वायु के साथ ही ध्वनि प्रदूषण भी हुआ घातक, इन गंभीर समस्याओं का बढ़ गया है खतरा Kanpur News
लंबे समय तक 85-125 डेसीबल शोर सुनने से बहरेपन की समस्या जरा सी बातों में उग्र हो रहे हैं लोग।
By AbhishekEdited By: Updated: Mon, 09 Dec 2019 12:52 PM (IST)
कानपुर, जेएनएन। वायु प्रदूषण की तरह ध्वनि प्रदूषण भी स्वास्थ्य के लिए घातक होता जा रहा है। लंबे समय तक तेज आवाज के क्षेत्र में रहने से दिल की धड़कन और ब्लड प्रेशर (बीपी) बढऩे की समस्या हो रही है, जिससे हृदयघात (हार्ट अटैक) का खतरा रहता है।
तनाव बढऩे के साथ चिढ़चिढ़े हो रहे लोग
शहरों में ध्वनि प्रदूषण विकराल समस्या बनता जा रहा है। वाहनों, लाउडस्पीकरों, डीजे तथा उद्योगों में तेज आवाज उत्पन्न करने वाली मशीनों की बढ़ती संख्या से ध्वनि प्रदूषण में इजाफा हो रहा है। जो तनाव की अहम वजह बन रहा है। इस वजह से लोग चिढ़चिढ़े हो रहे हैं और उनका धैर्य कम हो रहा है। लोग जरा-जरा बातों में उग्र होते जा रहे हैं। इसके अलावा कानों में संक्रमण की समस्या भी तेजी से बढ़ी है।
चिकित्सकों का ये है कहना
लंबे समय तक 85 से लेकर 125 डेसीबल तक के ध्वनि (शोर) में रहने से कान का कॉक्लियर क्षतिग्रस्त हो जाता है। यह छोटे तथा नाजुक हेयर सेल्स का होता है। इसका काम ध्वनि तंरगों को पकड़ कर मस्तिष्क को संदेश भेजना है। इसके क्षतिग्रस्त होने से सुनने और बोलने की क्षमता प्रभावित होती है। स्थायी बहरापन एवं ऊंचा सुनने की समस्या होती है।
-डॉ. हरेंद्र कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, ईएनटी विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।तेज संगीत, वाहनों के इंजन की तेज आवाज, उनमें प्रयोग होने वाले तरह-तरह के तेज आवाज हार्न (प्रेशर हार्न) घातक हैं। बावजूद इसके न अधिकारी और न आमजन जागरूक हैं। इसकी वजह से हाई ब्लड प्रेशर, दिल की धड़कन बढऩा और तनाव जैसी समस्याएं होती हैं। इनको नजरअंदाज करने से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
-डॉ. बृजेश कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज। ध्वनि प्रदूषण बड़ी समस्या है। इसकी वजह से नींद पूरी नहीं होती है, जिससे व्यक्ति तनाव में रहता है। उसके व्यवहार में बदलाव, चिड़चिड़ाहट, अवसाद और ध्यान एकाग्रचित नहीं होता है। ऐसे में नपुंसकता जैसी समस्या भी हो सकती है। -डॉ. विपुल सिंह, मनोरोग विशेषज्ञ। सुबह-शाम के बाद अब दोपहर की हवा भी खतरनाक
सर्दी बढऩे के साथ ही वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) बिगडऩे लगा है। हानिकारक गैसों का घनत्व खतरनाक स्तर पर है। सुबह और शाम के बाद अब दोपहर की हवा भी खतरनाक हो गई है। पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) और नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओटू) की मात्रा मानक से अधिक होने के साथ-साथ ओजोन गैस की बढ़ी मात्रा सेहत को नुकसान पहुंचा रही है। एलर्जी व सांस फूलने की समस्या बढ़ी
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल और एलएलआर अस्पताल (हैलट) की ओपीडी में काफी संख्या में रोगी आ रहे हैं। विशेषज्ञ सांस, एलर्जी और संक्रमण की चपेट में आए मरीजों को दोपहर के वक्त भी घर से बाहर न निकलने की सलाह दे रहे हैं। मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल के प्रो. सुधीर चौधरी ने बताया कि नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने से रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा ऑक्सीजन का एक मॉलीक्यूल अलग कर देता है। यह मॉलीक्यूल (ओ) हवा में मौजूद ऑक्सीजन (ओटू) के संपर्क में आकर ओजोन गैस (ओथ्री) बनाते हैं। ओजोन गैस की वजह से हार्ट अटैक, लकवा मारना, फेफड़े सख्त होना, सांस फूलने की समस्या बढ़ जाती है। आंखों में जलन, छींके आना सामान्य बात है। एलर्जी के मरीजों को ओजोन गैस की वजह से समस्या होने लगी है। उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. एसबी फ्रैंकलिन के मुताबिक हवा में अति सूक्ष्म कणों का घनत्व काफी है। यह ठंड के साथ और नुकसानदायक हो सकते हैं।
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