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जयंती पर विशेष: वेदना की शाश्वत कवयित्री 'महादेवी वर्मा', पढ़िए- हिंदी साहित्य के इस ध्रुवतारे का सफर

Intresting Facts About Mahadevi Verma यूपी के फर्रुखाबाद में महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था। अपने जीवनकाल में इन्होंने कई रचनाएं कीं। नारी उत्थान और कल्याण के लिए वे सदा तत्पर रहती थीं। छायावादी युगीन यह सूर्य सन् 1987 में अस्त हो गया था।

By Shaswat GuptaEdited By: Updated: Fri, 26 Mar 2021 02:03 PM (IST)
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भारतीय संवत 1964 में फाल्गुन पूर्णिमा (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 26 मार्च 1907) को महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था।
कानपुर, [जागरण स्पेशल।] Intresting Facts About Mahadevi Verma: 'बहुमुखी प्रतिभा की धनी साहित्य के प्रति प्यार है, जीवन जिया साहित्य हित इस पर सब बलिहार है,

सामाजिक चेतना लिए जीवन यथार्थ लिख डाला है, साहित्य सृजन है दिव्य दीप जड़ता, तम हरने वाला है।'

हिंदी साहित्य की पुरोधा, प्रख्यात कवयित्री, छायावाद की दीपशिखा और समाज दिग्दर्शिका महादेवी वर्मा के जीवन पर यह पंक्तियां एकदम सही सिद्ध होती हैं। जिनके लिखे शब्द हमें सीख देते हैं साथ ही जिनके लिखे शब्द हमें करुणा और त्याग जैसे भावों से परिचित कराते हैं। आज 114वीं जयंती पर हम उनको नमन करते हैं। खबरों की इस कड़ी में हम आपके लिए लेकर आए हैं छायावादी युग की चर्चित और सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें। आइए जानते हैं:

फर्रुखाबाद में जन्मीं और बनीं महादेवी: भारतीय संवत 1964 में फाल्गुन पूर्णिमा (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 26 मार्च 1907) की सुबह बाबू गोविंद प्रसाद वर्मा के घर होली का उल्लास तब दोगुना हो गया जब पत्नी हेमरानी देवी (शिवरानी) ने पुत्री को जन्म दिया। सात पीढ़ियों के बाद परिवार में बेटी ने जब जन्म लिया तो फूले नहीं समा रहे बाबा बांके बिहारी ने कहा यह कोई साधारण बच्ची नहीं बल्कि यह देवी हैं। इसके बाद देवीस्वरूप उस बच्ची का नाम महादेवी रख दिया गया।

प्रतिभा के आड़े आया विवाह: बाल्यावस्था में ही मां और पिता बेटी की प्रतिभा को समझ चुके थे। विद्यालय के साथ घर पर पंडित, मौलवी, संगीत और चित्रकला के शिक्षक ने महादेवी के व्यक्तित्व को तराशना शुरू कर दिया। मात्र नौ वर्ष की आयु में विवाह ने उनकी शिक्षा को बाधित किया। विवाह का मतलब समझने को बालमन तैयार नहीं हुआ। तो वह वापस मायके आ गईं और क्राइस्ट चर्च कॉलेज प्रयाग (प्रयागराज) में शिक्षा प्रारंभ की। वर्ष 1929 में बीए पास करते-करते वह स्थापित कवयित्री बन चुकी थीं।

...तो इस प्रकार से जागा मन में समाज सुधारक का भाव: महादेवी वर्मा ने प्रयाग विश्वविद्यालय से 1932 में संस्कृत से एमए किया था। यह वह समय था जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देश में स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था। वहीं, इस दौरान उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप भी मिली थी। बताते हैं कि स्कॉलरशिप को लेकर वे असमंजस में थीं, जिसके बारे में उन्होंने महात्मा गांधी सलाह-मशवरा करना ठीक समझा। यही नहीं गांधी जी ने ही अपने देश के लिए सामाजिक कार्य करने और बहनों के शिक्षण के प्रति उन्हें प्रेरित किया था। वरिष्ठ साहित्य प्रेमी बताते हैं कि वर्ष 1972 में महादेवी बद्री विशाल डिग्री कॉलेज फर्रुखाबाद के दीक्षा समारोह में शामिल होने आई थीं। छात्राओं-महिलाओं की कविताएं सुन कर बोलीं, त्रिवेणी मात्र प्रयाग में नहीं, यहां भी है। यहां भी सरस्वती की धारा बह रही है।

