अब रुस से नहीं मंगवाना पड़ेगा… ब्रह्मोस मिसाइल के इंजन में भरा जाएगा स्वदेशी ईंधन, खासियत जान वैज्ञानिक हो रहे खुश
डीआरडीओ के हैदराबाद स्थित रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) में इस ईंधन के सफल परीक्षण की जानकारी मिलते ही गुरुवार को पूरे दिन शहर स्थित डीएमएसआरडीई में वैज्ञानिकों में खुशी का माहौल बना रहा। अब इस ईंधन की आपूर्ति के लिए भारत की रूस पर से निर्भरता खत्म हो जाएगी। ईंधन उत्पादन के लिए तकनीक उद्योगों को हस्तांरित की जाएगी।
जागरण संवाददाता, कानपुर। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की इकाई रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान (डीएमएसआरडीई), जीटी रोड के वैज्ञानिकों ने देश को रक्षा क्षेत्र में एक कदम और आगे बढ़ा दिया है।
डीएमएसआरडीई के वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्मोस, सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक मिसाइल में लगने वाले रैमजेट इंजन के लिए स्वदेशी ईंधन पर किया गया अनुसंधान सफल हो गया है।
वैज्ञानिकों में खुशी का माहौल
डीआरडीओ के हैदराबाद स्थित रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) में इस ईंधन के सफल परीक्षण की जानकारी मिलते ही गुरुवार को पूरे दिन शहर स्थित डीएमएसआरडीई में वैज्ञानिकों में खुशी का माहौल बना रहा। अब इस ईंधन की आपूर्ति के लिए भारत की रूस पर से निर्भरता खत्म हो जाएगी। ईंधन उत्पादन के लिए तकनीक उद्योगों को हस्तांरित की जाएगी।माइनस 50 डिग्री सेल्सियस पर भी नहीं जमता
डीएमएसआरडीई के निदेशक डॉ. मयंक द्विवेदी के निर्देशन में वैज्ञानिकों की टीम ब्रह्मोस मिसाइल के लिक्विड रैमजेट इंजन में उच्च प्रदर्शन वाला ईंधन यानी हाई परफार्मेंस फ्यूल पर अनुसंधान कर रही थी। ब्रह्मोस, सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक मिसाइल में लगने वाले रैमजेट इंजन का फ्लैश प्वाइंट उच्च क्षमता का होता है।
अनुसंधान के बाद विकसित किया ईंधन माइनस 50 डिग्री सेल्सियस पर जमता नहीं है। भारत में यह ईंधन उत्पादन होने से खरीद लागत 10 गुणा तक कम हो जाएगी। इस सफल अनुसंधान और विकास के बाद भारत मिसाइल के ईंधन उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा।
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