National Sports Day 2022: खेल के मैदान से लेकर जिंदगी के मैदान तक कभी नहीं मानी हार
किसान परिवार से आने वाले अविनाश का यह पर्सनल बेस्ट तो है ही साथ-साथ यह राष्ट्रीय रिकार्ड भी है। आर्मी में सर्विस के दौरान सियाचिन और रेगिस्तानी इलाकों में भी तैनात रह चुके नायब सूबेदार अविनाश साबले इस जटिलतम दौड़ में अव्वल बने।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sun, 28 Aug 2022 07:00 AM (IST)
राष्ट्रमंडल खेल-2022 में भारत की झोली में 61 पदक आए। यहां जीतने वाले तमाम खिलाड़ियों ने अभावों और कोरोना की पाबंदियों के बावजूद खेल के मैदान से लेकर जिंदगी के मैदान तक कभी हार नहीं मानी। राष्ट्रीय खेल दिवस अर्थात हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जन्मतिथि (29 अगस्त) पर ऐसे ही खिलाड़ियों की जिंदगी से रूबरू कराता आरती तिवारी का आलेख...
कोशिशें कभी खाली नहीं जातीं। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं राष्ट्रमंडल खेल-2022 में पदक लाने वाले हमारे खिलाड़ी। जिन्होंने अभावों के बीच जीवन गुजारा, जी-तोड़ मेहनत की और अपनी कोशिशों से राष्ट्रध्वज को बुलंदियों पर पहुंचाया। संघर्ष और प्रयासों की तमाम कहानियां निकलकर सामने आईं बर्मिंघम में हुए राष्ट्रमंडल खेल के मैदान से। यहां अगर लगभग हर तरफ ‘जन-गण-मन’ बज रहा था तो यह न सिर्फ हमारे खिलाड़ियों की जीवटता का प्रमाण है, बल्कि काफी श्रेय छह साल पहले भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेल नीति में हुए महत्वपूर्ण बदलावों को भी जाता है।
नहीं टूटा हौसला
टोक्यो ओलिंपिक के बाद मणिपुर की मीराबाई चानू की वह तस्वीर काफी वायरल हुई थी, जिसमें रजत पदक जीतकर घर पहुंचीं मीराबाई चानू जमीन पर बैठकर खाना खा रहीं थीं। इस तस्वीर ने बताया कि असली संघर्ष किस स्तर से होता है। राष्ट्रमंडल खेल 2022 में अर्जित स्वर्णपदक ने फिर सिद्ध किया कि घंटों पैदल चलकर प्रैक्टिस के लिए जाने वाली मीराबाई आज भी भारत की सबसे सफल एथलीट हैं। वहीं राष्ट्रमंडल खेल 2022 में रजत पदक जीतने वाली बिंदियारानी देवी को अपनी कम लंबाई के लिए हमेशा बातें सुनने को मिलीं, लेकिन 55 किलोग्राम भारवर्ग भारोत्तोलन में प्राप्त रजत पदक आज उन्हें अलग ऊंचाई दे चुका है। गौरतलब है कि सालभर पहले तक उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वह ट्रेनिंग पूरी कर सकें। वह दोस्तों-रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर यहां तक पहुंचीं।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
ऐसी ही कहानी है राष्ट्रमंडल खेल 2022 में रजत पदक जीतने वाले संकेत महादेव सरगर की। महाराष्ट्र के संकेत सरगर के पिता चाय-नाश्ते की दुकान चलाते हैं। आर्थिक तंगी के बावजूद संकेत ने सपनों का पीछा करना नहीं छोड़ा। खेल के दौरान भी संकेत की कोहनी में चोट लग गई, तकलीफ के बावजूद वह देश का नाम रोशन करके ही आए। किस्से कई हैं। एक ट्रक ड्राइवर के बेटे गुरुराज पुजारा पहलवान बनना चाहते थे, लेकिन उनके टीचर ने वेटलिफ्टिंग की सलाह दी और वहीं से उनकी किस्मत बदल गई। उन्होंने 61 किलोग्राम भारवर्ग में कांस्य पदक प्राप्त किया। इसी क्रम में 71 किलोग्राम भारवर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने वाली भारोत्तोलक हरजिंदर कौर का अब तक सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा। कर्ज लेकर परिवार ने बेटी को आगे बढ़ाया तो खुद हरजिंदर कौर ने घर में रखी मशीन से चारा काटने का काम किया और इसे अभ्यास का हिस्सा माना। 2020 में कोरोना लाकडाउन के दौरान हरजिंदर कौर ने कोच परमजीत शर्मा के पटियाला स्थित घर में रहकर वहां अभ्यास किया। आज हरजिंदर की कोशिशों और परिवार के सहयोग का नतीजा है कि एक कमरे के घर में रहने वाला उनका परिवार अब अभावों से दूर हो जाएगा।
मां ने बुने ख्वाबराष्ट्रमंडल खेलों में 73 किलोग्राम भारवर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारोत्तोलक अचिंता शिउली का घर पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के देयुलपुर में है। उनकी मां ने बेटे की पिछली ट्राफियां और पदकों को अपनी अधफटी साड़ी में लपेटकर घर में मौजूद एकमात्र पलंग के नीचे रखा है। राष्ट्रमंडल खेल में देश को स्वर्ण पदक दिलाने वाले अचिंता के घर तंगी इतनी थी कि पिता के अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे, मगर उनकी मां ने कभी हार नहीं मानी। कढ़ाई का काम किया और जी-तोड़ मेहनत से बेटे के सपने को बुन दिया।
अविश्वसनीय रही यह जीतये नाम बानगी हैं, मगर उदाहरण कई हैं, जो बताते हैं कि सफलता का स्वाद चखने से पहले खिलाड़ियों ने किस स्तर तक पसीना बहाया है। राष्ट्रमंडल खेल के इतिहास में भारतीय लान बाउल्स की महिला टीम पहली बार फाइनल में पहुंची और स्वर्ण पदक अपने नाम किया। खास बात यह रही कि इन खिलाड़ियों ने बिना कोच के ही प्रैक्टिस की। वहीं, बर्मिंघम में भी टीम टूर्नामेंट से चार दिन पहले पहुंची। चार दिन में ही टीम ने जमकर अभ्यास किया। जिसका फायदा उन्हें व देश को मिला। वहीं 3,000 मीटर स्टीपलचेज में महाराष्ट्र के अविनाश साबले ने पहली बार भारत को इस खेल में जीत दिलाई।
बाधाएं आती हैं, आएं...ऐसा ही कारनामा किया एल्डोस पाल ने। राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए ट्रिपल जंप में पहला स्वर्ण पदक जीतने से पहले ही एल्डोस कई बाधाओं को पार कर चुके थे। दिहाड़ी मजदूर पिता के बेटे एल्डोस ने स्कूल के बाद छत बनाने व रबर टैपिंग जैसे काम भी किए। पोल वाल्टर के रूप में करियर की शुरुआत करने वाले एल्डोस ने लंबी कूद और ट्रिपल जंप की तरफ रुख किया, तब उनकी प्रतिभा को पूर्व राष्ट्रीय जंपिंग कोच टी.पी. ओसेफ ने सही दिशा दी। खेल के दौरान उनकी शुरुआत खराब रही, लेकिन उन्होंने शानदार वापसी की और इतिहास रच दिया।
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