महिलाओं की मुक्ति का फूंका बिगुल: स्कूल के दौरान ही महादेवी वर्मा ने 'Sketches from My Past' नाम से कहानियां लिखीं, जिसमें उन सहेलियों और उनकी तकलीफों का जिक्र था, जिनसे वे पढ़ाई के दौरान मिलीं। उन्होंने 1942 में निबंध संकलन 'श्रृंखला की कडिय़ां' के जरिए रूढि़वाद पर चोट करते हुए महिलाओं की मुक्ति और विकास का बिगुल फूंका। महिलाओं की शिक्षा के लिए उनका योगदान उस समय में क्रांतिकारी कदम जैसा ही था। महादेवी वर्मा ने अपनी रचना 'नीहार' मैट्रिक पास होने से पहले ही लिख दी थी। वर्ष 1933 में उन्होंने मीरा जयंती की शुरुआत की।

निराला जी ने महादेवी वर्मा के लिए कही थे बात: हिंदी की महान लेखिका महादेवी वर्मा के बारे में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने बड़े ही रोचक अंदाज में कहा था- शब्दों की कुशल चितेरी और भावों को भाषा की सहेली बनाने वाली एक मात्र सर्वश्रेष्ठ सूत्रधार महादेवी वर्मा साहित्य की वह उपलब्धि हैं जो युगों-युगों में केवल एक ही होती हैं; जैसे स्वाति की एक बूंद से सहस्त्रों वर्षों में बनने वाला मोती'।

इन रचनाओं ने बनाया हिंदी साहित्य की महादेवी: हिंदी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ में सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ महादेवी भी प्रमुखता के साथ शामिल की जाती हैं। उनकी बाल कविताओं के दो संकलन प्रकाशित हुए, जिनमें 'ठाकुर जी भोले हैं' और 'आज खरीदेंगे हम ज्वाला' शामिल हैं। महादेवी के काव्य संग्रहों में शुमार 'नीहार', 'रश्मि', 'नीरजा', 'सांध्य गीत', 'दीपशिखा', 'यामा' और 'सप्तपर्णा' शामिल हैं, जिसका रसा स्वादन आज भी पाठक करते हैं। कवयित्री होने के साथ-साथ गद्यकार के रूप में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी। गद्य में रूप उन्होंने 'अतीत के चलचित्र', 'स्मृति की रेखाएं', 'पथ के साथी' और 'मेरा परिवार' लाजवाब कृतियां हिंदी साहित्य जगत को दीं। इसी के साथ 'गिल्लू' उनका कहानी संग्रह है, जो पाठकों के दिलों में अमिट छाप बना चुका है।

कुछ और खास बातें: महादेवी वर्मा स्वयं अपने गीतों के बारे में कहती थीं कि उनके गीत किसी पक्षी के समान हैं। जिस प्रकार एक पंक्षी आकाश में उड़ान भरता है लेकिन फिर भी धरती है जुड़ा रहता है उसी प्रकार कवि भी कल्पना के आकाश में उड़ता है लेकिन वह सदैव धरती से जुड़ा रहता है। वह आसमान में जाकर भी धरती पर लौट कर आता है उसी प्रकार कवि भी अपने जीवन के प्रति सचेत रहता है। इस बात को कहने में किसी भह प्रकार की अतिश्योक्ति नहीं होगी कि महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के आसमान का वो छायावादी युगीन ध्रुवतारा हैं जिनसे न जाने कितने ही नए लेखकों को रोशनी मिली। महादेवी के काव्य में प्रेम की वेदना के स्वर भी परिलक्षित होते हैं इसलिए उन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। ये वेदना के स्वर उनकी रचनाओं में महात्मा बुद्ध के उपदेशों के कारण आता था। क्योंकि महादेवी महात्मा बुद्ध के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थीं। बुद्ध का सूत्र - 'जीवन दुख का मूल है।' सदा ही महादेवी की रचनाओं में प्रतिबिंबित होता था। यही कारण रहा कि महादेवी ने एक आम विवाहिता का जीवन कभी नहीं जिया।

