कहीं आप भी तो नहीं लगा रहे गलत हेलमेट? बढ़ रहा सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस; गर्दन टूटने का भी मुख्य कारण
गैर-मानक हेलमेट के लंबे समय तक इस्तेमाल से सर्वाइकल और न्यूरो संबंधी जटिलताओं में वृद्धि हुई है। जीएसवीएसएस पीजीआई के विशेषज्ञों के अनुसार चार पाउंड से अधिक वजन वाले हेलमेट पहनने से सिर और गर्दन की हड्डी और नस पर दबाव बनता है जिससे गर्दन में दर्द अकड़न और स्पॉन्डिलाइटिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं। जानिए इस समस्या से कैसे बचें और कौन से हेलमेट आपके लिए सुरक्षित हैं।
अंकुश शुक्ल, कानपुर। दोपहिया वाहन चालकों में चार पाउंड यानी 1814.369 ग्राम भार से अधिक के गैर मानक हेलमेट का प्रयोग लंबे समय तक करने से सर्वाइकल और न्यूरो से जुड़ी जटिलताओं के मामलों में वृद्धि हुई है। जो दोपहिया वाहन चालकों को जीवन भर का दर्द दे रहा है। जीएसवीएसएस पीजीआइ के पेन मेडिसिन, न्यूरो सर्जरी विभाग और जीएसवीएम के आर्थों विभाग में लंबे समय तक दोपहिया वाहन चालक ऐसी समस्या लेकर बड़ी संख्या में पहुंच विशेषज्ञों के पास पहुंच रहे हैं।
दोपहिया वाहन चालकों में सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस, माइग्रेन, गर्दन में अकड़न और न्यूरो से जुड़ी समस्याओं को देखते हुए अब ओपीडी में ऐसे मरीजों का आकड़ा जुटाया जा रहा है। इसमें विशेषज्ञों को अधिक भार के हेलमेट के करीब 77 प्रतिशत मरीज मिले हैं। जो शहर की उबड़-खाबड़ सड़क पर लंबे समय तक वाहन चलाते हैं।जीएसवीएम मेडिकल कालेज के अस्थि रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. फहीम अंसारी ने बताया कि चार पाउंड से अधिक भार का हेलमेट लगाने से सिर और गर्दन की हड्डी और नस पर दबाव बनता है। इसके साथ ही अचानक ब्रेकर से गुजरने से तेज झटका लगता है। जो दोपहिया वाहन चालकों को जीवन भर का दर्द दे रहा है।
सड़क दुर्घटना के ज्यादातर मामलों में हेलमेट का वजन और उसका आकार दुर्घटनाओं में चालकों की गर्दन टूटने का मुख्य कारण बन रहा है। सिर का औसत वजन आठ से 12 पाउंड के बीच होता है। ऐसे में चार पाउंड से अधिक भार के हेलमेट पहनने से गर्दन के आसपास की मांसपेशियों में ऐंठन पैदा होती है और लंबे समय तक बने रहने से सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस और न्यूरो से जुड़ी समस्या का मुख्य कारण बनती है। इस कारण ही 77 प्रतिशत मरीजों ने हेलमेट नहीं लगाने का कारण इसके अधिक वजन को बताया।
डिलीवरी ब्वाय बन रहे शिकार
डा. फहीम के बताया कि अभी तक ओपीडी में सामने आ रहे मरीजों में सबसे ज्यादा डिलीवरी ब्वाय मिल रहे हैं। जो चार से पांच घंटे तक बाइक पर काम करते हैं। ऐसे में गैर मानक के हेलमेट लगाने और उबड़-खाबड़ मार्ग पर वाहन चलाने से उनमें न्यूरो और सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस की समस्या मिल रही है।आइएसआइ मानक के हेलमेट में सिर रहता सुरक्षित
जीएसवीएम मेडिकल कालेज के न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डा. मनीष सिंह ने बताया कि आइएसआइ मानक के हेलमेट का प्रयोग करने वालों में हेड इंजरी की संभावना 90 प्रतिशत तक नहीं होती है। जो दोपहिया वाहन चालक गैर मानक के हेलमेट का प्रयोग करते हैं, उनमें ही दुर्घटना के समय हेड इंजरी की संभावना सबसे अधिक होती है। अधिक वजन के कारण स्पाइन से जुड़ी समस्याएं होती है।
उन्होंने कहा कि दोपहिया वाहन चालक में दोनों पीछे बैठे व्यक्ति को भी हेलमेट का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। अभी तक मिले ज्यादातर मामलों में चालक से ज्यादा हेड इंजरी पीछे बैठे व्यक्ति में आती है। क्योंकि चालक के हैंडल के पकड़े रहने से उसमें जर्क की संभावना पीछे बैठे व्यक्ति से कम होती है। इसलिए दोपहिया वाहन चालक में दोनों का हेलमेट पहनना जरूरी है। अगर कोई बच्चों के साथ चलता है तो उसे बच्चों के लिए आ रहे आइएसआइ मानक के हेलमेट का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
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- आर्थो विभाग ओपीडी में 50 मरीज।
- न्यूरो और पेन मेडिसिन में औसतन 20 मरीज।
विभिन्न आकार के हेलमेट बन रहे चुनौती
- बाजारों में बिक रहे मानक विहीन विभिन्न आकार के हेलमेट से दुर्घटना में गर्दन टूटने का खतरा बना रहता है।
- मिली-जुली कंपनियों के नाम से बिकने वाले गैर मानक के हेलमेट का प्रयोग बन रहा समस्या।