इस फिल्मी डायलॉग के पीछे रामपुर का चाकू है। धारदार राजनीति में भी रामपुर का अध्याय रहा है। दुनिया का अनूठा किताबी खजाना (रजा लाइब्रेरी) और नक्षत्रशाला भी रामपुर के गौरव हैं। लोकसभा चुनाव में इस रामपुर का सरताज कौन होगा? कौन संभालेगा नवाब खानदान और आजम परिवार की विरासत? यह सवाल यहां आम हैं।

टांडा के पेट्रोल पंप स्वामी रईस अहमद साफ कहते हैं सपा सरकार में जिले का विकास हुआ, भाजपा ने भी इसे आगे बढ़ाया। धर्म के नाम पर मतदाताओं के बंटने की बात आने पर मौ. फैजान बोले, स्वार-टांडा से भाजपा के समर्थन से अपना दल से विधायक शफीक अहमद अंसारी हैं। उनका लाभ भी भाजपा प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी को मिलेगा।

'रामपुर की राजनीत‍ि की द‍िशा तय करेगा ये चुनाव'  

नवाब खानदान और आजम परिवार की विरासत के बारे में मनीष, सरफराज और सद्दाम का कहना है कि यह चुनाव सांसद ही नहीं बनाएगा, रामपुर की राजनीति की दिशा भी तय करेगा। कारण, छह प्रत्याशियों में भाजपा प्रत्याशी घनश्याम उपचुनाव में पहली बार सांसद बने। सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी राजनीति में हाल ही में आए हैं। बसपा प्रत्याशी जीशान खां का भी खास राजनीतिक इतिहास नहीं है।

आगे बढ़े, तो छितरिया मोड पर साप्ताहिक बाजार में गोलगप्पे बेचने वाले अहमदाबाद गांव के राकेश गांव में कोई प्रत्याशी या जनप्रतिनिधि के न आने से खफा दिखे। उन्हीं की शहर विधानसभा सीट से आजम खां 10 बार विधायक रहे हैं। हालांकि मतदान के फर्ज को राकेश भलीभांति समझते हैं। बोले, हर बार वोट देते हैं, इस बार भी देंगे। केंद्रीय योजनाओं पर बोले, मैंने कोई लाभ नहीं लिया, लेकिन जरूरतमंदों को लाभ मिल रहा है।

लालपुर कलां से रामपुर शहर की ओर चले, तो करीब पांच किलोमीटर का खेतों में बने फ्लाईओवर को लेकर जिज्ञासा जागी। गाड़ी रोककर राहगीर मुजाहिद से पूछा। बेबाकी से बोले, यह आजम खां की जौहर यूनिवर्सिटी को जाने के लिए सपा सरकार में बना था। इसकी एसआईटी जांच भी हुई है। आमतौर पर चुनावी सरगर्मी से दूर दिख रहे शहर के चाकू बाजार में रामपुरी चाकू बेचने वाले शहजाद उत्साहित हैं। बोले, चार पीढ़ी से चाकू का कारोबार कर रहे हैं। पहली तीन पीढ़ियां चाकू बनाती भी थीं, मैं सिर्फ बेच रहा हूं। बोले,बंदी के कगार पर पहुंच चुके चाकू कारोबार को योगी सरकार से जीवनदान मिला है। वैसे, लाइसेंस बनवाने में दिक्कत जैसी कई दुश्वारियां अब भी हैं।

नवाब खानदान और आजम परिवार के बिना पहला चुनाव

रामपुर में करीब पौने दो सौ साल नवाबों की रियासत रही। 1947 में देश के आजाद होने के दो साल बाद रामपुर आजाद हुआ। इसके बाद नवाब खानदान सियासत में आ गया। 1952 में पहला लोकसभा चुनाव खुद लड़ने के बजाए नवाब खानदान ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को लड़ाया। वह देश के पहले शिक्षामंत्री बने। इसके बाद नवाब रजा अली खान के दामाद राजा अहमद मेंहदी दो बार चुनाव जीते। फिर रजा अली खां के बेटे नवाब जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां ने खुद ताल ठोंक दी। वह भी लगातार दो बार सांसद बने।

1977 में जनता पार्टी के राजेंद्र कुमार शर्मा के बाद जुल्फिकार अली खान उर्फ मिक्की मियां लगातार तीन बार (1980, 1984 और 1989) में निर्वाचित हुए। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी बेगम नूरबानो ने राजनीतिक विरासत संभाली। वह 1991 का चुनाव राजेंद्र कुमार शर्मा से पराजित होने के बाद 1996 में जीतीं। 1998 में भाजपा से मुख्तार अव्वास नकवी सांसद बने। वह देश में भाजपा के पहले मुस्लिम सांसद रहे। इसके बाद 1999 में फिर बेगम नूर बानो लोकसभा गईं। इस बीच 2004 और 2009 में फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा भी सांसद रहीं। नूरबानों 2014 तक लगातार लड़ीं, लेकिन जीत नहीं सकीं।

2019 के चुनाव में विधानसभा की राजनीति करते आ रहे आजम खां ने भाग्य आजमाया। वह जीत गए। वह दो वर्ष की सांसद रहे। विधायक बनने के बाद उनके इस्तीफे से रिक्त इस सीट पर भाजपा के घनश्याम सिंह लोधी उपचुनाव में सांसद बने। मौजूदा चुनाव में आजम खां बेटे अब्दुल्ला के दो जन्म प्रमाण पत्र मामले में बेटे और पत्नी तजीन फात्मा सहित सात साल की सजा काट रहे हैं। नवाब खानदान सीट सपा के पास चली जाने से आम चुनाव में सीधी तौर पर सक्रिय नहीं है।

आजम बनाम अखिलेश

सपा नेता पार्टी मुखिया अखिलेश यादव और महासचिव आजम के बीच बंट गए हैं। 22 मार्च में सीतापुर जेल में मिलने गए अखिलेश यादव से आजम ने उनसे खुद ल़ड़ने को कहा। ऐसा नहीं होने पर आजम खेमे ने 26 मार्च को चुनाव बहिष्कार की घोषणा कर दी। बहिष्कार की घोषणा करने वालों मे पार्टी के जिलाध्यक्ष और विधायक भी शामिल रहे।

अन्य पार्टियों को वॉकओवर मिलने की आशंका पर सपा के शीर्ष नेतृत्व ने आनन-फानन में पुराने संसद भवन की मस्जिद के इमाम मुहिबुल्ला नदवी को प्रत्याशी बनाया। नामांकन के अंतिम दिन 27 मार्च को विशेष विमान से उनका सिंबल भेजा गया। इस बीच आजम खेमे से आसिम राजा ने नामांकन करा दिया। हालांकि, उनका नामांकन पत्र खारिज हो चुका है, लेकिन दोनों गुट एक प्लेटफार्म पर नहीं आ सके हैं।

जातीय समीकरण

17.31 मतदाताओं वाली लोकसभा सीट पर करीब 52 प्रतिशत मुस्लिम हैं। इनके भी जातियों में बंटने के आसार हैं। इसके अलावा करीब 10 प्रतिशत लोधी हैं। सक्सेना, वैश्य, अनुसूचित जाति के भी काफी मतदाता हैं।

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