1916 में उनका विवाह बरेली के पास नवाबगंज कस्बे के निवासी वरुण नारायण वर्मा से हुआ था। महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी, इसलिए पति से उनका कोई वैमनस्य नहीं था। वह एक संन्यासिनी का जीवन गुजारती थीं। उन्होंने पूरी जिंदगी सफेद कपड़े पहने और जीवन पर्यंत कभी श्रृंगार नहीं किया। 1966 में पति की मौत के बाद वह स्थाई रूप से इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में रहने लगीं। 11 सितंबर, 1987 को प्रयाग में उनका निधन हुआ।

क्या कहता है फर्रुखाबाद महीयसी के बारे में:

  • फर्रुखाबाद में जिलाधिकारी के रूप में कार्यभार ग्रहण किया तो छात्र जीवन की महादेवी वर्मा की रचनाएं मन के पटल पर उभरीं। राजकीय बालिका इंटर कालेज का नाम उनके नाम से करवाने का प्रस्ताव शासन को प्रेषित किया है, जो शीघ्र ही स्वीकृत होगा। इस बालिका इंटर कॉलेज को उत्कृष्ट सुविधाएं देकर महादेवी वर्मा को श्रद्धांजलि देने का प्रयास कर रहा हूं। - मानवेंद्र सिंह, जिलाधिकारी, फर्रुखाबाद
  • स्वयं परमेश्वर उनका प्रेमास्पद बना और उससे शांति नहीं मांगी, वेदना का वरदान मांगते हुए कविता लिखी 'पर शेष नहीं होगी यह, मेरे प्राणों की क्रीड़ा, तुझको पीड़ा में ढूंढा, तुझमें ढूंढूंगी पीड़ा।' महादेवी इन पंक्तियों में पीड़ा से मुक्ति नहीं, पीड़ा में मुक्ति चाहती हैं। वह हिंदी गद्य की मणि मुद्रिका हैं तो हिंदी गीत का पूजा प्रदीप...अक्षय, अव्यय, अद्वय।' - डॉ. शिवओम अंबर, साहित्यभूषण
  • मुझे याद है जब बद्री विशाल कॉलेज के एक कार्यक्रम में महादेवी वर्मा आई थीं। तब उन्होंने भोजन मेरे यहां किया। उन्होंने बताया कि बालिकाओं की शिक्षा कितनी कठिन है। वह बालिकाओं की उच्च शिक्षा की प्रबल पक्षधर थीं। उनकी रचनाओं में उनका स्त्री संबंधी दृष्टिकोण सबसे ज्यादा प्रकट होता है। यह फर्रुखाबाद का सौभाग्य है कि वह यहां पर जन्मी थीं। - डॉ. रजनी सरीन, संस्था प्रमुख, साहित्यिक संस्था अभिव्यंजना
  • महीयसी महादेवी वर्मा सर्वकालिक प्रासंगिक हैं। अभिव्यंजना और यहां के साहित्य प्रेमियों के सहयोग से शीघ्र ही उनके नाम से एक शोध केंद्र खुलवाने का प्रयास जारी है। इस वर्ष से जिले की इंटरमीडिएट और हाईस्कूल की तीन बालिकाओं को हिंदी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर सम्मानित करने का भी निश्चय किया है।' - भूपेंद्र प्रताप सिंह, समन्वयक, अभिव्यंजना

महादेवी वर्मा की उपलब्धियां:

  • 1932 में एमए पास करने के साथ ही उन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्रधानाचार्य का दायित्व मिल गया।
  • 1952 में उन्हें विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया।
  • 1955 में दिल्ली में साहित्य अकादमी का संस्थापक सदस्य चुना गया।
  • 1960 में प्रयाग महिला विद्यापीठ का कुलपति चुना गया।
  • 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि दी गई।

इन पुरस्कारों से की गईं पुरस्कृत:

  • 1934 में नीरजा के लिए सक्सेरिया पुरस्कार
  • 1942 में स्मृति की रेखाओं के लिए द्विवेदी पदक
  • 1943 में मंगला प्रसाद पुरस्कार और उत्तर प्रदेश के भारत भारती पुरस्कार से सम्मान
  • 1957 में पद्मभूषण
  • 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप
  • 27 अप्रैल 1982 में यामा नामक काव्य संकलन के लिए देश का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार
  • 1988 में पद्म विभूषण

[महादेवी वर्मा ने एक निर्भीक, स्वाभिमानी भारतीय नारी का जीवन जिया। राष्ट्रभाषा हिन्दी के संदर्भ में उनका कथन है, 'हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुड़ी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।']

 

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