कानपुर के बिरहाना रोड में मां तपेश्वरी देवी का मंदिर आस्था का केंद्र है, मान्यता है कि यहां पर अखंड ज्योति प्रज्जवलित करने से मनोकामना पूर्ण होती है। एेसा कहा जाता है कि भगवान राम द्वारा त्यागे जाने पर माता सीता ब्रह्मावर्त (बिठूर) में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आई थी।
उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया, जिससे तपेश्वरी माता का प्राकट्य हुआ था। इसी स्थान पर माता सीता अपने पुत्रों लव-कुश का मुंडन संस्कार कराया था। इसी स्थान पर आज सिद्धपीठ तपेश्वरी माता का दरबार है। यहां दूर-दराज से लोग बच्चों का मुंडन कराने आते हैं और अखंड ज्योति भी जलाते हैं।
बारा देवी का दरबार
कानपुर शहर के दक्षिण क्षेत्र मां बारा देवी का दरबार है, इस मंदिर का इतिहास कितना पुराना है यह कोई नहीं जानता है। ऐसा कहा जाता है कि कुछ समय पहले एएसआइ की टीम ने मंदिर का सर्वेक्षण किया था तो यहां की मूर्तियों को लगभग 15 से 17 सौ वर्ष पुराना बताया था। पूरे साल मंदिर में भक्तों का आना होता है लेकिन नवरात्रि पर भीड़ उमड़ती है।
मंदिर से जुड़ी कथा प्रचलित है कि पिता से नाराज होकर घर से एक साथ 12 बहनें चली गईं और फिर पत्थर की हो गईं। कन्याओं की ये प्रतिमाएं बारादेवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुईं। भक्त मनोकामना पूर्ण होने के लिए चुनरी बांधते हैं और नवरात्रि पर जवारे के जुलूस में सांग लगाकर पहुंचते हैं।
आसा देवी मंदिर
कल्याणपुर स्थित मां आसा देवी का मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। तपेश्वरी मंदिर की तरह यहां का भी इतिहास माता सीता से जुड़ा है। किवदंती है कि माता सीता ने शिला पर देवी मां की आकृति बनाकर पूजन किया था और उन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन मिलने पर मनो कामना पूरी हुई। तब से देवी मां सबकी आस पूरी कर रही हैं और मंदिर का नाम आसा देवी मंदिर हो गया। मंदिर में प्राचीन शैली की अन्य मूर्तियां भी हैं।
काली बाड़ी मंदिर
कानपुर लालबंगला हरजेंदर नगर में कालीबाड़ी मंदिर हैं, यहां मां काली करुणामयी स्वरूप में विराजमान हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। नवरात्रि पर मां के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। कोलकाता के ऐतिहासिक मां दक्षिणेश्वर काली मां के दरबार की तरह ही यहां कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना हुई।
मान्यता है मां भगवती ने स्वप्न दिया, जिससे प्रेरित होकर बंगाली समाज के बुजुर्गों ने मंदिर की स्थापना कराई थी। राजस्थान के किशनगढ़ से विशेष कोष्ठी पत्थर से प्रतिमा बनाई गई थी।
चण्डिका देवी मंदिर
कानपुर शहर के मध्य देवनगर में मां चण्डिका देवी मंदिर स्थापित है, जो 200 वर्ष से भी प्राचीन है। यहां कमल के पत्ते पर अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित है। साल में शारदीय और चैत्र नवरात्र पर अखंड ज्योति के पात्र में घृत डालते हैं। मंदिर के गर्भ गृह में दर्पण लगा है, जिससे दर्शन करने पर मां का शीश हल्का झुका दिखता है और मान्यता है कि अष्टमी पूजन के समय कुछ समय के लिए शीश सीधा दिखता है। भक्त इसे मां का चमत्कार मानते हैं। राजस्थानी शिल्पकला वाले मंदिर में भैरव महाराज की मूर्ति भी है और नवरात्रि पर 108 नारियल की भेंट अर्पित किया जाता है।
कूष्मांडा देवी मंदिर
नवरात्रि पर देवी मां के चतुर्थ स्वरूप कूष्मांडा देवी का उत्तर भारत में एकमात्र मंदिर कानपुर के घाटमपुर में स्थापित है, जिसका हजारों साल पुराना इतिहास है। इतिहासकारों की मानें तो सन् 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने मंदिर की नींव रखी थी और 1890 में व्यवसायी चंदीदीन भुर्जी ने मंदिर का निर्माण पूर्ण कराया था। मराठा शैली में बने मंदिर में स्थापित मूर्तियां संभवत: दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की हैं।
भदरस गांव के कवि उम्मेदराय खरे ने सन 1783 में फारसी में ऐश आफ्जा नाम की पांडुलिपि लिखी थी, जिसमें माता कूष्मांडा और भदरस की माता भद्रकाली का वर्णन किया है। मंदिर में मां पिंडी के रूप में विराजित हैं और लेटी मुद्रा में प्रतीत होती हैं। पिंड रूपी मूर्ति से चमत्कारी जल लगातार रिसता है, जिसे लेकर मान्यता है कि जल को आंखों पर लगाने से नेत्ररोग दूर हो जाते हैं।
भद्रकाली माता मंदिर
घाटमपुर तहसलीर के भदरस गांव स्थित भद्रकाली माता का मंदिर भी हजारों साल पुराना है। कहा जाता है कि मां भद्रकाली के नाम पर पहले भदरस गांव का नाम भद्रपुर था। कवि उम्मेदराय खरे की पांडुलिपी में माता भद्रकाली का जिक्र है। मान्यता है कि भद्रकाली माता मंदिर में रोज सुबह माता की पहली पूजा अपने आप हो जाती है। मान्यता के मुताबिक अदृश्य भक्त भोर पहर में उनकी पूजा करता है। आज तक उसे कोई देख नहीं पाया है।
जंगली देवी मंदिर
कानपुर शहर में किदवई नगर के पास माता जंगली देवी का भव्य मंदिर है। यहां मां के खजाने का जिस दिन वितरण होता है उस दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि खजाने को घर में रखने से धन की कमी नहीं होती है। प्राचीन मंदिर की खोज वर्ष 1925 में खोदाई के दौरान मिले ताम्रपत्र के आधार पर हुई। जब उस ताम्रपत्र को पुरातत्व विभाग लखनऊ को सौंपा गया तो पता चला कि मंदिर पर विक्रम संवत 893 अंकित है। इसमें लिखा था कि यह भूभाग कान्यकुब्ज प्रदेश है, जो राजा भोज देव के आधीन आता है। राजा भोज ही मंदिर की देखरेख करते थे। जहां पर खोदाई के दौरान एक मठिया भी मिली। घने जंगल में मठिया मिलने और देवी मां का मंदिर होने से इसका नाम जंगली देवी मंदिर पड़ा।
नगेली माता मंदिर
घाटमपुर क्षेत्र के नगेलिनपुर गांव स्थित नगेली माता का मंदिर सैकड़ों साल पुराना है। नगेली माता मंदिर की मीनारें व कलाकृति मस्जिद नुमा आकार की बनी हैं। बाहर से देखने में इस मंदिर का गुंबद मस्जिद की तरह दिखाई देता है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इस मंदिर क निर्माण मुगल शासन काल में हुआ होगा। करीब पांच सौ से छह सौ साल पुराना मंदिर बताया जाता है। नगेली देवी मंदिर के पीछे एक तलाब स्थित है। मान्यता है की तालाब के जल के स्पर्श मात्र से रोगों का निवारण होता है।