Coronavirus Kanpur News: संसाधनों की कमी व संवेदनहीनता से हार रहीं जिंदगियां
कानपुर में जिला प्रशासन अस्पतालों में बेड होने का दावा कर रहा है और मरीज भटकने को मजबूर हैं। बीते दस दिन में ही अस्ततालों में जगह और संसाधान न मिलने से कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
कानपुर, जेएनएन। खबर में दिए गए दो प्रकरण ये बताने के लिए हैं कि अस्पताल की चौखट तक पहुंचने के बाद भी लोगों को किस तरह जान गंवानी पड़ी। दोनों ही मामलों में अगर उन्हें भर्ती कर लिया गया होता तो शायद वह आज भी अपने परिवार के साथ होते। कहीं ऑक्सीजन वाला बेड नहीं था तो कहीं पहले रुपये जमा कराने का दबाव था। ये सभी अभी चार-पांच दिन के अंदर के मामले हैं, जिन्हें भटकने के बाद भी सिर्फ मौत मिली। वहीं प्रशासन कह रहा है कि सब कुछ ठीक है। ऑक्सीजन भी पूरी है और बेड की भी कमी नहीं है।
Case-1 : गल्ला मंडी के पास रहने वाले राजकुमार को बुखार आया। परिजन अस्पताल ले गए, लेकिन 50 हजार रुपये पहले जमा कराने की मांग की गई। इतने रुपये न होने से उन्हें लौटा दिया गया। स्वजन की एक अस्पताल में फिर बात हुई, लेकिन रास्ते में ही उनका निधन हो गया।
Case-2 रावतपुर निवासी राजेंद्र निजी संस्थान में नौकरी करते थे। तबीयत खराब हुई तो जांच में कोरोना पॉजिटिव आ गए। आर्यनगर स्थित नर्सिंग होम में लेकर गए तो बताया गया कि ऑक्सीजन वाला बेड नहीं है। घर पर पहुंचने के बाद उनकी मौत हो गई।
अस्पतालों की चौखट पर हुई मौतें
अस्पतालों में ऑक्सीजन वाले बेड न होने की बात कह लौटाया गया। किसी ने अस्पताल से मायूस होकर लौटते समय जान गंवा दी तो किसी ने एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के बीच भटकते हुए। किसी की जान एंबुलेंस में चली गई तो किसी ने अस्पताल की चौखट पर भर्ती किए जाने के इंतजार में दम तोड़ दिया। रास्ते में दम तोडऩे वाले राजकुमार की रिश्तेदार सरोज पासवान के मुताबिक अगर पहली बार ही जब उनके बहनोई को भर्ती कर लिया गया होता तो उनकी जान न जाती। ऐसी ही नाराजगी राजेंद्र की पत्नी की है। उनके मुताबिक अस्पताल के दरवाजे से उनको लौटा दिया गया। अब कितनी भी ऑक्सीजन की बातें कर ली जाएं, उनका तो घर उजड़ गया।