Navratri 2022: आदिशक्ति के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा का कानपुर में एकमात्र मंदिर, यहां रहस्य है प्रतिमा से रिसने वाला जल
Navratri 2022 कानपुर के घाटमपुर तहसील में आदिशक्ति के चतुर्थ स्वरूप माता कूष्मांडा का मंदिर एकमात्र है और यहां पिंड रूपी प्रतिमा से रिसने वाले चमत्कारी जल एक रहस्य है। नवरात्रि पर चतुर्थ दिवस पर यहां भक्तों का तांता लगता है।
By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Thu, 29 Sep 2022 05:14 PM (IST)
कानपुर, जागरण संवाददाता। Navratri 2022 : आदिशक्ति के चतुर्थ स्वरूप माता कूष्मांडा की भक्ति करने से रोगों का नाश और सुख-समृद्धि का वास होता है। मां कूष्मांडा देवी के दर्शन शहर के घाटमपुर में साक्षात होते हैं, उत्तर भारत के एकमात्र बताए जाते इस मंदिर में नवरात्रि पर आस्था का संगम देखने को मिलता है। चतुर्थ दिवस पर यहां कानपुर ही नहीं आसपास के जनपदों और प्रातों से भी भक्त पहुंचते हैं।
प्रतिमा से रिसने वाला जल एक रहस्य
वैसे आदिशक्ति के चतुर्थ स्वरूप माता कूष्मांडा रोगों का नाश करती हैं। कहा जाता है कि उत्तर भारत में मां कूष्मांडा का मंदिर कानपुर के घाटमपुर तहसील में हैं। यहां मंदिर में स्थापित पिंडी रूप देवी प्रतिमा से सैदव रिसने वाला जल एक रहस्य है। आजतक कोई यह नहीं जान पाया कि जल कहां से प्रतिमा में आ रहा है। लेकिन, इस पवित्र जल को लेकर अटूट मान्यता और आस्था जुड़ी है।
नेत्र रोगों के लिए खास है जल
मान्यता है कि माता कुष्मांडा के मंदिर में प्रतिमा से रिसने वाला जल लगाने से नेत्र रोग दूर होतो हैं। मंदिर के पंडित का भी कहना है कि मंदिर में रहस्यमयी ढंग से रिस रहे जल को आंखों पर लगाया जाए तो अनेक रोग दूर हो जाते हैं। मंदिर में चमत्कारी जल पिंडी रूपी प्रतिमा से लगातार रिस रहा है। नवरात्रि की चतुर्थी तिथि पर हजारों भक्त मनोकामना पूरी होने पर चुनरी, ध्वजा, नारियल और घंटे अपिर्त करते हैं। भीगे चने भी अर्पित करने की मान्यता है।राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी नींव और व्यवसायी ने कराया निर्माण
घाटमपुर स्थित मां कूष्मांडा देवी मंदिर को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं हैं। मराठा शैली में बने मंदिर की मूर्तियाें को इतिहासकार दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की मानते हैं। यहां के राजा घाटमपुर दर्शन ने पहली बार 1380 में मंदिर की नींव रखी और उनके नाम पर नगर का नामकरण हुआ था। इसके बाद ग्वाले को सपना आने पर 1890 में व्यापारी चंदीदीन भुर्जी ने मंदिर का निर्माण करवाया था। कवि उम्मेदराय खरे की सन 1783 में रचित फारसी में ऐश आफ्जा नामक पांडुलिपि में भी माता कुष्मांडा का वर्णन मिलता है।
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